नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- “कोई भी राष्ट्र उस देश के कानूनों तथा संविधान से महान् नहीं बनता, जन आंकाक्षा ऊर्जा और सतत् प्रयास राष्ट्र को महान बनाते हैं।“ उक्त उद्गार बहुत पहले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने प्रगट किया था। शासन प्रशासन भी अब उपभोक्ता हितों की ओर सजग हो रही है। भारतीय संसद ने भारतीय संविधान की मर्यादा में अनेकों अधिनियमों को निर्माण किया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 भारतीय संसद की एक महत्वपूर्ण देन है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पूर्व प्रचलित कानूनों से अधिक क्रांतिकारी तथा प्रगतिशील हैं। वैसे इस कानून के हमारे देश में प्रभावी होने के पूर्व, विश्व के अनेक देशों जैसे अमेरिका, इंग्लैड, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड में इस प्रकार के कानून प्रभावशील हैं। वर्तमान कानून जिसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 (क्रमांक- 68) नाम दिया गया हैं इसका मुख्य उदेश्व उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करना है।
इस कानून में उपभोक्ता कौन है परिभाषित है। उपभोक्ता में वस्तुओं तथा सेवाओं, दोनों के उपभोक्ता सम्मिलित हैं। वस्तुओं के संबंध में उपभोक्ता से तात्पर्व ऐसे व्यक्ति से है, जो प्रतिफल का भुगतान करके या उसको भुगतान का वचन देकर माल कब करता है। यह अधिनियम सेवाओं के उपभोक्ताओं को भी संरक्षण प्रदान करता है। सेवाओं के मामले में उपभोक्ता से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो प्रतिफल का भुगतान करके या उसके भुगतान का वचन देकर या उसका आंशिक भुगतान करके अथवा आंशिक भुगतान का वचन देकर किसी सेवा को किराये से लेता है। इस प्रकार इस अधिनियम की सीमा में वे सभी वस्तु और सेवाएं आती है जिनसे उपभोक्ता सीधे तौर पर जुड़ा हुआ हैं।
अधिनियम का विस्तार अत्यंत व्यापक है। मूलतः यह कानून, जब तक केन्द्रीय शासन किन्ही वस्तुओं अथवा सेवाओं को विशेष छूट नहीं देता है, अपनो परिसीमा में सभी वस्तुओं तथा सेवाओं पर लागू होता है। निजी, सार्वजनिक तथा सहकारी सभी क्षेत्र में इसके क्षेत्राधिकार में आते हैं। यह कानून उपभोक्ता को संरक्षण का अधिकार, ऐसी वस्तुओं के विपणन के विरुद्ध जो जीवन तथा संपत्ति के लिये हानिकारक हो, प्रदान करता है। आज के हमारे बाजार व्यापक तथा व्यवहार तीनों अधिकांशतः मध्वाचारों, कपट तथा छलावे से भरे हैं। यह कानून वस्तु की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता तथा मूल्य के बारे में उपभोक्ता को जानने का अधिकार प्रदान करता है। प्रतिस्पर्धा मूल्यों पर माल की विभिन्न किस्मों को सुलभ देता है। कराने का अधिकार भी यह कानून।
इस कानून में पहली बार वह व्यवस्था की गई है कि, उपभोक्ता की शिकायत की विधिवत् सुनवाई के पश्चात उसके हितों को समुचित रूप से सुरक्षा प्रदान की जायेगी। अब उपभोक्ता को अनुचित व्यवहार, अनुचित शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का अधिकार प्राप्त है।
उपभोक्ताओं में उनके अधिकारों के प्रति जागरुकता लाने के लिये इस कानून के प्रावधानों को सरल भाषा में प्रचार-प्रसार के माध्यमों से आम आदमी को जानकारी देना आवश्यक है। इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अब किसी शोषित, पीड़ित, ठगे गये उपभोक्ता को शासन तंत्र के किसी विभाग से शिकायत करने की आवश्यकता नहीं है। अब यदि उपभोक्ता को किसी माल की या सेवा की प्रमाणिकता, विशुद्धता, परिमाण अथवा मूल्य संबंधी कोई शिकायत है तो वह क्षतिपूर्ति के लिये तत्संबंधी अधिकारिता रखने वाले जिला फोरम, राज्य आयोग अथवा राष्ट्रीय आयोग में अपनी शिकायत प्रस्तुत कर सकता है। इस कानून की विशेषता यह है कि इसमें उपभोक्ताओं की शिकायतों को शीघ्र सरल, तरीकों से, कम से कम खर्चे तथा समय में दूर करने की व्यवस्था है। शिकायतकर्ता को कोई न्याय शुल्क देने की आवश्यकता नहीं है। शिकायत संबंधित अर्धन्यायिक मंडल के समक्ष उसके कानूनी क्षेत्राधिकार के अनुसार प्रस्तुत की जा सकती है। शिकायत करने वाला कोई भी उपभोक्ता हो सकता है। उपभोक्ता का संगठन केन्द्रीय शासन, राज्य शासन, अथवा संघ, राज्य प्रशासन भी हो सकता है। शिकायत किसी व्यापारी के अनुचित व्यवहार, क्रय किये गये माल की कीमत से अधिक वसूली गई हो, के संबंध में भी हो सकता है।
इस कानून में जो त्रिस्तरीय तंत्र की व्यवस्था है, उसकी अधिकारिता के आधार पर माल अथवा सेवा का मूल्य तथा क्षतिपूर्ति की राशि यदि एक लाख से कम है, तो शिकायत जिला फोरम में दायर की जा सकती है जो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित है। शिकायत उसी जिला फोरम के समक्ष दायर जा सकती है। जहां शिकायत का कारण पैदा हुआ अथवा विरोधी पक्षकार निवास करता है। यदि माल अथवा सेवाओं का मूल्य तथा क्षतिपूर्ति के लिये मांगी गई राशि एक लाख से अधिक है तथा दस लाख से कम है तो शिकायत अधिसूचति राज्य आयोग के समक्ष की जा सकती है। और यदि क्षतिपूर्ति की याचिका राशि दस लाख से अधिक है तो शिकायत राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली के समक्ष दायर की जा सकती है। इस कानून में यह व्यवस्था है कि शिकायत व्यक्तिगत रूप से अथवा डाक द्वारा भेजी जा सकती है। शिकायत करते समय शिकायतकर्ता अपना नाम तथा सही पता, विरोधी पक्षकार का नाम तथा पता, शिकायत के संबंध में तथ्य, आरोपों का यदि कोई दस्तावेजी समर्थन है तो उसे संलग्न कर दें। तथा क्या राहतें चाहते हैं, उसका उल्लेख करें। उपभोक्ता की शिकायत की जांच के पश्चात माल में जो खराबी है वह दूर की जा सकेगी। माल को बदला जा सकेगा। जो मूल्य दिया गया है, उसे वापिस कराया जा सकेगा। अर्थात् उपभोक्ता को हानि या क्षति हुई हैं उसकी पूर्ति की जा सकेगी।
अतः उपभोक्ता जागरुकता से संगठित होकर अपने अधिकारों की रक्षा के लिये संकल्पबद्ध होकर आगे आयें। आज पर्याप्त मूल्य देने के पश्चात् भी जो उचित गुणवत्ता की, परिमाण की, शुद्धता की, मानक मापदंड की, उचित मूल्य की जो आस्था डगमगा चुकी हैं, वह इस कानूनी अस्त्र से तथा इसमें दिये गये न्यायिक तंत्र के माध्यम से बढ़ सकेंगी।
-15 मार्च विश्व उपभोक्ता संरक्षण दिवस पर सुरेश सिंह बैस “शाश्वत“ का विशेष लेख
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