नई दिल्ली/सिमरन मोरया/- जीएसटी काउंसिल ने हाल में कई चीजों पर टैक्स में कमी की है। यह कटौती 22 सितंबर से लागू होगी। लेकिन इससे खासकर एफएमसीजी कंपनियों के सामने समस्या पैदा हो गई थी। यह प्री-पैकेज्ड कमोडिटीज पर एमआरपी को लेकर थी। लेकिन सरकार ने उनकी समस्या का समाधान कर दिया है। बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक उपभोक्ता मामलों के विभाग ने एक नोटिफिकेशन जारी किया है। इसमें कहा गया है कि कंपनियां 31 दिसंबर, 2025 तक या जब तक उनका पुराना स्टॉक खत्म नहीं हो जाता, तब तक नया एमआरपी लिख सकती हैं।
नोटिफिकेशन के मुताबिक नया एमआरपी को स्टैंप, स्टिकर या ऑनलाइन प्रिंटिंग के जरिए लगाया जा सकता है। लेकिन पुराने एमआरपी को मिटाना नहीं है। वह भी दिखनी चाहिए। नए और पुराने एमआरपी में जो अंतर होगा, वह जीएसटी में बदलाव के कारण होना चाहिए। इसका मतलब है कि टैक्स जितना कम हुआ है, एमआरपी भी उतनी ही कम होना चाहिए। साथ ही कंपनियों को इसके बारे में अखबारों में विज्ञापन भी देना होगा। उन्हें अपने डीलरों को भी बताना होगा।
क्या होगा फायदा
इसके साथ ही कंपनियों को सरकार के संबंधित विभागों को भी इस बारे में जानकारी देनी होगी। इससे लोगों को पता चल जाएगा कि कीमतें बदल गई हैं। सरकार ने यह भी कहा है कि कंपनियां पुराने पैकेजिंग मटेरियल का इस्तेमाल 31 दिसंबर तक कर सकती हैं। बस उन्हें नई एमआरपी को स्टैंप, स्टिकर या ऑनलाइन प्रिंटिंग के जरिए दिखाना होगा।
जानकारों का कहना है कि सरकार का यह फैसला सही समय पर लिया गया है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि उपभोक्ताओं को पारदर्शी तरीके से संशोधित कीमतों की जानकारी मिले। साथ ही उद्योगों को पैकेजिंग सामग्री की बड़े पैमाने पर बर्बादी से बचने में मदद मिलेगी इससे एफएमसीज, दवा और अन्य क्षेत्रों को बड़ी राहत मिलेगी जिनके पास पैकेजिंग का बहुत सामान रखा रहता है।
दोबारा यूज
इससे कंपनियां मौजूदा पैकेजिंग मटेरियल का दोबारा इस्तेमाल कर सकती हैं। इससे कच्चे माल की लागत कम होगी और नियमों का पालन भी हो जाएगा। कई कंपनियों के पास दो से तीन महीने का पैकेजिंग का स्टॉक है। अधिकारियों का कहना है कि असली चुनौती सप्लाई चेन में स्टॉक को ट्रैक करने और कीमतों को अपडेट करने में है। इसके लिए अलग से लोगों को लगाना होगा।


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