दो गज़लें  बड़ा आदमी नहींं बिकता

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December 29, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

दो गज़लें  बड़ा आदमी नहींं बिकता

राजेन्द्र रंजन गायकवाड सेवानिवृत्त, केंद्रीय जेल अधीक्षक

कौन कहता है , बड़ा आदमी नहीं बिकता,
मज़ूर छोड़, अमीर का टैग नहीं दिखता।
दुकान में ख़्वाब बिकते हैं, राशन कार्ड पे,
मयखाने भरें है ,ग्वाले का दूध नहीं बिकता।
हो रहें हैं ज़मीर के सौदे, हर घड़ी यहाँ पर,
इज़्ज़त-ए-ज़िंदगी, खरीददार नहीं दिखता।
लालच की आँधियों में, उड़ रहें  हैं लोग,
हौसला-ए-वफ़ा , सरे-आम नहीं बिकता।
ख़ुद को बेच के, ख़रीदीं है दुनियां रसूख ने,
लैला मजनूं जैसा प्यार, कभी नहीं बिकता।
हर कदम पर है, सौदेबाज़ी सियासत में,
देख ले ख़ुदा का नूर, कभी नहीं बिकता।

गज़ल
वो यार पुराने, वो मीठी बातें सुहानी,
दिल में बसी है ,वो मुलाकातें पुरानी।
हर लम्हा गुज़ारा जो साथी के साथ,
याद बनकर सताती है , बीती कहानी।
कभी हंसी-ठिठोली, कभी गम की बातें,
हर पल में बसी है, दोस्तों की छेड़ाखानी।
अब सूने रास्ते, खामोशियां हैं आबाद,
दिल की गलियों में गूंजती है मनमानी।
वो रातें जागीं, वो सपनों की ऊंची उड़ान,
धड़कन में बसी है, दोस्ती की कुरबानी।
वक्त ने छीन लिया, वो साथी का साथ,
दिल में बसी है,  सालों से उठती जवानी ।
कभी मिलें तो फिर वही बात करना दोस्त
दोस्तों की, यादगार बड़ी मेहरबानी।
राजेन्द्र रंजन गायकवाड

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