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  • इससे ज्यादा और झुका तो जीते जी ही मर जाऊंगा

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    June 1, 2025

    हर ख़बर पर हमारी पकड़

    इससे ज्यादा और झुका तो जीते जी ही मर जाऊंगा

    इससे ज्यादा और झुका तो
                  जीते जी ही मर जाऊंगा

    हद से ज्यादा क्या होगा की,
              जीवन का सुख खो दूंगा मैं l
    और बिछड़ कर तन्हाई में,
             फूट फूट कर रो दूंगा मैं ll
    पर चुटकी भर सुख की खातिर
         मैं मरने से डर जाऊंगा?
    इससे ज्यादा और झुका तो
                  जीते जी ही मर जाऊंगा

    कहो तुम्हारी ज़िद के आगे,
          मेरुदंड को धनुष बना दूँ l
    स्वाभिमान की थाती को मैं,
         तेल छिड़क कर आग लगा दूँ ll
    स्वर्णमृग की चाह जगी तो
                 पीड़ाओं से भर जाऊंगा
    इससे ज्यादा और झुका तो
                  जीते जी ही मर जाऊंगा l

    तुमको ऐसा लगता होगा,
          अपनी ज़िद पर अड़ा हुआ हूँ l
    पर सच है की सर-शैया पर,
          रक्तरंजित हो पड़ा हुआ हूँ ll
    ठाना जिसके दिल घर करना
          मैं बस उस के घर जाऊंगा
    इससे ज्यादा और झुका तो
                  जीते जी ही मर जाऊंगा l

         बौनापन अभिशाप नहीं है
              बौनो का भी क़द होता है
    अंतहीन हो सफर भले पर
         उसका भी मक़सद होता है
    डोर सब्र की छूट गईं तो
       हद के पार गुजर जाऊंगा
    इससे ज्यादा और झुका तो
                  जीते जी ही मर जाऊंगा

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