
दिल्ली/शिव कुमार यादव/- भाजपा के राष्ट्रीय सचिव, जाट नेता, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, कृषि मंत्री या फिर यूं कहिए भाजपा के कदावर नेता यानी औमप्रकाश धनखड़ जिनके इर्द-गिर्द हरियाणा की राजनीति घूमती दिखाई दे रही थी। ऐसे नेता हरियाणा के विधानसभा चुनावों में बादली सीट से चुनाव हार गये और वो भी पूरी 10 हजार वोटों के अंतर से। ऐसा नही था कि इस बार भाजपा ने उन्हें सम्मान नही दिया या कोई मदद नही की। बादली ही नही बल्कि हरियाणा के दूसरे क्षेत्रों के साथ-साथ नजफगढ़ व गुरूग्राम के भाजपा नेताओं ने भी बादली में दिन-रात डेरा डाले रखा लेकिन अफसोस फिर भी भाजपा के कदावर नेता चुनाव हार गए।
हालांकि इस बार जीत की उम्मीदें ज्यादा लगाई जा रही थी। बादली विधानसभा सीट पर जीत को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय सचिव ओ पी धनखड़ पूरी तरह से आश्वस्त थे, हो भी क्यों नही क्योंकि वह भाजपा के राष्ट्रीय सचिव जो थे। उनके कार्यकर्ता तो यहां तक कह रहे थे कि प्रदेश में चाहे बेशक कांग्रेस पार्टी की सरकार बन जाए लेकिन इस बार औमप्रकाश धनखड़ की जीत पक्की हैं। हो भी क्यों नही जिस संजय कबलाना को लेकर पिछली बार धनखड़ साहब मुश्किल में आ गये थे और चुनाव हार गये थे, उसी संजय को बेरी से भाजपा का टिकट दिलाकर धनखड़ साहब ने अपना रास्ता साफ कर लिया था। लेकिन इतने जतन के बाद भी धनखड़ साहब मतदाताओं व भाजपा कार्यकर्ताओं का मन नही पढ़ पाए और एकबार फिर चुनाव हार गए।
हरियाणा सरकार के ओपीडी यानी औमप्रकाश धनखड़ हरियाणा में किसान आंदोलन के खिलाफ भाजपा के जाट नेता के रूप में उभरे थे। उनकी इसी उपलब्धि को देखते हुए भाजपा ने पहले उन्हे प्रदेश अध्यक्ष बनाया और फिर बाद में राष्ट्रीय सचिव बना दिया। विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने रोहतक व झज्जर जिलों में कांग्रेस नेता भूपेन्द्र हुड्डा की काट के लिए जाट नेता के रूप में ओ पी धनखड़ को आगे किया था। क्योंकि हरियाणा में भाजपा द्वारा जाट नेता को मुख्यमंत्री नही बनाये जाने को लेकर एक अरसे से जाट समुदाय भाजपा से नाराज चल रहा था और किसान आंदोलन भी इसी नाराजगी की बानगी था। भाजपा आलाकमान ने धनखड़ साहब की हर बात मानी और उन्होने जो कहा वही हुआ भी। लेकिन हरियाणा चुनाव में धनखड़ साहब जनता जनार्दन के मन को नही टटोल पाए। संजय कबलाना को बेरी से टिकट दिलाना भी उनके लिए नुकसान भरा निर्णय ही साबित हुआ। भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी के इस निर्णय पर अंदर ही अंदर अपना विरोध भी प्रकट किया।
अब यहां सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि जिस जाट समुदाय के बल पर धनखड़ साहब उछल रहे थे और भाजपा ने उन्हे जाट नेता के रूप में पेश किया था उसी जाट समुदाय ने उन्हे गच्चा दे दिया। धनखड़ साहब के कार्यकर्ता हरियाणा में जिस कांग्रेस की जीत की बात करते दिखाई दे रहे थे उसी कांग्रेस को भाजपा की सधी हुई नीति ने ध्वस्त कर दिया और भाजपा के बड़े नेताओं की रैलियों ने चुनाव का पूरा समीकरण बदल दिया। लेकिन फिर भी धनखड़ साहब चुनाव हार गए। तो क्या दो बार चुनाव हारने के बाद भी भाजपा धनखड़ साहब के लिए नतमस्तक रहेगी या फिर कोई और रास्ता चुनेगी।
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