अमेरिका-चीन संबंध पटरी पर लाने को नवंबर में हो सकती है बाइडेन-जिनपिंग मुलाकात

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अमेरिका-चीन संबंध पटरी पर लाने को नवंबर में हो सकती है बाइडेन-जिनपिंग मुलाकात

-ऐसे कई विवाद जिनके चलते दोनों देशों में बनी रहती है अनबन

वॉशिंगटन/शिव कुमार यादव/- अगले महीने यानी नवंबर में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हो सकती है। इस मुलाकात को दोनों देशों के रिश्तों को ट्रैक पर लाने के नजरिए से अहम माना जा रहा है। व्हाइट हाउस के एक सीनियर अफसर ने कहा- आने वाले समय में चीन के विदेश मंत्री अमेरिका के दौरे पर जाने वाले हैं इसके बाद ही बाइडेन और जिनपिंग की मुलाकात की जानकारी साफ तौर पर मिल पाएगी।

द वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, दोनों लीडर्स की मीटिंग सैन फ्रांसिस्को में हो सकती है। फिलहाल इसकी प्लानिंग की जा रही है। हालांकि अभी तक कुछ भी कन्फर्म नहीं है। दोनों लीडर्स पिछले साल यानी 2022 में इंडोनेशिया के बाली में हुई जी-20 समिट में मिले थे। समिट के इतर बाइडेन और जिनपिंग ने बाइलैटरल मीटिंग की थी। उस दौरान दोनों ने फेस टु फेस डिप्लोमेसी पर फोकस किया था।

चर्चा में मतभेदों पर ज्यादा फोकस रहेगा
अमेरिका और चीन के बीच ह्यूमन राइट्स, इकोनॉमी और टेक्नोलॉजी से जुड़े कई मसले हैं जिन पर मतभेद हैं। इन पर चर्चा हो सकती है। जानिए 4 विवाद जो अमेरिका और चीन को दोस्त नहीं बनने देते…

1. साउथ चाइना सी में चीन की दादागीरी
साउथ चाइना सी में चीन की दादागीरी अमेरिका को कभी रास नहीं आई। दोनों देश इस मसले पर कई बार एक दूसरे को धमका भी चुके हैं। दोनों देशों की सेनाएं इस इलाके में एक्सरसाइज करती हैं। इस वजह से उनमें टकराव की स्थिति बन जाती है।
         चीन का कहना है कि साउथ चाइना सी से अमेरिका का कोई लेना-देना नहीं है। वहीं, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एडमिनिस्ट्रेशन ने तो यहां तक कहा था कि साउथ चाइना सी पर पूरी दुनिया का हक है।

2. ताइवान पर चीन के कब्जे का डर
दक्षिण एशिया में अमेरिका ताइवान को मदद देकर चीन को काबू में रखने की रणनीति पर चलता है। 1949 में ताइवान चीन से अलग होकर नया देश बना था। चीन इस पर अपना कब्जा जताता है। इस लड़ाई में अमेरिका ताइवान के साथ है। वह उसे हथियार समेत हर मुमकिन मदद देने का वादा कर चुका है। बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन में संसद की पूर्व स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान की राजधानी ताइपेई पहुंची थीं। चीन इससे गुस्से में आ गया था।
          वहीं, ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन तो चीन की धुर विरोधी मानी जाती हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में वन चाइना पॉलिसी को मानने से मना कर दिया। इसके बाद चीन ने ताइवान से सभी तरह के संबंध तोड़ लिए थे। लेकिन चीन हमेशा से ताइवान को अपना हिस्सा मानता रहा है।

3. हांगकांग में लोकतंत्र का दमन
हांगकांग में चीन लगातार अपना दखल बढ़ाता जा रहा है। हांगकांग में लोकतंत्र का समर्थन करने वाले इसका विरोध करते हैं। अमेरिका लोकतंत्र समर्थकों का सपोर्ट करता है। इसका असर चीन के साथ उसके संबंधों पर भी पड़ा है।

4. उइगर मुसलमानों पर चीन का अत्याचार
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि चीन उइगर मुसलमानों की आवाज को दबा रहा है। उन्हें बिना कारण कैद करके रखा जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ह्यूमन राइट्स के पक्षधर माने जाते हैं। अमेरिकी संसद में इस मुद्दे पर बिल भी पास हो चुका है। ऐसे में यह दोनों देशों के बीच बड़ा मसला है।
          अमेरिकी मॉनिटरिंग ग्रुप के मुताबिक, शिनजियांग में चीनी अत्याचार का शिकार होने वाले उइगर मुसलमानों की संख्या 10 लाख से ज्यादा है। दूसरी तरफ चीन इन आरोपों से इंकार करता है। चीन ने पूर्वी तुर्कस्तान पर 1949 में कब्जा कर लिया था। उइगर मुसलमान तुर्किक मूल के माने जाते हैं। शिनजियांग में कुल आबादी का 45 फीसदी उइगर मुसलमान हैं। 40 फीसदी आबादी हान चीनी हैं।
          चीन ने तिब्बत की तरह शिनजियांग को ऑटोनॉमस रीजन घोषित कर रखा है। अमेरिका ने उइगर मुसलमानों पर अत्याचार में कथित रूप से शामिल 28 चीनी संस्थानों को ब्लैकलिस्ट किया है।इन संस्थानों को निगरानी सूची में डाल दिया गया था। ऐसा करने से सरकार की मंजूरी के बगैर इन कंपनियों से कोई भी सौदा करने पर पाबंदी लग जाती है।

शिनजियांग में उइगरों को टॉर्चर किया जा रहा
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि शिनजियांग में उइगरों को बंधक बनाकर टॉर्चर किया जा रहा है। उन्हें हिरासत में रखा जा रहा है। जबरन मेडिकल ट्रीटमेंट कराया जा रहा है। उनके अंग निकालकर ब्लैक मार्केट में बेचे जा रहे हैं। इन लोगों के साथ जेंडर और सेक्शुअल वायलेंस भी हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया कि चीन के शिनजियांग क्षेत्र में बंधक बना कर रखे गए 15 लाख से ज्यादा उइगर, जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है।

उइगर मुस्लिमों की जबरन नसबंदी
चीनी सरकार के अधिकारी डिटेंशन सेंटर में अल्पसंख्यकों को कैद करके रखते हैं। यहां उन्हें जबरन दवाइयां देते हैं। उन पर परिवार नियोजन और बर्थ कंट्रोल नीतियों की भेदभावपूर्ण नीति लागू की जाती है।

चीनी युवाओं की उइगर मुस्लिम लड़कियों से जबरन शादी
उइगर मुस्लिमों के विरोध को दबाने का बड़ा दांव चला है। यहां की उइगर मुस्लिम आबादी की पहचान को खत्म करने के लिए उइगर लड़कियों की जबरन शादी चीनी युवाओं से कराई जा रही है। चीन के हान समुदाय के युवाओं को शादी के लिए विशेष भत्ते दिए जा रहे हैं। वॉशिंगटन के उइगर ह्यूमन राइट प्रोजेक्ट के मुताबिक, कोई उइगर लड़की जबरन शादी का विरोध करती है तो उसके पेरेंट्स को जेल में डाल दिया जाता है।

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