मणिपुर की इनसाइड स्टोरी में चीन की एंट्री, नित नये हो रहे खुलासे

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मणिपुर की इनसाइड स्टोरी में चीन की एंट्री, नित नये हो रहे खुलासे

-सीडीएस ने कहा मणिपुर हिंसा सिर्फ जातिय संघर्ष, उग्रवाद नही -सेना की मौजूदगी में कैसे चलती रही कट्टरपंथियों की निजी सरकार?, हिंसा को लेकर कोई एक कारण जिम्मेदार नही

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- मणिपुर में हो रही हिंसा को लेकर नित नए खुलासे हो रहे हैं। अब तो मणिपुर की इनसाइड स्टोरी में चीन की भी एंट्री हो गई है। नतीजा, सेना प्रमुख मनोज पांडे को मणिपुर आकर घटना का जायजा लेना पड़ा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मणिपुर में कानून व्यवस्था की समीक्षा करने के अलावा वहां के विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों के विश्वस्त सूत्रों ने तीन प्वाइंट में मणिपुर की जो इनसाइड स्टोरी बताई है, वह हैरान करने वाली है। सेना, असम राइफल और सीएपीएफ के पहुंचने के बाद भी वहां पर कट्टरपंथी समूहों की ’निजी सरकार’ कैसे चलती रही। जहां पर सुरक्षा बल तैनात होने थे, वहां गाड़ियों की चेकिंग निजी समूह कर रहे थे। मणिपुर के पुलिस कमांडो पर यह आरोप लग गए कि वह एक किसी समूह का साथ दे रहे हैं। बटालियनों और पुलिस थानों में से दो हजार से ज्यादा घातक हथियार लूट लिए जाते हैं। महज दो सप्ताह के भीतर मणिपुर में रेडिकलाइजेशन के जरिए नए कट्टरपंथी समूह खड़े हो गए हैं।

पहला प्वाइंटः-
मणिपुर में मौजूद सीएपीएफ के एक अधिकारी का कहना है, हिंसा को लेकर किसी एक कारण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सिलसिलेवार तरीके से देखेंगे तो कई बातें पता चलेंगी। मणिपुर में तीन मई से हिंसा की शुरुआत हुई। 48 घंटे के भीतर वहां पर सेना और केंद्रीय अर्धसैनिक बल पहुंच गए। इसके बावजूद इंफाल और पहाड़ के कुछ हिस्सों पर जबरदस्त हिंसा हुई। मणिपुर में सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद कुकी और मैतेई समुदाय के लोग कानून को अपने हाथ में लेकर चल रहे थे। दोनों ही जगहों पर निजी नाके लगा दिए गए। यानी जो काम पुलिस या सुरक्षा बलों का होता है, वह ड्यूटी कुकी और मैतेई समुदाय से जुड़े लोग या कट्टरपंथी समूह कर रहे थे। वाहन रोक कर यह पता लगाया जा रहा था कि उनमें विरोधी समूह के लोग तो नहीं सवार हैं। लोगों के परिचय पत्र चेक किए जा रहे थे। ऐसे कई स्थानों पर झड़प हुई और वाहन जलाए गए। म्यांमार बॉर्डर से लगते जिलों में तो ऐसे कई निजी नाके लगे हुए थे। उपद्रवियों ने इंफाल में रोड ब्लॉक कर सुरक्षा बलों को आगे ही नहीं बढ़ने दिया। इसके चलते मणिपुर के पहाड़ी एवं मैदानी इलाकों में हिंसा बढ़ती चली गई।

दूसरा प्वाइंटः-
हिंसा शुरु होने के बाद उपद्रवियों ने करीब डेढ़ दर्जन पुलिस थानों से हथियार लूट लिए। ध्यान रहे कि उस वक्त राज्य में सेना व अर्धसैनिक बल मौजूद थे। शुरू में लूटे गए हथियारों की संख्या 375 थी। सीआरपीएफ के कैंपों को भी नुकसान पहुंचाया गया। उपद्रवियों की हिंसा में सीआरपीएफ कोबरा के एक जवान की मौत हो गई। जवानों और अधिकारियों के आवास में आग लगा दी गई। सीआरपीएफ के ’सेकंड इन कमांड’ फिलिप का पूरा घर जला दिया गया। चुराचांदपुर में रिजर्व बटालियन के दो जवान घायल हुए थे। वहां दर्जनों एनकाउंटर हुए, जिनमें उपद्रवियों ने लूटे गए हथियारों का इस्तेमाल किया। सैतोन और तोरबुंग इलाके में सुरक्षा बलों के खिलाफ उन्हीं हथियारों का प्रयोग किया गया। दो दिन पहले खंगाबोक स्थित मणिपुर पुलिस की आईआरबी से 70 हथियार, छठी आईआरबी के हेडक्वार्टर से 300 हथियार और हिल पर स्थित टेंगोपोल पुलिस थाने से लगभग ढाई सौ हथियार लूटे गए। महज 48 घंटे में एक हजार से अधिक हथियार उपद्रवियों के हाथ में पहुंच चुके थे। मैतेई समुदाय ने हथियार लूटने का आरोप कुकी पर लगाया तो कुकी समुदाय ने इसके लिए मैतेई को जिम्मेदार ठहरा दिया।

तीसरा प्वाइंटः-
अधिकारी के मुताबिक, सबसे बड़ी बात यह रही कि जब हथियार लूटे गए तो लोकल पुलिस कहां थी। अगर आर्मी, असम राइफल व सीएपीएफ जवान वहां तक नहीं पहुंचे थे, तो मणिपुर पुलिस के कमांडो उन इलाकों में ड्यूटी पर थे। इसके बाद भी दिन-दहाड़े हथियार लूट लिए गए। यहां पर भी दो बातें देखने को मिलीं। मैतेई समुदाय ने कहा, ये सब कुकी समुदाय के लोगों ने किया है। कुकी समुदाय ने यही आरोप मैतेई लोगों पर लगा दिया। यह भी कहा गया कि जब हथियार लूटे गए तो किसी ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। कई जगहों पर पुलिस थानों के हथियार गृह के ताले खुले हुए थे। हालांकि वहां पर कोई मौजूद नहीं था। जिस बटालियन या थानों से हथियार लूटे गए, वहां पर उपद्रवियों को कोई संघर्ष नहीं करना पड़ा। कुकी समुदाय ने आरोप लगाया कि मणिपुर कमांडो पुलिस, मैतेई लोगों का साथ दे रही है। इसी तरह मैतेई समुदाय ने भी ऐसा ही आरोप लगाया। कहा गया कि हिल पर जितने भी हथियार लूटे गए हैं, उसमें कुकी समुदाय से जुड़े कट्टरपंथी लोगों का हाथ है। हिल में पुलिस ने कुकी समुदाय की मदद की, तो इंफाल और उसके आसपास के मैदानी भाग में मैतेई को पुलिस का साथ मिला, दोनों पक्षों द्वारा ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं। इन आरोपों में दम दिखाई पड़ता है। सेना, असम राइफल व सीएपीएफ की मौजूदगी में 27 दिन बाद भी मणिपुर में हिंसा न थमना, किसी पर तो सवालिया निशान है।

चीन की एंट्री और नए कट्टरपंथी समूह बने चुनौतीः-
मणिपुर में तैनात आईबी से जुड़े सूत्रों का कहना है, ये बात सही है कि अब भारत सरकार इस हिंसा को नए एंगल से देख रही है। शुरुआत के एक डेढ़ सप्ताह तक तो यह हिंसा, लोकल समुदायों और उपद्रवियों के बीच होती रही है। अब इसमें चीन की एंट्री हो गई है। उपद्रवियों समूहों के संचालक जो बांग्लादेश और म्यांमार में हैं, उनकी सक्रियता बढ़ रही है। सुरक्षा एजेंसियों को म्यांमार बॉर्डर पर उपद्रवियों को चीन की मदद समझ आ रही है। चीन के सोशल मीडिया में मणिपुर को लेकर देश विरोध तस्वीर पेश की जा रही है। चिंता का विषय ये है कि मणिपुर में दशकों से सक्रिय रहे उग्रवादी समूह, जो सरकार के साथ समझौते में शामिल होकर सरेंडर कर चुके हैं, अब उनकी जड़े दोबारा से हरी होने की आशंका जताई जा रही है। सूत्रों का कहना है, मणिपुर की हिंसा ने बड़े पैमाने पर रेडिकलाइजेशन को बढ़ा दिया है। वहां पर नए कट्टरपंथी समूह खड़े हो रहे हैं। यूं भी कह सकते हैं कि जो समूह, अब समझौते की प्रक्रिया में शामिल हैं, उनकी दूसरी पारी शुरू होने के आसार हैं। समझ और रणनीति, पुराने समूहों की रहेगी, मगर चेहरे नए होंगे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, इस बात से परिचित हैं। यही वजह है कि गृह मंत्री, मणिपुर के विभिन्न सामाजिक समूहों के साथ चर्चा कर रहे हैं।

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