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    मस्क की नई पार्टी यूएस में डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन को दे पाएगी चुनौती.!

    -अमेरिका में तीसरे दलों का इतिहास कैसा?

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देश दुनिया/- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व एलन मस्क के बीच विवाद का कारण बना ’बिग ब्यूटीफुल बिल’ आखिर संसद में पारित होकर अब कानून बन चुका है लेकिन इसी बीच एलन मस्क ने अपने वादे के मुताबिक इस विधेयक के कानून बनने के चंद घंटों बाद ही अपने राजनीतिक दल की घोषणा कर दी। अब सवाल यह है कि क्या एलन मस्क की तीसरी पार्टी अमेरिका में डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टियों को कोई चुनौती दे पाएगी ? क्योंकि अमेरिकी राजनीति में अभी तक तीसरी पार्टी का कोई खास योगदान नही रहा है। आखिर एलन मस्क की ट्रंप से नाराजगी की मुख्य वजह क्या रही? उनकी तरफ से अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी की तरह एक स्थायी तीसरी पार्टी बनाने के प्रस्ताव में कितना दम है? क्या अमेरिका में इस तरह के प्रयास पहले हुए हैं? ये प्रयास कितने सफल रहे? किसी पार्टी के लिए डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी की जगह लेना मुश्किल क्यों है? आइये जानते हैं…

    एलन मस्क की ट्रंप से नाराजगी की वजह क्या?
    एलन मस्क ने ट्रंप के चुनाव अभियान में करीब 30 करोड़ डॉलर (लगभग ढाई हजार करोड़ रुपये) तक खर्च किए थे। दोनों की दोस्ती ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद भी जारी रही और मस्क को सरकारी खर्चों में कटौती की जिम्मेदारी के साथ सरकारी दक्षता विभाग की जिम्मेदारी दी गई। हालांकि, ट्रंप ने जब ’बिग ब्यूटीफुल बिल’ के जरिए अमेरिका में कई व्यवस्थाओं को बदलने की मंशा जताई तो मस्क ने इसका विरोध किया। आलोचकों ने भी इसे लेकर कई चिंताएं जाहिर कीं। मसलन इस विधेयक के जरिए लोगों को मिलने वाले हेल्थकेयर प्लान को या तो कमजोर किया जा रहा था या लोगों से इसकी व्यवस्था ही छीनी जा रही थी। अब यह विधेयक जब कानून बन चुका है तो ट्रंप की नई योजनाओं पर सरकारी खर्च बढ़ने की वजह से अगले दशक तक अमेरिका का कुल कर्ज 37 ट्रिलियन डॉलर (करीब 3172 लाख करोड़ रुपये) से बढ़कर 40 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है।

    मस्क ने तब ही ट्रंप सरकार के नए विधेयक को लेकर कहा था कि अगर यह कानून बनता है तो इससे अमेरिकी नागरिकों पर कर्ज और बढ़ जाएगा और राष्ट्रपति का वह वादा, जिसमें उन्होंने सरकारी खर्चों में कटौती करने की बात कही थी, उसका मकसद भी नाकाम हो जाएगा। ट्रंप अपनी योजना के तहत कानून बनाकर अमेरिका में स्वच्छ ऊर्जा के लिए मिलने वाली सरकारी सब्सिडी को भी कम करने या खत्म करने की तैयारी कर रहे हैं। मस्क इसे लेकर ट्रंप से सबसे ज्यादा नाराज बताए गए थे। दरअसल, मस्क की वाहन कंपनी टेस्ला, स्वच्छ ऊर्जा पर आधारित कार और ट्रक बनाती है। इस कंपनी को अमेरिकी सरकार की स्वच्छ ऊर्जा नीतियों के तहत फायदा मिलता है।  

    मस्क नई अमेरिकन पार्टी को लेकर लेकर कितने गंभीर?
    एलन मस्क की तरफ से अमेरिका में नया राजनीतिक दल बनाने का प्रस्ताव कितना गंभीर था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले महीने ट्रंप से विवाद के बीच उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट के जरिए सर्वे कराया था। इसमें 80 फीसदी लोगों ने उनके नई पार्टी बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया था। तब मस्क ने कहा था कि यह अमेरिका में दो पार्टी के सिस्टम से लोगों का मोहभंग होने का संकेत है। मस्क ने कहा है कि वह ट्रंप के विधेयक का समर्थन करने वाले लगभग सभी रिपब्लिकन नेताओं के खिलाफ अगले चुनाव में किसी दूसरे उम्मीदवार को समर्थन देंगे। मस्क ने कुछ नेताओं का खुले तौर पर समर्थन शुरू भी कर दिया। इनमें अमेरिका के केंटकी से सांसद थॉमस मैसी का नाम शामिल है, जिन्होंने ट्रंप के बिग ब्यूटीफुल कानून का खुलकर विरोध किया था।

    क्या अमेरिका में कोई पार्टी तोड़ सकती है रिपब्लिकन-डेमोक्रेटिक पार्टी का वर्चस्व?
    ऐतिहासिक तौर पर देखा जाए तो अमेरिका में सबसे लंबे समय से ग्रांड ओल्ड पार्टी के नाम से लोकप्रिय- रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी ने सत्ता पर कब्जा बनाए रखा है। इसी के चलते अमेरिका की राजनीतिक प्रणाली को टू पार्टी सिस्टम यानी दो पार्टियों की प्रणाली से जोड़कर देखा जाने लगा है। हालांकि, अमेरिका टू पार्टी सिस्टम वाला देश नहीं रहा है। अमेरिकी चुनाव की एन्साइक्लोपीडिया कही जाने वाली वेबसाइट बैलटपीडिया के मुताबिक, जनवरी 2025 तक अमेरिका में 55 ऐसी पार्टियां हैं, जो एक साथ कई राज्यों में बैलट पर अपना नाम दर्ज करवा चुकी हैं। वहीं, राज्य स्तर पर 238 पार्टियां हैं। राष्ट्रीय स्तर पर किसी पार्टी को बैलट पर अपना नाम दर्ज करवाने के लिए कम से कम 10 राज्यों में मौजूदगी दर्ज करानी होती है। इस लिहाज से जहां रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के नाम ही सभी 50 राज्यों के बैलट पर मौजूद हैं। वहीं, तीन और ऐसी पार्टियां हैं, जो राष्ट्रीय स्तर की पार्टी मानी जाती हैं।

    बताया जाता है कि ग्रीन पार्टी का एजेंडा पर्यावरण के मुद्दों पर केंद्रित होता है। वहीं, लिबरटेरियन पार्टी, जो कि अमेरिका की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है, वह नागरिकों से जुड़े मुद्दों पर सरकार की कम भूमिका होने की वकालत करती है और सिर्फ उनकी सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ही दखल को तवज्जो देती है। इसके अलावा अमेरिकन टैक्सपेयर पार्टी, जिसने साल 2000 में अपना नाम कॉन्स्टीट्यूशन पार्टी कर लिया था, वह संविधान का पूर्ण रूप से पालन करने की मांग वाली पार्टी के तौर पर देखी जाती है।

    मस्क की ’अमेरिकन पार्टी’, कहा- आपको आजादी वापस देंगे
    अमेरिका में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टी को किसी तीसरे राजनीतिक दल से सबसे कड़ी टक्कर 1992 में मिली थी। अमेरिका में तब और अब की स्थितियां काफी समान हैं। दरअसल, रिफॉर्म पार्टी ने टेक्सास के अरबपति रॉस पेरोट को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया था। मौजूदा समय में जिस तरह मस्क वित्तीय घाटे और बढ़ते हुए कर्ज को लेकर सरकार को घेरने में जुटे हैं, कुछ उसी तरह 1992 में रॉस पेरोट भी संघीय बजट घाटे को कम करने और इसके जरिए अमेरिका का कर्ज घटाने के एजेंडे को केंद्र में रखकर अपने चुनाव अभियान को आगे बढ़ा रहे थे। पेरोट को इस राष्ट्रपति चुनाव में 19 फीसदी वोट मिले थे, जो कि राष्ट्रपति पद के लिए खड़े किसी तीसरी पार्टी के उम्मीदवार को सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट थे।

    इसी तरह 2004 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में राल्फ नेडर ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा। वे इससे पहले दो बार ग्रीन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए नामित हो चुके थे और 2000 में उन्हें 20 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। इसका असर तब यह हुआ था कि रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉर्ज बुश ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवार अल-गोर को चुनाव में हरा दिया और पॉपुलर वोट नेडर की तरफ जाने की वजह से डेमोक्रेट पार्टी ने उन्हें गोर की हार का जिम्मेदार ठहराया। यानी ग्रीन पार्टी की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में उसी तरह की भूमिका थी, जैसे की भारत में चुनावों में वोटकटवा पार्टी की होती है।

    अमेरिका में आज तीसरी पार्टी की सफलता में क्या हैं बाधाऐं?
    अमेरिका में कभी रिपब्लिकन पार्टी खुद एक तीसरी पार्टी के तौर पर पहचानी जाती थी। हालांकि, 1960 में अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में तब रिपब्लिकन ने दो प्रमुख पार्टियों- व्हिग्स और डेमोक्रेटिक पार्टी को हरा दिया था। इसका कारण लिंकन का गुलाम प्रथा (एंटी-स्लेवरी)  का विरोध था। हालांकि, तब से लेकर अब तक अमेरिकियों ने किसी तीसरी पार्टी के नेता को राष्ट्रपति नहीं चुना।

    दूसरी तरफ अमेरिका में दोनों प्रमुख पार्टियों की मौजूदगी की वजह से किसी तीसरी पार्टी का अभियान चलाना भी मुश्किल हो जाता है। इसकी वजह है राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन की कठिन प्रक्रिया। किसी भी व्यक्ति को बैलट पर सिर्फ मौजूदगी दिखाने के लिए भी राज्यों से 15 लाख हस्ताक्षर जुटाने होते हैं। चूंकि रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों ने अपना जनाधार कई वर्षों में बनाया है, इसलिए इनके उम्मीदवारों के लिए यह काम आसान होता है। लेकिन किसी तीसरी पार्टी के लिए यह मुश्किल काम है।

    इसके अलावा अमेरिकी चुनावी प्रणाली के नियमों के मुताबिक, किसी तीसरी पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए सरकारी तरफ से आर्थिक मदद तभी दी जा सकती है, जब उसने पिछले चुनाव में कुछ वोट जुटाए हों। ऐसे में किसी नई पार्टी को सरकार की तरफ से आर्थिक मदद की उम्मीद नहीं रहती। इसके चलते कई बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार या तो खुद चुनाव लड़ने के लिए फंड्स देते हैं या वे दानकर्ताओं से फंड्स को जुटाने की कोशिश करते हैं, जो कि काफी मुश्किल काम है, क्योंकि अमेरिका में अधिकतर अमीर दानकर्ता पहले ही स्थापित हुई दो पार्टियों से जुड़े हैं।

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