अनीशा चौहान/- प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों की बर्खास्तगी से जुड़े विधेयक की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को लेकर विपक्ष में गहरा मनमुटाव देखने को मिल रहा है। विपक्षी दल लगातार इस समिति से दूरी बना रहे हैं। सबसे पहले तृणमूल कांग्रेस ने इसे तमाशा करार देते हुए विरोध जताया। इसके बाद समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी साफ कर दिया कि उनकी पार्टी JPC का हिस्सा नहीं बनेगी। अब आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी इस समिति का विरोध कर दिया है।
कांग्रेस के लिए मुश्किल हालात
टीएमसी, सपा और AAP के इस फैसले के बाद कांग्रेस पर दबाव बढ़ गया है। विपक्षी एकजुटता को देखते हुए पार्टी को अब अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। दरअसल, कांग्रेस अब तक इस समिति का हिस्सा बनने के पक्ष में दिखाई दे रही थी। लेकिन विपक्ष के कई बड़े दलों के बहिष्कार के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस विपक्ष की एकता को प्राथमिकता देगी या फिर अपनी पुरानी लाइन पर कायम रहेगी।
पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि संसदीय समितियों की कार्यवाही अदालतों में महत्व रखती है और विवादित विधेयकों पर जनमत को प्रभावित करती है। हालांकि, विपक्षी दलों के बायकॉट से समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। यही कारण है कि कांग्रेस के भीतर भी अब मतभेद सामने आ रहे हैं।
अखिलेश यादव का बयान
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस विधेयक पर कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि यह कानून संघीय ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने तर्क दिया कि राज्यों में मुख्यमंत्री अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले वापस ले सकते हैं और उस पर केंद्र का कोई नियंत्रण नहीं होगा। चूंकि कानून-व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए केंद्र सिर्फ CBI और ED जैसी एजेंसियों द्वारा दर्ज मामलों को ही देख सकता है।


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