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    अदालतों में प्रॉस्टिट्यूट-मिस्ट्रेस जैसे शब्द अब नही होंगे इस्तेमाल

    -सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए जारी की नई शब्दावली, इसे 3 महिला जजों ने बनाया

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/– सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और दलीलों में अब जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च की है। कटक में तीन महीने पहले हुई डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन अवसर पर इस हैंडबुक को सीजेआई चंद्रचूड़ ने किया जारी।

                   8 मार्च को महिला दिवस पर सुप्रीम कोर्ट में हुए इवेंट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि कानूनी मामलों में महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल रुकेगा, जल्द डिक्शनरी भी आएगी। बुधवार 16 अगस्त को हैंडबुक जारी करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि इससे जजों और वकीलों को ये समझने में आसानी होगी कि कौन से शब्द रूढ़िवादी हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है।

    जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक में क्या है
    ब्श्रप् चंद्रचूड़ ने बताया कि इस हैंडबुक में आपत्तिजनक शब्दों की लिस्ट है और उसकी जगह इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द और वाक्य बताए गए हैं। इन्हें कोर्ट में दलीलें देने, आदेश देने और उसकी कॉपी तैयार करने में यूज किया जा सकता है। यह हैंडबुक वकीलों के साथ-साथ जजों के लिए भी है। इस हैंडबुक में वे शब्द हैं, जिन्हें पहले की अदालतों ने यूज किया है। शब्द गलत क्यों हैं और वे कानून को और कैसे बिगाड़ सकते हैं, इसके बारे में भी बताया गया है।

    शब्द रिप्लेसमेंट
    अफेयर- शादी के इतर रिश्ता
    प्रॉस्टिट्यूट/हुकर (पतुरिया)- सेक्स वर्कर
    अनवेड मदर (बिनब्याही मां)- मां
    चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूड – तस्करी करके लाया बच्चा
    बास्टर्ड- ऐसा बच्चा जिसके माता-पिता ने शादी न की हो
    ईव टीजिंग- स्ट्रीट सेक्शुअल हैरेसमेंट
    प्रोवोकेटिव क्लोदिंग/ड्रेस (भड़काऊ कपड़े)- क्लोदिंग/ड्रेस
    एफेमिनेट (जनाना)- इसकी जगह जेंडर न्यूट्रल शब्दों का प्रयोग
    गुड वाइफ- वाइफ (पत्नी)
    कॉन्क्युबाइन/कीप (रखैल)- ऐसी महिला जिसका शादी के इतर किसी पुरुष से शारीरिक संबंध हो।

    हैंडबुक जागरूक करने बनाई, आलोचना करने नहीं – सीजेआई
    ब्श्रप् चंद्रचूड़ ने कहा कि इस हैंडबुक को तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना करना या संदेह करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता की परंपरा चली आ रही है। कोर्ट का उद्देश्य यह बताना है कि रूढ़िवादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है, ताकि कोर्ट महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से बच सकें। इसे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा।

    कलकत्ता हाईकोर्ट की टीम ने तैयार की शब्दावली
    सीजेआई चंद्रचूड़ ने जिस कानूनी शब्दावली के बारे में बताया है, उसे कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया है। इस समिति में रिटायर्ड जस्टिस प्रभा श्रीदेवन और जस्टिस गीता मित्तल और प्रोफेसर झूमा सेन शामिल थीं, जो फिलहाल कोलकाता में वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज में फैकल्टी मेम्बर हैं।
                  चीफ जस्टिस ने मार्च में कहा था कि हमने हाल ही में एक एलजीबीटीक्यू हैंडबुक लॉन्च की है। जल्द ही हम जेंडर के लिए अनुचित शब्दों की एक लीगल ग्लॉसरी भी जारी करने जा रहे हैं। अगर आप 376 का एक जजमेंट पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि कई ऐसे शब्द हैं जो अनुचित हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल होता है। लीगल ग्लॉसरी से हमारी न्यायपालिका छोटी नहीं होगी और समय के साथ हम कानूनी भाषा को लेकर आगे बढ़ेंगे, क्योंकि हम भाषा को विषय और चीजों से ज्यादा महत्व देते हैं।
                  महिला दिवस पर एक इवेंट में सीजेआई ने बताया था- मैंने ऐसे फैसले देखे हैं जिनमें किसी महिला के एक व्यक्ति के साथ रिश्ते में होने पर उसे रखैल लिखा गया। कई ऐसे केस थे जिनमें घरेलू हिंसा अधिनियम और आईपीसी की धारा 498ए के तहत एफआईआर रद्द करने के लिए आवेदन किए गए थे, उनके फैसलों में महिलाओं को चोर कहा गया है।

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