• DENTOTO
  • 24 अक्टूबर विजया दशमी के अवसर पर विशेष-राम और रावण का युद्ध आज भी लड़ा जा रहा है- सुरेश सिंह बैस “शाश्वत“

    स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

    शिव कुमार यादव

    वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

    संपादक

    भावना शर्मा

    पत्रकार एवं समाजसेवी

    प्रबन्धक

    Birendra Kumar

    बिरेन्द्र कुमार

    सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

    Categories

    April 2025
    M T W T F S S
     123456
    78910111213
    14151617181920
    21222324252627
    282930  
    April 30, 2025

    हर ख़बर पर हमारी पकड़

    24 अक्टूबर विजया दशमी के अवसर पर विशेष-राम और रावण का युद्ध आज भी लड़ा जा रहा है- सुरेश सिंह बैस “शाश्वत“

     हर युग में भगवान ने अवतार लेकर पृथ्वी से पाप और पापियों का संहार किया है! त्रेता युग में भी ईश्वर ने राम के रूप में अवतार लेकर उस समय के घोर अत्याचारी लंकापति रावण का नाश किया या! बुराई पर अच्छाई की विजय का ही प्रतीक है विजयादशमी! रामरुपी सत्य की रावण रूपी असत्य प्रवृत्तियों पर यह विजय हर युगों में होती रहेगी! बुराई पर अच्छाई की यह विजय आने वाले भविष्य के युगों में भी तबतक होती रहेगी, जबतक थोड़े बहुत लोग धार्मिक-आध्यात्मिक प्रेरणा से भगवान राम के जीवन- आचरण को अपने जीवन में मर्यादित ढंग से लागू करते रहेंगे। जैसे रावण असूरों का राजा होते हुए भी स्वयं असुर नहीं था। उसकी प्रवृत्तिर्वा दैत्यों जैसी असुर प्रकृति की थी तभी उसे असुराधिपति का संबोधन दिया गया। हालांकि रावण ब्राम्हण कुल में पैदा हुआ था। वह विश्रवा ऋषि का पुत्र था, उसकी माता का नाम कैकसी था। धनपति कुबेर उसका सौतेला भाई था, वही कुबेर देवताओं की श्रेणी में गिने जाते हैं। धन के देवता कुबेर कहलाते हैं। रावण अपनी अपरिमित शक्ति के कारण मदान्ह हो गया था। उसने अपने भाई को अर्थात कुबेर को भी नहीं छोड़ा था, उसने कुबेर से युद्ध करके उसका पुष्पक विमान छीन लिया। बाद में रावण ने इन्द्र, वरुण, यक्ष और यम आदि अनेक देवताओं को पराजित किया था। रावण कपिराज बाली को देखकर दुम दबाकर भागता था, बाली से वह कभी नहीं जीत पाया।
              देवताओं से अमरत्व छीनकर रावण ने लंका को अपनी राजधानी बनाया। ग्रंथों में उल्लेखित है कि रावण की लंका में समस्त प्रकार की विलासिता, एश्वर्य और आमोद-प्रमोद के अप्रतिम साधन थे। ऐसी एश्वर्य’ शाली लंका में राज कर रहा था रावण! ऐसा सुख तो देवताओं के लिये भी दुर्लभ था। बाल्मिकी रामायण के अनुसार पर्वत शिखर पर स्थित हजारों बलशाली राक्षसों के पहरे में रावण का राजभवन स्वर्ण का बना हुआ था। राजभवन के चारो ओर जल से भरी तथा कमल पुष्पों से सुशोभित खाई थी इस भवन में सिर्फ स्वर्ण ही नहीं था, बल्कि उसमें जगह जगह मोती माणिक्य भी जड़े हुये थे। रावण का अंतःपुर चंदन, गुग्गल आदि सुगंधित द्रव्यों से सुवासित था। वहां बैठक के लिये अनेक रत्न जडित आसन सहित स्थान-स्थान पर रत्नों के ढेर तो कहीं-कहीं विविध प्रकार के द्रव्य एकत्रित थे। एक विशाल रमणीय शाला भी थी जो अत्यंत स्वच्छ गणियों की सीढ़ियों से सुशोभित था। इतने वैभवशाली जीवन का अधिष्ठाता होने के बाद भी रावण अहंकार, लोभ के वश में होकर अपने सर्वनाश को आमंत्रित कर बैठा था। प्रकांड पांडित्य एवं विद्व होने के बाद भी रावण की मति भ्रष्ट हो गई।
           दशरथपुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि पुरुष हैं। वह मात्र हिंदुओं के ही आराध्य नहीं, बल्कि किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों न हो, सभी के लिये भी आदरणीय पुरुष हैं। इस बात का प्रमाण इसी से मिल जाता है कि वाल्मिकी, तुलसी के साथ-साथ रहीम सहित कई मुस्लिम कवियों ने भी राम का महिमा गान किया है। रावण से युद्ध के पूर्व श्रीराम ने अपने वनवास की अवधि का बहुत लंबा समय चित्रकूट में भी बिताया था। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल के 12 वर्ष राम ने चित्रकूट के कामदगिरि में बिताये थे। इसीलिये चित्रकूट एवं कामदगिरि पर्वत की आज विशेष धार्मिक महत्ता है ।
          रामरावण युद्ध की अगर बात  होती है तो अंजनी पुत्र हनुमान का उल्लेख जरुर आयेगा। राम के सपत्निक वनवास गमन की बात होती है तो उनके अनुज श्री लक्ष्मण का उल्लेख भी जरुर होगा। रावण ने कपि सेना को देखकर राम की सेना को, बहुत हल्के से लिया था। उसने अपनी विशाल सेना और पराक्रमी भयंकर -बलशाली असुर सेना के साथ कपि सेना को तुलना योग्य भी नहीं समझा। यह भी उसकी उदात्त अहंकारिता एवं मतिभ्रम का परिचायक सिद्ध हुआ। और कई दिनों के घोर युद्धोपरांत रावण की मृत्यु राम के हाथों हुई।
    ‌‌      वाल्मिकी और तुलसी कृत रामायण की गणना के अनुसार रावण का वध आश्विन शुक्ल नवमी के दिन हुआ तो समयादर्श रामायण में उल्लेखित है कि द्वादशी से चतुदर्शी तक 18 दिन तक निरंतर युद्ध हुआ और चतुर्दशी के दिन रावण का वध हुआ था। यहां पर यह कहना समीचीन होगा कि राम और रावण के मध्य घटित हुआ महायुद्ध दो विभिन्न संस्कृतियों के बीच लड़ा गया युद्ध था। दो विभिन्न जीवन पद्धति, सत्य और असत्य, धर्म और अधर्म अंततः यह भी कह सकते हैं कि पाप और पुण्य के बीच लड़ा गया यह युद्ध था। राम कथा भारतीय संस्कृति का आधार और मानव जीवन की आत्मा है, जिसका विकसित मूल्य प्रत्येक देशकाल के लिये चिर शाश्वत है। राम रावण का युद्ध मात्र पौराणिक काल की बात नही हैं, इसकी प्रांसगिकता आज भी दृष्टिगोचर हो रही है, साथ ही इसकी विशालता भविष्य में भी झांक रही है। हर दशहरे पर रावण की ऊंचाई बढ़ जाती है। और उसका बाहरी आवरण अधिक आकर्षित होता जाता है। रावण के पुतले के साथ उसका आवरण तो भस्म हो जाता है, पर क्या आपने स्वयं अपने अंदर और बाहर सभी जगह उसका आचरण विभिन्न रूपों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महसूस नहीं किया है? क्या रावण की रावणत्वता भी उसी के साथ खत्म हो गई हैं? …नहीं। आज भी हमारे चारों और यह बुराई किसी न किसी रूप में विद्यमान है। हम सभी को दृढ़प्रतिज्ञ होकर राम द्वारा दिखाये गये मार्ग का किंचित भी अनुसरण कर लिया जाता है, तो हम भी आज के राम और रावण युद्ध के विजेता कहलायेंगे, और हम भी राममय हो जायेंगे। अंत में सभी सुधि पाठकों एवं सर्व जनता जनार्दन को विजयादशमी की लाख लाख हार्दिक बधाईयां एवं जीवन संग्राम में विजयी होने की ढेरों शुभकामनायें!

    About Post Author

    Subscribe to get news in your inbox