नई दिल्ली/नजफगढ़/उमा सक्सेना/- नई दिल्ली के नजफगढ़ ब्लॉक स्थित कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली द्वारा शुक्रवार को धान की पराली प्रबंधन को लेकर एक खंड-स्तरीय किसान जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना “फसल अवशेष का यथास्थान प्रबंधन” के अंतर्गत आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य किसानों को पराली जलाने की बजाय वैज्ञानिक और पर्यावरण अनुकूल तकनीकों से अवगत कराना रहा।
कार्यक्रम के माध्यम से किसानों को यह बताया गया कि पराली जलाना जहां एक ओर पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है, वहीं दूसरी ओर मिट्टी की उर्वरता को भी नुकसान पहुंचाता है। विशेषज्ञों ने किसानों को वैकल्पिक तरीकों को अपनाकर पराली को खेत के लिए लाभकारी संसाधन में बदलने की जानकारी दी।

वैज्ञानिक तरीकों से पराली प्रबंधन पर जोर
कार्यक्रम की शुरुआत कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा की गई, जिन्होंने उपस्थित किसानों का स्वागत करते हुए योजना के उद्देश्यों की विस्तृत जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि धान की कटाई के बाद खेत में बची पराली को नष्ट करने की बजाय उसका उपयोग जैव-डीकंपोजर घोल बनाकर किया जा सकता है। इससे पराली तेजी से सड़ती है, मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है और अगली फसल के लिए भूमि अधिक उपजाऊ बनती है।
उन्होंने पराली प्रबंधन के विभिन्न वैज्ञानिक तरीकों पर प्रकाश डालते हुए किसानों से इन्हें अपनाने की अपील की, ताकि प्रदूषण पर रोक के साथ-साथ कृषि लागत में भी कमी लाई जा सके।
हैप्पी सीडर और आधुनिक कृषि यंत्रों की जानकारी
कार्यक्रम के दौरान कृषि प्रसार विशेषज्ञ ने किसानों को धान की कटाई के समय कम्बाइन हार्वेस्टर में स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (SMS) के उपयोग के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि SMS युक्त हार्वेस्टर से कटाई करने पर पराली का बेहतर प्रबंधन संभव होता है। साथ ही उन्होंने हैप्पी सीडर, सुपर सीडर और जीरो टिलेज मशीन जैसी अत्याधुनिक कृषि तकनीकों की कार्यप्रणाली को विस्तार से समझाया, जिससे गेहूं की सीधी बुवाई पराली के बीच की जा सकती है।
विशेषज्ञों ने किसानों को यह भी बताया कि इन तकनीकों के उपयोग से समय, लागत और संसाधनों की बचत होती है और पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है।

पराली जलाने से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान पर चेतावनी
मृदा विज्ञान विशेषज्ञ ने अपने संबोधन में पराली जलाने से होने वाले दुष्परिणामों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि खुले खेतों में पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है, जिससे न केवल आम जनता बल्कि स्वयं किसानों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं और आवश्यक पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस व सल्फर भी समाप्त हो जाते हैं।
उन्होंने किसानों को जागरूक करते हुए कहा कि पराली प्रबंधन की सही तकनीक अपनाकर मिट्टी की सेहत को लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है।

फसल विविधीकरण से मिलेगा किसानों को लाभ
कार्यक्रम में बागवानी विशेषज्ञ द्वारा धान-धान फसल प्रणाली में सुधार लाने के लिए फसल विविधीकरण को अपनाने पर बल दिया गया। उन्होंने बताया कि फसल चक्र में बदलाव करने से न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि किसानों की आर्थिक आय में भी वृद्धि होती है।
अंत में किसानों को पराली जलाने से होने वाले कानूनी व पर्यावरणीय नुकसान से अवगत कराया गया और मशीनों के सहयोग से फसल अवशेष प्रबंधन की तकनीकों का व्यावहारिक उदाहरण प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्थानीय किसानों ने भाग लिया और पराली प्रबंधन के संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का संकल्प लिया।


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