गिरिजानंदन, लम्बोदर गणपति ज्ञान का अलौकिक प्रकाश स्वरुप है। शुभारम्भ के जनक है शिवनंदन, इसलिए हम अच्छे कार्य की शुरुआत को श्रीगणेश करना कहते है। शास्त्रों एवं पुराणों में विघ्न विनायक को ओंकार स्वरुप वर्णित किया गया है। प्रथम पूज्य गणेश का स्मरण हमारे सारे मनोरथों को पूर्ण करने वाला है, क्योंकि वे हमें ज्ञान के साथ विवेक भी प्रदान करते है। वर्तमान समय में सर्वत्र गणेशोत्सव की धूम दिखाई दे रही है। यदि हम निःश्छल मन और पूर्ण निष्ठा भक्ति भाव से गजानन का आह्वान करते है तो जीवन में आनंद और उत्साह के प्रसून प्रफुल्लित हो जाएंगे। भक्तजन आपके अनेक नामों का स्मरण करते है। ध्यान, पूजन एवं अर्चना कर अपने जीवन को भी निर्विघ्न बनाना चाहते है। इस गणेशोत्सव में चहुं ओर आपके आने का हल्ला है। अब सबके दुःख हरने का जिम्मा शिव-पार्वती के लल्ला को है।
गौरीनंदन आपकी महिमा अपरम्पार है। एकदन्त मंगलमूर्ति आप ही शिव के उत्तराधिकारी है, जो सबके कष्ट-क्लेश दूर कर सकते है। विघ्नविनायक आपकी भक्ति तो सदैव शुभ फलदायक होती है। दीन-दुःखियों के उद्धारक, गिरिजासूत, मंगलकारक, रिद्धि सिद्धि के स्वामी, शुभ-लाभ के दाता, सिद्धिविनायक सभी भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि डालें। हे गजानन हमारे मन रूपी उपवन को सुगन्धित विचारों से महका दो। कलुषित विचार एवं दुर्भावना को क्षीण कर दो। सौहार्द्र और सुमन के पुष्प चहुं ओर पल्लवित कर दो। अपनी बुद्धि और विवेक की स्नेहिल छाया प्रदान करों। हे लम्बोदर भक्तजन इस भवसागर को पार करने के लिए आपका आशीर्वाद चाहते है। हमारे जीवन में भटकाव को न्यून कर दीजिए एवं उत्तमकोटि की एकाग्रता प्रदान कीजिए।
गणेशजी की आरती में उल्लेखित है कि आप नयनसुख, सुन्दर काया, संतान सुख एवं अर्थ भी सहजता से प्रदान करते है एवं आपको ताम्बूल, पुष्प, मोदक, दूर्वा इत्यादि अत्यंत प्रिय है। जीवन में मिठास का महत्त्व तो आप अपने मोदक प्रिय स्वभाव से परिचित कराते है। शिव-पार्वती के दुलारे को भक्तजन बप्पा कहकर पुकारते है। बप्पा का आगमन तो अनूठी प्रसन्नता एवं उल्लास लेकर आता है। दयावंत शिव-पार्वती नंदन तो दुःख भंजन स्वरुप है। गणेशजी के द्वादश नाम तो भक्त को सदैव स्मरण करते रहना चाहिए एवं बच्चों को भी विद्या अर्जन में सरलता के लिए प्रतिदिन द्वादश नाम का वाचन करना चाहिए। गणपति की अनेक स्तुति हमारे शास्त्रों में वर्णित है। साधक किसी भी स्तुति का पुरे मन से पाठ कर सकता है एवं मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता है। अभीष्ट फल की प्राप्ति हेतु गणपति अथर्वशीर्ष भी एक श्रेयस्कर स्तुति है।
महाँकाल के लाल होने के कारण शिव सी सरलता उनमें भी विद्यमान है। इसलिए पूजन में मूर्ति का अभाव होने पर यदि ताम्बूल के ऊपर सुपारी रखकर श्रीगणेश का पूर्ण श्रृद्धा से आह्वान किया जाए तब भी वे कार्य की सिद्धी में विलम्ब नहीं करते। पार्थिव अर्थात मिट्टी के गणपति का विसर्जन हमें सीख देता है कि हमारा अंत तो मिट्टी में मिल जाना ही है। महाँकाल के युवराज आप सभी कार्यों को पूर्णता प्रदान करते है, इसलिए हम सभी को पुरे हर्षों-उल्लास से इसे अनूठे उत्सव के रूप में मनाना चाहिए। ईश्वर का सृजन भी कितना श्रेयस्कर है कि जीवन में विघ्न आना निश्चित है, तो विघ्नविनायक की कृपा भी सृष्टि की रचना का अद्वितीय अंग है। शिव अर्थात कल्याण एवं उमा यानि शक्ति के पुत्र गजानन तो मानवमात्र के मंगल करने के लिए ही प्रकट हुए है। विघ्नहर्ता हमें निर्विघ्न कार्यों को सम्पादित करने की शक्ति दे एवं समस्त जीवों को धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि की परिपूर्णता प्रदान करों। विद्या के अथाह सागर और बुद्धि के विधाता से इस गणेशोत्सव यही प्रार्थना है कि वे हमें जीवन में विघ्नों से मुक्ति प्रदान करें एवं आनंद और कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
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