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    चीन के वैज्ञानिकों का दावा, चंद्रमा पर कांच की मोतियों में जमा है 30 हजार करोड़ लीटर पानी

    -अपोलो लुनर के सैंपल में मिली थी ये कांच के मोती, उल्कापिंडों के टकराने से बनते है कांच के मोती

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/साईंस/शिव कुमार यादव/- चीन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि चांद पर 30 हजार करोड़ लीटर पानी है, वह भी कांच की मोतियों में छिपा हुआ है। उसके मून रोवर चांगई-5 ने मिट्टी का का सैंपल लिया था। सैंपल में कांच की मोतियां मिली थीं, जिनमें पानी की मौजूदगी के सबूत थे।
                       चीन के वैज्ञानिकों ने चंद्रमा की सतह के नीचे हजारों करोड़ लीटर पानी की खोज करने का दावा किया है। उनके दावे में हैरानी इस बात की है कि ये पानी कांच की मोतियों में बंद है। यानी इतने लीटर पानी को अपने में छिपाने के लिए हजारों करोड़ मोतियां भी हैं, वो भी कांच की। इन कांच की मोतियों या छोटी गेंदों के अंदर पानी छिपे होने की बात चीन के वैज्ञानिक कह रहे हैं।
                      असल में चीन की स्पेस एजेंसी ने चांद की सतह का सैंपल लाने के लिए चांगई-5 भेजा था। मिशन सफल रहा। रोवर ने दिसंबर 2020 में मिट्टी का सैंपल लिया। उसे लेकर धरती पर वापस आ गया। जब मिट्टी के सैंपल की जांच की गई तो पता चला कि उसमें माइक्रोस्कोपिक कांच की मोतियां हैं। इन मोतियों के अंदर पानी होने का सबूत मिला है क्योंकि ये कांच के मोती अलग-अलग धातुओं के पिघलने से बने हैं।  
                      इन मोतियों को अपोलो लूनर सैंपल के दौरान लाई गई मिट्टी में भी पाया गया था। अब यह उम्मीद जताई जा रही है कि भविष्य में चांद पर इंसानी बस्ती बसाने के लिए इन मोतियों से पानी निकाला जा सकता है। यहां पर करीब 30 हजार करोड़ लीटर पानी मौजूद है। इसकी रिपोर्ट 27 मार्च 2023 को नेचर जिओसाइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है।

    उल्कापिंडों की टक्कर से बनते हैं ये कांच के मोती
    इन कांच की मोतियों को ग्लास स्फेरूल्स या इम्पैक्ट ग्लासेस या माइक्रोटेक्टाइटिस कहते हैं। ये तब बनते हैं जब लाखों किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से उल्कापिंड चंद्रमा से टकराते हैं। इससे चंद्रमा के वायुमंडल में मिट्टी तेजी से उड़ती है। यहां टक्कर से काफी गर्मी पैदा होती है, जिससे सिलिकेट खनिज पिघलते हैं। फिर ये ठंडे होकर कांच के गोल मोतियों में बदल जाते हैं।

    हर मोती के अंदर जमा होता है 2000 माइक्रोग्राम पानी
    नेचर जियोसाइंस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इन मोतियों के अंदर हाइड्रोजन की मात्रा काफी ज्यादा होती है। यूं कहें कि ये अपने अंदर हाइड्रोजन फंसा लेते हैं। मिट्टी में दबते चले जाते हैं। जब सूरज से हवा चलती है, यानी सौर हवा… तब ये हाइड्रोजन पानी का निर्माण करते हैं लेकिन जमीन की सतह के नीचे ही कांच की हर मोती के अंदर 2000 माइक्रोग्राम पानी स्टोरी होने की संभावना है।

    भविष्य में और भी कई खुलासे करेंगे चीनी वैज्ञानिक
    जब वैज्ञानिकों ने हाइड्रेशन सिग्नेचर एनालिसिस किया तो पता चला कि ये मोती कुछ ही सालों में अपने अंदर पानी बनाने की क्षमता पैदा कर लेते हैं। यानी भविष्य में इंसानों के मून मिशन के दौरान उन्हें पानी की जरुरत होगी तो इन मोतियों से निकालकर उनका इस्तेमाल कर सकते हैं हालांकि अभी वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इन कांच की मोतियों में जमा पानी के अलावा और कई नए खुलासे हो सकते हैं।
                       चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस के जियोफिजिसिस्ट हू सेन ने कहा कि चांद पर इन कांच की मोतियों के अलावा भी कई एयरलेस बॉडीज हैं। यानी ऐसी वस्तुएं जिनमें हवा नही है लेकिन सूरज की हवा लगने पर वो पानी पैदा कर सकते हैं। हम ऐसी ही चीजों की खोज कर रहे हैं ताकि भविष्य में चंद्रमा पर एस्ट्रोनॉट्स को पानी की कमी महसूस न हो।

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