वाशिंगटन/शिव कुमार यादव/- जिस तरह 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिकी सहम गए थे आज इजराइल में भी ठीक उसी तरह के हालात नजर आ रहे हैं। हमास के हमले से के बाद इस्राइली मनोवैज्ञानिक रूप से सहमे हुए हैं। इस हमले से पहले इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर पहले से दबाव था कि हमास के खिलाफ युद्ध करें, पर वह बचते रहे। इस बार हमास के इतने क्रूर हमले के बाद युद्ध घोषित करना पीएम के लिए एकमात्र विकल्प था। जो संकेत मिल रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि पश्चिमी एशिया में जल्द शांति स्थापित नहीं होगी। साथ ही यह कि अब इस्राइल इस हमले का भरपूर जवाब देने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और इजराइली इसकी बड़ी कीमत चुकाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो रहे है। ऐसे में अब बड़ा सवाल यह है कि क्या यह युद्ध का हमास, गाजा, इस्राइल तक ही सीमित रहेगा या यह युद्ध दूसरे देशों तक भी फैल सकता है।
न्यूयॉर्क टाइम्स न्यूज सर्विस के मुताबिक, यह तो साफ है कि हमास का हमला केवल सशस्त्र संघर्ष नहीं, बल्कि पूरी तरह युद्ध है। कई सहयोगी उसके साथ हैं। तभी नेतन्याहू ने कहा कि इस बार जो युद्ध का स्तर होगा, वह दुश्मनों ने पहले नहीं देखा होगा।
गाजा में घुसकर हमला कर सकता है इस्राइल
ब्रुकिंग्स संस्थान में सेंटर फॉर मिडिल ईस्ट के निदेशक नातन साक्स के अनुसार, नेतन्याहू ने अपने सैनिकों को गाजा में घुसकर जमीनी सैन्य कार्रवाई करने से हमेशा रोका। लेकिन इस बार इस्राइली टैंक गाजा में घुसते देखे जा रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन के इस्राइली संस्थान में शोधकर्ता मार्क हेलर के अनुसार, इस बार वजह अलग है, इस्राइली नागरिकों पर हमले का जो मनोवैज्ञानिक असर हुआ है, उसे देखते हुए वे कोई भी कीमत चुका सकते हैं। स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल बिल्ट के अनुसार, अगर हमास इस्राइली सैनिकों को गाजा के भीतरी इलाकों में ले गया है, तो इस्राइल अपने हजारों सैनिकों को वहां भेज कर कार्रवाई कर सकता है। यह देखना होगा कि इस कार्रवाई के परिणाम क्या होंगे।
हिजबुल्ला खोल सकता है युद्ध का दूसरा मोर्चा
इस्राइल को आतंकी संगठन हिजबुल्ला से सचेत रहना होगा। 2006 की तरह वह उत्तरी इस्राइल में एक नया युद्ध मोर्चा खोल सकता है। उसे इस्राइल के कट्टर दुश्मन ईरान का समर्थन व सहयोग है। ईरान ही उसे व हमास को हथियार व खुफिया रिपोर्ट देता है।
युद्ध में विपक्ष सरकार के साथ
इस्राइल में न्यायिक सुधार कानूनों का विरोध करने वाले समूह ने हमले के बाद प्रदर्शन रोककर अपने दफ्तर नागरिकों को शरण देने के लिए खोल दिए हैं। यैर लापिद समेत कई विपक्षी नेताओं ने नेतन्याहू के नेतृत्व में आम सहमति की राष्ट्रीय सरकार में शामिल होने की मंशा जता दी है। इस्राइल पर हमले ने सभी राजनीतिक व दबाव समूहों को एकजुट कर दिया है।
अरब देशों से सामान्य होते रिश्ते हमास को मंजूर नहीं
हमास ने हमले को लेकर कुछ नहीं कहा, लेकिन इसकी कई वजहें मानी जा रही हैं। सबसे अहम अरब देशों से इस्राइल के सामान्य होते ताल्लुकात हैं। इस्राइल 1948 में बना, लेकिन सऊदी अरब ने अब तक उसे मान्यता नहीं दी। सऊदी व अमेरिका सम्मानजक रक्षा समझौते की ओर बढ़ रहे हैं। बदले में अमेरिका चाहता है कि सऊदी व इस्राइल में संबंध सामान्य हों। वाशिंगटन स्थित विश्लेषक अंबरीन जमान मानती हैं कि ऐसे प्रयासों का भविष्य इस बात पर टिका है कि इस्राइल गाजा में कितनी बड़ी कार्रवाई करता है? हालांकि प्रयासों को झटका लगना तय है। दरअसल, हमास नहीं चाहता कि संबंध सामान्य हों।
बड़ा सवाल- जो इस्राइली बंधक हैं, उनका क्या
तर्क सामने आ रहे हैं कि हमास बंधकों के बदले अपने उन आतंकियों की रिहाई करवाएगा, जो इस्राइल के कब्जे में हैं। अरब देशों में अमेरिका के पूर्व कूटनीतिज्ञ रहे एरन डेविड मिलर के अनुसार हमास के लिए यह हमला उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ा था। वह बताता चाहता था कि इस्राइल को वह जब चाहे, जितना चाहे नुकसान कर सकता। वहीं, इस्राइल आश्वस्त था कि हमास सीमा पार करके हमला नहीं करेगा।
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