नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- इंसान ने जैसे-जैसे विकास किया वैसे-वैसे उसने अपने चारो तरफ एक असुरक्षा की दीवार भी खींच ली। ऐसा नही है कि इंसान ने विकास कर कुछ सीखा नही फिर भी उसने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए भगवान को पूजना शुरू किया। ग्रह-नक्षत्रों की पूजा की और जब उनसे भी काम नही चला तो फिर दूसरे उपायों पर भा अपनी किस्मत आजमानी शुरू की। हमने विकास के रास्ते राजशाही से तो मुक्ति पा ली लेकिन अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर चाटुकारिता को अपना नया हथियार बना लिया। और आज उसी चाटुकारिता के दम पर हम एक बार फिर राजशाही का मार्ग ही प्रशस्त कर रहे है। आज राजा तो नही रहे लेकिन मंत्रीं, सांसद व विधायक व पार्टियों के पदाधिकारी भी किसी राजा से कम नही रहे। अब तो चाटुकारिता इस हद तक हम में समा गई है कि हम अपने त्यौहारों में भी अपने आकाओं को खुश करने का कोई बहाना नही छोड़ते है। जहां भगवान की तस्वीर लगनी चाहिए वहां अपने आकांओं की तस्वीर लगा कर ही अपने प्रियजनों को बधाई व शुभकामनाओं के संदेश भेजते है ताकि वो खुश रहे।
हालांकि विद्वानो ने सोचा था कि जैसे-जैसे हम विकास करेंगे वैसे-वैसे प्रजातन्त्र ज्यादा मजबूत होगा और हमे राजशाही से छूटकारा भी मिल जायेगा। लेकिन इंसान की स्वार्थसिद्धि ऐसा होने ही नही देना चाहती। हम एक उन्नत समाज की आधारशिला तो रख रहे है और हम अपने वैज्ञानिकों के दम पर नई उंचाईंया भी छू रहे है। लेकिन आज की चाटुकारिता इस हद तक सीमायें पार कर रही है कि इसका सारा श्रेय हम अपने नेताओं या यूं कहिए की आकाओं को ही दे रहे है। जिसकारण हमारी प्रतिभाएें कुमहला रही है। हालांकि हम सभी जानते है कि जिन सांसदों व विधायकों को हम देश चलाने के लिए चुनते है वह राजा नही है जनसेवक है और न ही उन्हे ऐसे अधिकार मिले है लेकिन फिर भी ये लोग किसी राजा से कम भी नही है। अपनी सुविधा के लिए ये अलग-अलग होकर भी एक मत से बिल पास करते है और जब जनसुविधा की बात आती है तो यही लोग उस पर अड़ंगा डालते है, राजनीति करते हैं ताकि जनता पिसती रहे। हद तो तब हो जाती है जब इनके पिछलग्गु नेता अपने आकाओं को खुश करने के लिए उनके गलत फैसलों का भी आंख बंद करके समर्थन करते है और जब कोई उसके खिलाफ आवाज उठाता है तो उसे देशद्रोही कहते है। ऐसे लोग कभी समाज व देश का भला नही कर सकते जो गलत को गलत नही कह सकते। चाहे वह किसी के द्वारा भी कहा या करा गया हो।
आज तो चाटुकारिता की सारी हदे पार हो रही हैं। छुटभैईये नेता अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए अपने आकाओं के लिए कुछ भी करने को तैयार है। हालांकि सभ्य समाज इसे कार्यकर्ता का नाम देता है लेकिन यही कार्यकर्ता अपने प्रियजनों को अपने आकाओं की तस्वीर के बिना बधाई संदेश भी नही दे पाते। पहले अपने आकाओं की तस्वीर लगाते है इसके बाद भगवान की तस्वीर लगती है तो भला ऐसे लोग किसका भला कर सकते है। यह किसी एक पार्टी या समाज का मामला नही है सभी पार्टी कार्यकर्ता आज तो एक ही थाली के चट्टे-बट्टे लगते है। यही हाल हमारे समाज का भी हो चुका है। लेकिन सही मायने में हम प्रजातंत्र में नही उसी राजषाही में ही जी रहे है बस उसका रूप बदल गया है। पहले राजा व राजपरिवार होता था राज करने के लिए आज मंत्रीगण व उनका परिवार है उनकी जगह राज करने के लिए। देश सेवा या जनसेवा का भाव अब कहीं-कहीं ही देखने को मिलता है और जो जनसेवा या देषसेवा में आवाज उठाते भी है तो उनपर देषद्रोही होने का तमगा लगाकर उनकी आवाज दबा दी जाती है। वाह री चाटुकारिता आज तो हर तरफ तेरा ही बोलबाला है। घर में छोटे बच्चे से लेकर प्रधानमंत्री तक सभी चाटुकारिता की चासनी में डूबे हुए है। भला हो उस देश व परिवार का जिसमें ये सद्गुण बसा है।
-हद हो गई चाटुकारिता की, बधाई के लिए भी आकाओं को खुश रखना जरूरी
-त्यौहारों पर बधाई का संदेश देने के लिए भगवान से पहले लगानी पड़ती है अपने आकाओं की तस्वीर
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