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    गाजा युद्ध पर सऊदी अरब, जार्डन समेत कई खाड़ी देश कर रहे भारत का रूख

    -मुस्लिम और अरब देशों यकीन, गाजा पर ’दोस्‍त’ की बात मानेगा इजरायल?

    देश-विदेश/शिव कुमार यादव/- भले ही गाजा पट्टी में इजरायल और हमास के बीच कुछ समय के लिए संघर्ष विराम हो गया है। समझौते के तहत इजरायल और हमास दोनों ही आज कुछ बंधकों को रिहा भी करने जा रहे हैं। लेकिन हमास और इजरायल में युद्ध के बीच खाड़ी के मुस्लिम देशों के मंत्री संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के स्‍थायी सदस्‍यों के दौरे पर निकले हैं। ये मंत्री चीन का दौरा कर चुके हैं और उनका भारत भी आने का प्‍लान है। इस प्रतिनिधि मंडल में सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद, जार्डन के डिप्टी पीएम अयमान सफादी, मिस्र के विदेश मंत्री सामेह शोउक्रे और फलस्‍तीन के विदेश मंत्री रियाद अल मलीकी शामिल हैं। ये मंत्री इस सप्‍ताह के अंत में दिल्‍ली आ रहे हैं।

    बताया जा रहा है कि इस बैठक का मुख्‍य एजेंडा पश्चिमी एशिया में चल रहा संकट है। इन नेताओं का भारतीय विदेश मंत्री के साथ मिलने का प्‍लान है। इन सभी मंत्रियों का लक्ष्‍य है कि गाजा युद्ध में स्‍थायी सीजफायर कराया जाए। इसके अलावा मानवीय मदद को गाजा के लोगों तक पहुंचाया जाए। इसके अलावा संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के सभी स्‍थायी सदस्‍यों से अलग फलस्‍तीन देश के लिए समर्थन मांगना है। इस यात्रा की सफलता पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। इस दल का गठन इस्‍लामिक देशों के संगठन ओआईसी की बैठक में हुआ था। इस बैठक में इजरायल के उस दावे को खारिज किया गया है जिसमें वह कह रहा है कि उसे गाजा में आत्‍मरक्षा का अधिकार है।

    चीन के दौरे से हैरान हैं विशेषज्ञ
    इससे पहले 7 अक्‍टूबर को हमास के हमले में इजरायल के 1200 लोग मारे गए थे और 240 लोगों को बंधक बना लिया गया था। इजरायल ने इसके जवाब में भीषण हमले शुरू किए हैं जिसमें 14 हजार से ज्‍यादा फलस्‍तीनी मारे गए हैं। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक इस बैठक की शुरुआत मुस्लिम देशों के मंत्रियों ने चीन से की जिससे कई विशेषज्ञ हैरान हैं। उन्‍होंने कहा कि पश्चिमी देशों के साथ चीन का तनाव चल रहा है, ऐसे में मुस्लिम देश क्‍या संदेश देना चाहते हैं। कई विश्‍लेषक तो इस दल के एजेंडे पर ही सवाल उठा रहे हैं।

    इजरायल में फ्रांस के पूर्व राजदूत गेरार्ड अरौद कहते हैं कि यह कूटनीति है, यह एक चर्चित रणनीति है कि अगर आप कुछ नहीं करना चाहते हैं तो यह कोशिश करिए कि इसमें ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को शामिल किया जाए। यह समय लेता है, यह दुनिया को दिखाता है कि हां कुछ गतिविधियां हो रही हैं लेकिन यह बेकार होता है। इस दल ने चीन के बाद रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और ब्रिटेन के विदेश मंत्री से भी मुलाकात की है। उन्‍होंने बुधवार को फ्रांसीसी राष्‍ट्रपति से भी मिलकर उनका समर्थन मांगा।

    भारत से क्‍या चाहते हैं अरब देश ?
    विशेषज्ञों का कहना है कि अरब देशों का इतना प्रभाव नहीं है कि वे वैश्विक रुख को निर्धारित कर सकें। इसीलिए वे चाहते हैं कि चीन ज्‍यादा से ज्‍यादा मदद के लिए आगे आए लेकिन इजरायल पर केवल अमेरिका का ही आवश्‍यक प्रभाव है। इसीलिए मुस्लिम देश भारत की यात्रा करना चाहते हैं।

    भारत और इजरायल के बीच दोस्‍ती लगातार बढ़ती जा रही है। भारतीय पीएम मोदी ने हमास के हमले को आतंकी घटना करार दिया था। भारत इजरायल को लेकर संयुक्‍त राष्‍ट्र में आए प्रस्‍ताव पर मतदान से दूर रहा था। वहीं भारत ने फलस्‍तीन को भी कई टन मानवीय सहायता भेजी है। उन्‍हें उम्‍मीद है कि भारत की बात इजरायल मान सकता है।

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