द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- आज चारों ओर ज्यादातर लोगों में लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, काम एवं असंतोष देखने को मिलता है। ऐसे में जगाई-मधाई जैसे पतित पात्रों का उदाहरण लोगों के लिए प्रेरणादायक साबित होता है कि अत्यंत अनुचित व्यवहार होने के बावजूद भी अंत में उन्होंने श्री नित्यानंद की कृपा से हरि नाम में रुचि दिखाई और अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। अतः कलियुगी मानव-समाज में फैली ऐसी अस्तव्यस्तता को देखते हुए यदि कोई सचमुच सुख-शांति चाहता है तो उसे विषय-आसक्ति का त्याग कर कृष्णभावनामृत आंदोलन में सम्मिलित होना चाहिए। 22 फरवरी को इस्कॉन द्वारका में इसी उद्देश्य से नित्यानंद त्रयोदशी उत्सव मनाया जा रहा है ताकि मानव समाज की ऐसी भयावह स्थिति से उबरने और कृष्ण प्रेम प्राप्ति के लिए श्री नित्यानंद प्रभुदृ जो कि कलियुग में बलराम का अवतार हैंदृ की भक्ति-सेवा में लगकर वास्तविक सुख-शांति को प्राप्त किया जा सके।
उत्सव का आरंभ में 22 फरवरी को शाम 4 बजे से किया जाएगा। रात 9 बजे तक कीर्तन मेला का आयोजन किया जाएगा, जिसमें श्रीबलराम के स्तुतिगान के माध्यम से चैतन्य महाप्रभु की दिव्य महिमा का कीर्तन गान किया जाएगा। माना जाता है कि नित्यानंद प्रभु के नाम-कीर्तन प्रभाव से जीवों की अज्ञानता से उत्पन्न भौतिक बंधन नष्ट हो जाते हैं।
शाम 6 बजे श्री श्री गौर निताई का महा अभिषेक किया जाएगा।नित्यानंद प्रभु का प्राकट्य माघ शुक्ल की त्रयोदशी को हुआदृ नित्यानंद-जन्म माघी शुक्ला त्रयोदशी३ अतः इस दिन उनके अभिषेक को देखने का भी महत्व माना जाता है। और जो भगवान के प्राकट्य दिवस को उत्सव मानकर पालन करता है उसमें श्रीकृष्ण-सेवा की प्रवृति जागृत होती है। इस्कॉन यूथ फोरम (आईवाईएफ) के बच्चे नित्यानंद प्रभु की लीलाओं पर नृत्य नाटिका प्रस्तुत करेंगे। रात 8 बजे भोग भोग अर्पित होगा एवं तत्पश्चात महाआरती की जाएगी। अंत में सबके लिए महाप्रसाद का वितरण कार्यक्रम रहेगा।
गौरतलब है कि उत्सव की शुरुआत 21 फरवरी को शाम 7 आधिवास कार्यक्रम सो होगी, जिसमें अगले दिन के उत्सव की तैयारियों का हर्षोल्लास मनाया जाएगा। आधिवास गीत एवं कीर्तन के माध्यम से श्री निताई प्रभु के वस्त्र-आभूषण एवं शृंगार की तैयारियाँ पूर्ण की जाएँगी। 22 फरवरी को प्रातः 8 बजे श्रीमद्भागवतम लेक्चर शृंखला में कथावाचक एवं प्रचारक रवि लोचन दास द्वारा नित्यानंद प्रभु के जीवनकाल एवं यशोगान के बारे में विस्तार से वर्णन किया जाएगा।
बड़े भैया बलराम की कृपा से ही मिलेगा कृष्ण प्रेम
नित्यानंद प्रभु त्रेता युग में भगवान श्रीराम के साथ उनके छोटे भाई ‘लक्ष्मण’ के रूप में अवतरित हुए। द्वापर युग में श्रीकृष्ण के भाई ‘बलराम यानी दाऊजी’ के नाम से जाने गए और 540 वर्ष पूर्व कलियुग में यही बलराम श्रीकृष्ण के अवतार चैतन्य महाप्रभु के भाई ‘नित्यानंद प्रभु’ के रूप में अवतरित हुए। प्रभु नित्यानंद विशेषतौर से कलियुग के जीवों के बीच पतितों का उद्धार करने के लिए जाने जाते हैं। उनके आविर्भाव दिवस को हम ‘नित्यानंद त्रयोदशी’ के रूप में मनाते हैं। श्रीबलराम की महिमा को हम इस रूप में भी देखते हैं कि मूल-संकर्षण या बलराम, सभी विष्णु तत्वों के स्त्रोत हैंदृ मूल संकर्षण, महासंकर्षण, तीन पुरुषावतारदृ कारणोदकशायी विष्णु, गर्भोदकशायी विष्णु और क्षीरोदकशायी विष्णु तथा सहस्रफणों वाले अनंतदेव या शेष। वे अनंत शेष ईश्वर के भक्त अवतार हैं। वे भगवान कृष्ण की सेवा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जानते। उनके परम भक्त यानी वैष्णव इस दिन दोपहर 12 बजे तक उपवास रखते हैं तथा उसके पश्चात ही प्रसाद ग्रहण करते हैं।
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