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    महादानी स्व. रघुनाथ सिंह प्रधान (1928-2020) की 6वीं पुण्यतिथि पर विशेष

    -देश में आर्यसमाज की अलख जगाने में प्रधान जी का रहा अहम योगदान -यूपी, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान व आंध्रप्रदेश में बनवाई धर्मशालाएं व आर्य समाज मंदिर -93 साल के प्रधान जी अपने आप में एक संस्था व समाज थे -नजफगढ़ देहात में आर्य समाज के आधार स्तंभ के रूप में हमेषा खड़े रहे रघुनाथ सिंह आर्य -यादव समाज व आर्य समाज ने खो दिया एक अनमोल हीरा

    अपने कामों से अपनी छाप छोड़ने वाले महादानी व महान समाजसेवी या यूं कहें की 93 साल की उम्र में भी एक युवा की तरह काम करने वाले बुजुर्ग रघुनाथ सिंह आर्य भले ही अब हमारे बीच में नही हैं। लेकिन सर्वसमाज के लिए उनके काम हमेशा उनकी याद दिलाते रहेंगे। सोमवार को एकादषी के दिन सुबह 3.00 बजे के करीब उन्होने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया और सदा के लिए अमर हो गये। युगों-युगों तक यादव समाज व सर्व समाज उनके लोकहित के कार्यों का स्मरण कर उन्हें याद करता रहेगा।

    महान दानवीर व दिल्ली देहात के भामाशाह स्वर्गीय रघुनाथ सिंह यादव का जन्म विक्रमी संवत 1985 व 15 मार्च 1928 को नजफगढ़ के खैरा गांव में श्री तेजराम व श्रीमति मूर्ति देवी के घर में हुआ था। रघुनाथ सिंह बचपन से ही मेधावी थे। उन्होने प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर दसवीं तक सी आर जेड हाई स्कूल सोनीपत पंजाब में 1949 में पूरी की। उच्च शिक्षा दिलवाने में घर वाले असमर्थ रहे। लेकिन जब क्षेत्र मे शिक्षा के प्रसार के लिए अलीपुर गांव में कॉलेज खोला गया तो वहॉ एक साल तक  शिक्षा प्राप्त की। पढ़ाई व खेलकूद में वो हमेशा अव्वल रहे। उसके बाद प्रोढ़ शिक्षा कार्यक्रम में दो साल तक अध्यापन का कार्य किया।

    शिक्षा प्रचार-प्रसार जैसे सर्वोत्तम कार्य में सौभाग्यशाली व्यक्ति ही आ पाते है। यही वह पड़ाव था जहां से रघुनाथ सिंह में समाज सेवा के संस्कार पड़े। अक्सर गांव में व आसपास के क्षेत्रों में आप बच्चों को साथ लेकर व्यायाम व सफाई अभियान जैसे राष्ट्रोपयोगी कार्यों में जुट रहते थे। शिक्षा विभाग से आपको इस प्रकार के परोपकारी कार्यों के कारण कई प्रशंसनीय पत्र भी दिये गये थे। इसके साथ-साथ आप अपने गीतों व कार्यों के माध्यम से लोगों में देश भक्ति की भावना को बढ़ाने का भी काम करते थे। सन् 1954 में आपने डीसीएम कैमिकल में आपरेटर की नौकरी ज्वाइन की। जहां पर आपने 10 साल तक लगातार काम किया और फिर आपने वहां से नौकरी छोड़ दी। लेकिन इस दौरान भी आपने अनेको प्रशंसनीय कार्य किये। कंपनी के अधिकारियों ने भी आपके कामों को देखते हुए आपको सम्मानित किया। इस बीच सन्1961 में दिल्ली में ग्राम पंचायत अधिनियम लागू हुआ और रघुनाथ सिंह को क्षेत्रीय सरपंच मनोनीत किया गया। इस पद पर तीन साल तक आपने क्षेत्र की खूब सेवा की और अपने कामों से सभी की प्रशंसा प्राप्त की। जिसे देखते हुए 1963 में आपकों भारी मतो से खैरा गांव का सरपंच चुन लिया गया।

    1964 में जब क्षेत्र में भारी बाढ़ ने तबाही मचाई तो आपने पीड़ितों की मदद के लिए तन-मन-धन से सेवा की और दौबारा बाढ़ क्षेत्र में तबाही न मचा पाये इसके लिए प्रशासन को अपनी योजना पेश की। ग्राम प्रधान रहते हुए आपने गांव की भलाई व विकास के अनेको कार्य किये जिसमें ईंटों की पक्की गलियों से लेकर स्वच्छ जल के दो तालाबों का निर्माण, गांव में बच्चों के लिए प्राईमरी स्कूल की स्थापना व हरिजनों को अपने सांस्कृतिक कार्यों के लिए उन्हे ग्रामसभा की भूमि देकर चौपाल का निर्माण करवाया। सन् 1968 में आपने नजफगढ़ कस्बे में प्लाट ले लिया और वहीं मकान बनाकर रहने लगे। साल 1970 तक आप गांव के प्रधान रहे। लेकिन आपकी निस्वार्थ सेवाओं को देखते हुए ग्रामीणों ने 1974 में एकबार फिर आपकों गांव का प्रधान बना दिया। आप फिर समाजसेवा के काम में जुट गये और पहले की तरह आपने गांव में बिना भेदभाव के विकास कार्य कराएं।

    1974 में आप ने समाज में फैली कुरीतियों व पाखंडों के खिलाफ आवाज उठाई और इसके लिए आपने स्वामी दयानन्द सरस्वती की विचारधारा व उनके दिखाये मार्ग को चुना। जिसे देखते हुए 1974 में आपकों आर्य समाज ने सम्मानित करते हुए आपकों नजफगढ़ आर्य समाज का प्रधान बना दिया गया। आपने आर्य समाज के उत्थान के लिए व साधु-संतों के ठहरने तथा आर्य समाज के प्रचार-प्रसार के लिए नजफगढ़ में एक आर्य समाज भवन का निर्माण करवाया और मेन उत्तमनगर मार्ग पर ही एक प्लॉट खरीदा और उसमें मंदिर के निर्माण का काम भी आरंभ हुआ लेकिन उसमें आर्यसमाज अखाड़ा बनाया गया। जो आज भी अपनी सेवाऐं दे रहा है। उनके इस कार्य से आर्यसमाज व क्षेत्रवासियों ने उन्हें प्रधान के पद से सम्मानित किया और तब से श्री रघुनाथ सिंह यादव को लोगों ने प्रधान जी के नाम से संबोधित करना आरंभ किया। वहीं 1990 में उन्होने खैरा गांव में भी एक तीन मंजिला आर्य समाज मंदिर का निर्माण करवाया जिसका उद्घाटन स्वामी सर्वानन्द जी ने किया। इसके साथ ही उन्होने 1992 में नंदा एंक्लेव गोपाल नगर में भी 200 वर्गगज जमीन दान कर उसमें आर्य समाज मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर का कार्यभार स्वामी मनीषानंद को सौंपा गया वर्तमान में स्वामी कृष्णानंद इसका कार्यभार संभाल रहे हैं।

    1993 में आपने जयप्रकाश आर्य को 150 वर्गगज जमीन दान में दी। इसके साथ ही प्रधान जी क्षेत्र में आर्य समाज के प्रचार-प्रसार के लिए हर साल तीन दिवसीय आर्य सम्मेलन व शोभा यात्रा का आयोजन लगातार करते रहे। जिसमें देशभर से अनेको विद्वान, आर्य गायक व साधु-सन्यासी आकर अपने भजनों व विचारों से लोगों को अच्छी शिक्षा देते रहे। हालांकि कई बार प्रधान जी के इन कार्यों की क्षेत्र में आलोचना भी हुई लेकिन वह समाज की भलाई के लिए व कुरीतियों को मिटाने के लिए निरंतर कार्य करते रहे। कई बार अपने दैनिक यज्ञ को लेकर भी आप ने काफी आलोचना सही लेकिन आप चुपचाप अपना काम करते रहे और आपके कामों से एक दिन आपके विरोधी भी स्वयं आपके कार्यक्रमों में सहयोग करने व भाग लेने लगे। आपने मरते दम तक क्षेत्र मे शराबबंदी की आवाज को बुलन्द बनाये रखा। दहेज लेने व देने के आप हमेशा खिलाफ रहे। जिसकारण अपने समाज में भी कई बार आपको आलोचना झेलनी पड़ी लेकिन आपके इस काम में आपके परिवार व बेटियों ने आपका साथ कभी नही छोड़ा। जिससे आपकों और ज्यादा हौसला मिला।

    एक समय ऐसा भी आया जब आपकी लोकप्रियता को देखकर लोग आप के प्रति द्वेष पाले हुए थे और आपको आर्य समाज के प्रधान पद से हटाने को लेकर षडयन्त्र कर रहे थे तो आपने अपने आप अध्यक्ष पद का त्याग कर दिया लेकिन आपके हटने से नजफगढ़ आर्य समाज कई भागों में बट गया। जिसे देखते हुए आपने शिवाजी मार्ग नाम से एक बार फिर आर्यसमाज की स्थापना की और उसी गति से कार्यक्रम आयोजित किये। जिससे कई भागों में बंटा आर्यसमाज एक बार फिर संगठित होने लगा। किंतु चौ. रघुनाथ सिंह प्रधान सच्चे दिल से एवं शुद्ध भावना से आर्यसमाज की विचारधारा से जुड़े रहे और अपना काम करते रहे और जहां भी प्रधान जी गये वहीं दोनो हाथों से दान देते गये। उन्होने दिल्ली, हरियाणा, पंजाब व उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में धर्मशालाओं, गुरूकुलों, आश्रमों व आर्य समाज मंदिरों की न केवल स्थापना करवाई बल्कि उनकी हालत सुधारने के लिए दिल खोलकर दान भी दिया। अब वह दानवीर रघुनाथ सिंह के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे। जब उन्होने 8 अगस्त 1997 में यादव समाज के लिए 750 वर्गगज का प्लॉट दान दिया तो वह नजफगढ़ के दानवीर भामाशाह कहलाऐं। इसके बाद भी वह रूके नही और उन्होने झज्जर के खेड़ी खुम्मार, खातीवास व जहाजगढ़ में आर्य समाज की स्थापना की और आर्यसमाज भवन का निर्माण कराया।

    प्रधान रघुनाथ सिंह यादव के परिवार में पांच भाई व एक बहन है। सभी भाई गांव व नजफगढ़ में अलग-अलग मकान बनाकर सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। दिनांक 22 मई 1980 को रघुनाथ जी के पिता तेजराम यादव का स्वर्गवास हो गया था जिसके लिए आपने 25 जून 1980 में वेद यज्ञ कराकर 18 गांवों के ब्रह्मभोज का आयोजन किया था। 1998 में आपकी माताजी मूर्तिदेवी का 96 साल की उम्र में स्वर्गवास हो गया। इसके बाद आपने अपने पूरे परिवार की देखभाल पहले की तरह ही अपनी आदत में शुमार रखी। आप से पहले आपके दो भाई रामकवार यादव व जगराम यादव स्वर्ग सिधार चुके थे जिसके बाद आपकी पारिवारिक जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई लेकिन आप ने कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नही मोड़ा और समाज सेवा के साथ उन्हे भी बखूबी निभाते रहे। प्रधान जी की शादी मोल्लाहेड़ा (गुड़गांवा) गांव की श्रीमति सुखमा देवी से हुई। प्रधान जी को जीवन संगिनी के रूप में एक सुघड़ पत्नी मिली। जिन्होने अपनी कार्यकुषलता से पूरे परिवार को जोड़े रखा। वो उनमें सबसे बड़े थे। इसलिए परिवार के प्रति उनकी जिम्मेदारी भी अधिक थी। प्रधान जी अपने पीछे अपनी 6 पुत्रियों सुमन, भतेरी, रमेश, कमला, सुनिता और अनिता का भरापूरा परिवार छोड़कर गये है जो प्रधान जी के दिखाऐ मार्ग पर चलकर उन्हे सच्ची श्रद्धांजलि देने का काम कर रही हैं।

    प्रधान रघुनाथ यादव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। पहले वेतन भोगी फिर ठेकेदार और उसके बाद समाजसेवी तथा व्यापारी का किरदार आपने बखूबी निभाया। हर काम को आपने मेहनत व लगन के साथ किया और उसे ऊंचाईयों तक लेकर गये। आपने पांच साल तक सरकारी ठेकेदारी भी की। सन 1984 में आप नागरिक सुरक्षा के डिविजन वार्डन बने। आपकी सेवा ओर मेहनत को देखते हुए आप को स्थाई वार्डन बना दिया गया। सन् 1986 में आप ने प्रापर्टी डीलर का कार्य भी किया। इस दौरान आप ने काफी नाम कमाया लेकिन साथ-साथ आर्यसमाज के उत्थान के लिए भी काम करते रहे। 1995 में राव तुलाराम अस्पताल बनने पर तुलाराम समिति का आपकों महामंत्री बनाया गया। 1996 में आपने अपने गांव खैरा में भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया तथा मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर सबको अचंभित कर दिया। इस मौके पर आपकों सच्चे मानवतावादी की उपाधि से ग्रामीणों ने आप का सम्मान किया।

    नजफगढ़ देहात में आने वाले लोगों के लिए जब ठहरने की कोई उचित व्यवस्था नही थी तब आपके मन में एक यादव भवन बनाने विचार आया और इस पर आप ने यादव समाज से बात भी की। जिसके लिए सबसे पहले जमीन की जरूरत थी तो आप ने खैरा रोड़ पर स्थित अपनी अनमोल 750 वर्गगज का प्लॉट समाज की भलाई के लिए दान कर दिया। जिसपर यादव समाज ने दान देकर एक भव्य छः मंजिला भवन का निर्माण आपकी देखरेख में कराया। इस भवन के लिए यादव चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम से एक संस्था बनाई गई जिसका संरक्षक व सर्वेसर्वा आपको बनाया गया। आपके इस कार्य से आप क्षेत्र में ही नही देश में भी चर्चित व्यक्ति बन गये। आपके इस कार्य के लिए यादव समाज ही नही छत्तीस बिरादरी भी आपकी सदा ऋणी रहेगी।

    रघुनाथ जी हमेषा अपने आपको व्यस्त रखते थे। सुबह 4 बजे उठना उनकी दिनचर्या में शामिल था। रोजाना लंबी सैर को जाना फिर हवन करना व उसके बाद यादव भवन का काम-काज संभालना उनकी दिनचर्या थी। इस दौरान सामाजिक कार्यों को पूरा करना। लोगों से मिलना-जुलना व परेशानी में घिरे लोगों की मदद करना उनकी आदत में शूमार था। प्रधान जी के सामाजिक योगदान, कार्यप्रणाली एवं विचारधारा को देखकर ऐसा लगता है कि लालबहादुर शास्त्री की कदकाठी का यह दुबला-पतला किन्तु होनहार यादव एक व्यक्ति नही बल्कि अपने आप में एक समाज व संस्था था। जिसने जो कहा वह करके दिखाया और अपने कामों से समाज में एक प्रतिष्ठा हासिल करते हुए इतिहास पुरूष बने। आज श्री रघुनाथ सिंह यादव प्रधान जी हमारे बीच नही है लेकिन उनके किये काम व उनकी बनाये भवन व मंदिर हमेशा उनकी याद दिलाते रहेंगे।

    आज ऐसे अनेकों लोग है जो उनके व्यक्तित्व का अनुसरण कर रहे है और अपने घरों में रोजाना हवन-यज्ञ कर रहे हैं। हम सभी उनकी 6वीं पुण्यतिथि पर भगवान से प्रार्थना करते है कि भगवान उन्हें एक बार फिर भूलोक में भेजे ताकि वो एकबार फिर इस समाज को नई दिशा दिखा सकें और पृच्वी पर धर्म की स्थापना का काम कर सकें।

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