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  • डीडीए एक्ट के प्रस्तावित संशोधन का पुरजोर विरोध करेगी दिल्ली मूल ग्रामीण पंचायत

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    डीडीए एक्ट के प्रस्तावित संशोधन का पुरजोर विरोध करेगी दिल्ली मूल ग्रामीण पंचायत

    -प्रेस सम्मेलन में पंचायत ने चेतावनी देते हुए कहा- डीडीए अधिनियम 1957 में प्रस्तावित संशोधन यदि संसद द्वारा पारित किया जाता है तो “ गांवों में मौत की घंटी“ बज जाएगी

    नई दिल्ली/- डीडीए अधिनियम 1957 में प्रस्तावित संशोधन को लेकर एक बार फिर सरकार व ग्रामीण पंचायत आमने-सामने आ गये है। संशोधन को लेकर दिल्ली मूल ग्रामीण पंचायत के अध्यक्ष पूर्व कुलपति प्रो. राजबीर सोलंकी ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि संसद ने इस संशोधन को पारित कर दिया तो गांवों में मौत की घंटी बज जाएगी। उन्होने कहा कि इस संशोधन के बाद ग्रामीण दिल्ली की सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान अंतिम कहावत के रूप में साबित होगी। जिसे देखते हुए दिल्ली मूल ग्रामीण पंचायत इस संशोधन का पुरजोर विरोध करेगी।
                  सोमवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पूर्व कुलपति और अध्यक्ष प्रोफेसर राजबीर सोलंकी ने दिल्ली देहात के ताबूत में कील की प्रसिद्ध कहावत का हवाला देते हुए कहा कि “जो लोग इतिहास भूल जाते हैं उन्हें दोहराने की निंदा इसकी एक बड़ी भूल कही जाती है। सोलंकी ने भारत सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के प्रशासकों से सीखने की अपील करते हुए कहा कि पिछली सरकारों की दोषपूर्ण नीतियां और गांवों की महत्वपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के लिए सुधारात्मक उपाय करना जरूरी है। उन्होने कहा कि देहात में सदियों से एक साथ रहने वाले सभी जातियों और समूहों के किसानों, कारीगरों और मजदूरों की आर्थिक पहचान करनी चाहिए। डीडीए के अस्तित्व के 65 वर्षों के दौरान न केवल दिल्ली के गांवों की पहचान मिटाई गई बल्कि गांवों के मूल निवासी उजाड़े गये जिनमें किसान, कारीगर, मजदूर और उनके बच्चे थे। डीडीए ने उन्हे काम के लिए जगह दी और न ही 130 से अधिक गांवों की भूमि अधिग्रहित करने के बाद ग्रामीणों को निवास स्थान की जगह दी जबकि डीडीए ने इस जमीन को अधिग्रहित करने की दर से सौ से हजार गुना ज्यादा में बेचा। उन्होने कहा कि सरकार का काम लोगों को बसाने का है उजाड़ने का नही लेकिन डीडीए में एक साजिश के तहत दिल्ली के मूल निवासियों को उजाड़ा गया।
                  उन्होने कहा कि डीडीए के प्रत्येक मास्टर प्लान में किसानों को रंगीन सपने दिखाये गये। कई तरह की ग्राम विकास योजनाओं से पिछले 65 वर्षों में ग्रामीणों को महरूम रखा गया। एक भी गांव को गांव की तर्ज पर विकसित नही किया गया। पीएम स्वामित्व योजना के तहत पूरे भारत में गांवों में स्वामित्व का अधिकार है जबकि मूल निवासी ओबीसी और एसी सहित सभी जातियों के गांवों के पास लाल डोरा के भी स्वामित्व दस्तावेज नही है। डीडीए ने दिल्ली में गांवों व किसानों का दर्जा ही समाप्त कर दिया जबकि आज भी दिल्ली में गांव है और खेती होती है फर्क इतना है कि किसानों का दर्जा नही होने से ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ नही मिलता। गांवों में अपनी जमीन होने के बावजूद भी किसानों को घर बनाने व कृषि कार्यों के लिए ऋण या उसका मुद्रीकरण करने का भी अधिकार नही है।
                  श्री सोलंकी ने कहा कि डीडीए लैंड पूलिंग पॉलिसी का दावा कर रहा है, जिसे एक दशक पहले घोषित किया गया था लेकिन अब डीडीए संशोधन परिवर्तक के नाम पर किसानों के साथ खेल खेलना चाह रहा है। जबकि हरियाणा में लैंड पूलिंग बिना कंसोर्टियम के गुरुग्राम जैसे शहरों को बढ़ने में मदद कर रही है और तेजी से विकास हो रहा है। गुजरात में लैंड पूलिंग का एक और सफल मॉडल है जहां मूल निवासियों की भागीदारी के साथ स्मार्ट सिटीज बनाये जा रहे हैं। उन्होने कहा कि डीडीए राजधानी दिल्ली में गांवों और शहरों को एक साथ फलने-फूलने और विकसित करने शहर की योजना तो बना रहा है लेकिन अभी तक उसके पास दिल्ली की अनधिकृत अवैध कॉलोनियों के तहत जमीन, हरित पट्टी की जमीन, लाल डोरा में जमीन का डाटा तक पूरा नहीं है। उन्होने कहा कि जहां लैंड पूलिंग और डीडीए अधिनियम के तहत ये प्रस्तावित संशोधन लागू होने है वहां की मूल ग्राम जनसंख्या ग्रामवार होनी चाहिए। उन्होने डीडीए को पीएम के स्मार्ट सिटी मिशन से सुराग लेने की सलाह देते हुए कहा कि ग्राम सभा की जमीन हथियाना, गाँवों से लैंड पूलिंग को अनिवार्य बनाना और गाँव के युवाओं को बिना आकांक्षाओं के छोड़ना पूरी तरह से अनुचित है इसके लिए डीडीए व सरकारों को गांवों के हित में सोचना चाहिए कि गांव है तो देश है।
                  डॉ सोलंकी ने चेतावनी दी है कि ये संशोधन दिल्ली के गांवों के मूल निवासियों की सभी जातियों को इस स्थिति में धकेल देंगे कि हम विनाश के मुंह में चले जायेंगे जहां से लौटना मुश्किल होगा। उन्होने कहा हम अपनी सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक पहचान की रक्षा के लिए मिलकर लड़ेंगे और डीडीए व सरकार को इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। इस अवसर पर दयानंद वत्स- बरवाला (उपाध्यक्ष, डीएमजीपी), पारस त्यागी-बुढेला (सचिव, डीएमजीपी), विवेक प्रताप- तिगीपुर, डॉ अमित खरब- मुंढेला खुर्द, देवेंद्र तंवर- नारायणा, रामकुमार टोकस- मुनिरका, आदित्य तंवर- नारायणा, राजेंद्र पंवार – बेर सराय, शिव कुमार शौकिन- दिचाओं कलां, अजय यादव- कांगनहेड़ी और डॉ हंसराज सुमन-लिबासपुर ने भी अपने विचार रखें।

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