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    कवि-कलाकार विरेंद्र कौशिक के सम्मान में हुआ काव्योत्सव

    -काव्योत्सव में कवि-कलाकार विरेंद्र कौशिक की लंबी उम्र व उज्जवल भविष्य की सभी ने की कामना

    बहादुरगढ़/शिव कुमार यादव/- अखिल भारतीय साहित्य परिषद की जिला इकाई द्वारा क्षेत्र के चर्चित कवि-कलाकार विरेंद्र कौशिक के सम्मान में ओमेक्स सिटी स्थित विविधा सांस्कृतिक केंद्र में भव्य काव्योत्सव का आयोजन किया गया।संस्था के जिला संरक्षक कृष्ण गोपाल विद्यार्थी के सानिध्य में हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता झज्जर से पधारे पंजाबी भाषा के साहित्यकार श्री परगट सिंह ने की। इस अवसर पर उपस्थित रहे श्री कुमार राघव, जय सिंह जीत, अनिल भारतीय गुमनाम, राजकुमार गाइड व स. गुरमीत सिंह ने श्री कौशिक के जन्मदिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में अपनी प्रतिनिधि रचनाएं सुनाने के अलावा उनके उज्जवल भविष्य व दीर्घायु की कामना भी की।
              काव्योत्सव में हिन्दी के अलावा पंजाबी व हरियाणवी की रचनाएँ भी प्रस्तुत की गईं जिनमें माँ व गाँव को समर्पित  कविताओं को सर्वाधिक पसंद किया गया। इस दौरान श्री कौशिक के अलावा झज्जर से पधारे जयसिंह जीत व कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे परगट सिंह जी को पुष्पहार, अंगवस्त्र व सुंदर स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया गया। सुरुचिपूर्ण जलपान के साथ काव्योत्सव का समापन हुआ।

    काव्योत्सव में पढ़ी गईं कुछ रचनाओं की बानगी…

    अपने हाथों से उसने संवारा मुझे,
    हर कदम राह मुझको दिखाती रही।
    लोरी गा गा के मुझको सुनाती रही,
    मेरे सपनों को मां ही सजाती रही।
           – विरेंद्र कौशिक

    कोई मेरे मकान को खण्डहर बना गया,
    कोई उसी में आस का दीपक जला गया।
    लोगों ने वह किया जो उनके संस्कार थे,
    मैं तो फकीर हूँ,बताओ मेरा क्या गया?
         – कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

    बरगद वाली छाँव हमारे हिस्से है,
    पहिए ना पर पाँव हमारे हिस्से है।
    तुम इतराओ गगन तुम्हारे हिस्से है,
    हम तो खुश हैं गाँव हमारे हिस्से है।
               -कुमार राघव

    एक नग़मा किसी के लिए, गुनगुनाना बड़ी बात है ।
    आजकल आदमी के लिए, मुस्कुराना बड़ी बात है ।।
           -जयसिंह ’जीत’

    मेरी यादों में मांँ, मेरी बातों में माँ।
    दिन के उजालों में, रातों में माँ।।
       -अनिल भारतीय ’गुमनाम’

    कहने को तो बड़ा आसान है,
    गम है तो थोड़ा मुस्करा लो,
    जब भी लगता हूँ मुस्कराने,
    गम आ जाता मेरे सिरहाने।
           – राजकुमार गाइड

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