• DENTOTO
  • सीधी लड़ाई की बजाये कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश में तालिबान

    स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

    शिव कुमार यादव

    वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

    संपादक

    भावना शर्मा

    पत्रकार एवं समाजसेवी

    प्रबन्धक

    Birendra Kumar

    बिरेन्द्र कुमार

    सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

    Categories

    May 2025
    M T W T F S S
     1234
    567891011
    12131415161718
    19202122232425
    262728293031  
    May 24, 2025

    हर ख़बर पर हमारी पकड़

    सीधी लड़ाई की बजाये कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश में तालिबान

    -गांवों व छोटे शहरों पर कब्जा कर बंद कर रहा काबूल के आर्थिक गलियारे, -दोहा में तालिबान और अफगानिस्तान वार्ता में युद्ध विराम की थी विश्व को उम्मीद

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/अफगानिस्तान/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- अफगानिस्तान में तालिबान अपना प्रभाव बढ़ाने व कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए अब दोहरी चाल चल रहा है। जिसके तहत तालिबान एक तरफ अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता कर रहा है वहीं दूसरी ओर अफगानिस्तान के गांवों व छोटे शहरों में अपनी पकड़ मजबूत कर काबूल के आर्थिक गलियारें बंद कर रहा है। ताकि काबूल का व्यापार ठप्प कर सके। जिसके बाद ही तालिबान अफगान सरकार के साथ बात करने की रणनीति पर काम करेगा। हालांकि दोहा की शांति वार्ता में पूरे विश्व को शांति की काफी उम्मीद थी लेकिन तालिबान के रूख से यह स्पष्ट हो गया कि तालिवान अभी युद्ध विराम नही चाहता है।
                             भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबानी वहां गावों, कस्बों में प्रभावी रूप में दिखाई दे रहे हैं और कारोबार, व्यापार के रूट पर कब्जा करने की उनकी कोशिशें शुरू हो चुकी हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के बयान को भी देश में गहराते संकट के रूप में देखा जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में तालिबान और अफगान सेना के बीच में जंग से हालात कुछ जटिल हो सकते हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी इस स्थिति से इनकार नहीं कर रहे हैं।
                           भारत समेत दुनिया के तमाम देशों को कतर की राजधानी दोहा में तालिबान और अफगानिस्तान सरकार तथा राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की वार्ता से काफी उम्मीदें थी। माना जा रहा था कि बकरीद के अवसर को देखकर तालिबान युद्ध विराम के लिए राजी हो जाएगा। इस बैठक में पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई को भी जाना था, लेकिन आखिरी वक्त में वह नहीं गए। गुलबुद्दीन हिकमतयार गुट के प्रतिनिधि समेत 10 प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया था। अमेरिका की तरफ से शांतिदूत जलमय खलीलजादा भी दोहा में मौजूद थे। अफगानिस्तान के दूसरे नंबर के नेता अब्दुला अब्दुल्ला ने नेतृत्व किया और तालिबान की तरफ से मुख्य वार्ताकार अब्दुल गनी बरादर रहे। प्राप्त जानकारी के अनुसार शनिवार को पहले और रविवार को दूसरे दौर की वार्ता के बाद तालिबान के नेता अब्दुल गनी बरादर ने युद्ध विराम के प्रस्ताव पर चुप्पी साध ली। इससे पहले तालिबान ने युद्ध विराम के लिए दो प्रस्ताव दिए थे। उसका पहला प्रस्ताव था कि अफगानिस्तान की विभिन्न जेलों में बंद 7000 लोगों को रिहा कर दिया जाए और उसके तमाम नेताओं के ऊपर से संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध हटा दिए जाएं। युद्ध विराम और युद्ध बंदियों की रिहाई पर चर्चा भी हुई, लेकिन अंततः कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया।

    दोहा में दो दिन की वार्ता का भले ही ठोस नतीजा नहीं निकला, लेकिन आगे की उम्मीद खत्म नहीं हुई है। तालिबान और अफगानिस्तान की सरकारें सहमत हुई हैं कि वे देश की आधारभूत संरचनाओं को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। दोनों ने माना कि यह राष्ट्र की संपत्ति है और जनता के हितों से जुड़ी है। दूसरी सहमति यह बनी की इस तरह की शांति वार्ता आगे जारी रहेगी और शांति की पहल के लिए प्रयास तेजी से होंगे। वार्ता के इस दो दिन के नतीजे ने अमेरिका समेत करीब दर्जन भर देशों को निराश किया। उन्हें उम्मीद थी कि संघर्ष विराम की सहमति बन जाएगी। इससे तालिबान और अफगानिस्तान की सरकार के बीच में राजनीतिक वार्ताओं का दौर बढ़ेगा और शांति की पहल में तेजी आएगी। बताते हैं कि ठोस नतीजे न आने पर अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, चेक गणराज्य, ब्रिटेन, डेनमार्क, जर्मनी, नीदरलैंड, स्वीडन समेत अन्य ने तालिबान से शांति की अपील की। इन देशों के राजनयिकों ने कहा कि तालिबान को हथियार डाल देना चाहिए। उसे बताना चाहिए कि वह शांति प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्ध है। भारत का भी कहना है कि अफगानिस्तान में लोकतंत्र की बहाली और वहां की आवाम की खुशहाली के लिए शांति की स्थापना जरूरी है। तालिबान को इसमें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।                         तालिबान के नेता मौलवी हिबातुल्लाह अंखुजादा के बयान ने शांति की थोड़ी उम्मीद जताई। दोहा में शांतिवार्ता जारी रहने के दौरान उनका बयान आया था। अंखुजादा ने कहा कि तालिबान देश में राजनीतिक समाधान चाहता है। अफगानिस्तान सरकार के वार्ताकार भी चाहते हैं कि देश को सीरिया जैसी स्थिति से बचाना जरूरी है। इसलिए इस्लामिक सिद्धांतों के आधार पर युद्ध विराम के बाद शांति के प्रयास तेजी से आगे बढ़ने चाहिए।
                                 अफगानिस्तान पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि शांति वार्ता भले हुई है, लेकिन अफगानिस्तान के जमीनी हालात में अभी कोई बदलाव नहीं दिखाई दे रहा है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी मानते हैं कि अफगानिस्तान के गांव और कस्बों में तालिबानी प्रभाव बनाते दिखाई दे रहे हैं। सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों से जुड़े सूत्रों का आकलन है कि अफगानिस्तान के हालात दिन-प्रतिदिन खराब हो रहे हैं। उनका कहना है कि तालिबानी अभी शहरों में सेना के लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। वह जानबूझकर बच रहे हैं। यह उनकी एक रणनीति भी हो सकती है। ऐसा लग रहा है कि वे अफगानिस्तान की सेना और सरकार पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाते दिखाई दे रहे हैं। तालिबानियों की कोशिश धीरे-धीरे कारोबार और व्यापार के रूट पर कब्जा करने की है। अफगानिस्तान में ढाई साल तक सेवा देकर लौटे सूत्र का कहना है कि तालिबान क्या करेगा, यह कहना मुश्किल है। मुझे लग रहा है कि उनका मुख्य लक्ष्य अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करना है। सूत्र का कहना है कि नादर्न अफगानिस्तान में तालिबानियों को सफलता मिल रही है। उन क्षेत्रों में भी उन्हों कब्जा किया, जहां उन्हें पहले घुसने के लिए भी नाको चने चबाने पड़ते थे।
                                मैमान शहर, कांधार, गजनी, तालुकान शहर समेत 15 प्रांतों में अफगान सेना और तालिबान के बीच में लड़ाई जारी है। बताते हैं कि कहीं तालिबानी हावी होकर कब्जा कर ले रहे हैं तो कभी सेना उससे उनसे मुक्त करा ले रही है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से प्राप्त सूचना के मुताबिक पिछले 36 घंटे में अफगानिस्तान में कोई 300 के करीब लड़ाके मारे गए और 250 के करीब घायल हुए हैं। बामियान, निमरुज, जैजान प्रांत में भी कब्जे को लेकर जंग जारी है।
                               तालिबान काबुल में आए तो क्या होगा? वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि ऐसा हुआ तो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अब्दुल गनी, पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, तमाम सैन्य अफसरों को दूसरे देशों में भागकर शरण लेनी पड़ेगी। यही सवाल विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से पूछने पर उनका कहना है कि काबुल तक आना तालिबान के लिए बहुत आसान नहीं है। 70-80 हजार तालिबान लड़ाकों को इसके लिए करीब तीन लाख अफगानिस्तान की सेना, सुरक्षा बल से लड़ना पड़ेगा। फिर भी इस तरह की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। भारतीय कूटनितिज्ञों का मानना है कि इस स्थिति के आने तक अफगानिस्तान में खून-खराबे की स्थिति चरम पर पहुंच सकती है।
                               पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में शांति वार्ता की आड़ में आंख में धूल झोकना जारी रखा। अब उसके इस खेल की कलई खुलने लगी है। विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी एसके शर्मा कहते हैं कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने पाकिस्तान की भूमिका पर तल्ख टिप्पणी की है। इसका अर्थ समझिए। एसके शर्मा का कहना है कि तालिबान और पाकिस्तान के संबंध पहले से हैं। अभी भी हैं। वह दोहरी चाल चल रहा है। पाकिस्तान की मंशा यहां एक ऐसे अफगानिस्तान के रूप में दिखाई दे रही है, जहां वह अस्थिरता फैलने पर उसका अपने हित में उपयोग कर सकेगा। इसे अफगानिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति भी समझ रहे हैं।

    About Post Author

    Subscribe to get news in your inbox