नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- देश में समान नागरिक आचार संहिता पर मुस्लिम पक्ष का शोर मचा रहे है लेकिन इसी बीच एक ऐसी खबर आई है जो यूसीसी पर सरकार की राह आसान कर सकती है। सोमवार को मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की महिला विंग की प्रमुख शालीन अली के नेतृत्व में लगभग 20 महिलाओं के प्रतिनिधिमंडल ने न्यायमूर्ति अवस्थी से उनके कार्यालय पर मुलाकात की और देश में यूसीसी लाने के कदम का समर्थन करते हुए प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर अपने सुझाव व एक ज्ञापन सौंपा। इसमें मुख्य फोकस लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र का निर्धारण किया जाना तथा बहुविवाह के खात्मे पर रखा गया है। बता दें कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की एक इकाई है।

शालिनी अली ने विवाह पंजीकरण को आधार कार्ड से जोड़ने का सुझाव दिया, ताकि बहुविवाह न हो सके। बैठक के दौरान मंच से एक निकाहनामा का नमूना (सैंपल) भी मांगा गया है, जिसे महिलाओं की सुरक्षा के लिए पेश किया जा सकता है। बैठक में शालिनी अली के साथ जाहिरा बेगम, बबली परवीन, शमा खान, अनवर जहां, प्रोफेसर शादाब तबस्सुम, प्रोफेसर शीरीन, डॉक्टर शाहीन जाफरी, प्रोफेसर सोनू भाटी तथा अन्य महिलाओं ने शिरकत की।
बैठक के दौरान न्यायमूर्ति अवस्थी ने कहा कि यूसीसी के मसौदे को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों में बहुत भ्रम है, लेकिन लोगों को किसी भी चीज के लिए चिंता करने की जरूरत नहीं है। बैठक में यह बात साफ तौर पर आई कि यूसीसी देश के लोगों को उनके धर्म की परवाह किए बिना सशक्त बनाएगा।
बैठक के बारे में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि इससे पहले मंच का दो प्रनिधिमंडल अलग-अलग मौकों पर विधि आयोग के चेयरमैन जस्टिस ऋतु राज अवस्थी से पहले भी मिल चुका है। मीडिया प्रभारी ने बताया कि मंच की तरफ से मुख्य रूप से कुछ बातें रखी गईं। वे हैं-
1. लैंगिक समानता पर मंच ने जोर दिया। मंच की ओर से कहा गया कि हमारे समाज के विकास के लिए लैंगिक समानता अति आवश्यक है। महिला और पुरुष समाज के मूल आधार हैं। समाज में लैंगिक असमानता सोच-समझकर बनाई गई एक खाई है, जिससे समानता के स्तर को प्राप्त करने का सफर बहुत मुश्किल हो जाता है।
2. कानून का समान संरक्षण जैसे- बाल विवाह समाप्त किया जाना और विवाह के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित करना। मंच की तरफ से कहा गया कि अभी अनेकों स्थान पर बच्चियों की शादी 12 से 14 वर्ष के उम्र में कर दी जाती है और इसका दुष्परिणाम यह होता है कि 21 या 22 की उम्र तक अर्थात मानसिक रूप से विकसित होने तक बालिका मां बन चुकी होती है और परिवार का भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
3. माता-पिता दोनों के लिए गोद लेने का अधिकार दिया जाना। भारत में अधिनियम, 1956 के तहत कानूनी रूप से गोद ले सकते हैं। हालांकि, मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों के पास कोई अलग गोद लेने का कानून नहीं है और उनके पास है संरक्षक और वार्ड अधिनियम, 1890 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाना। अतः इस पर भी काम किए जाने की जरूरत है।
4. बहुविवाह की अनुमति नहीं दिया जाना। भारत में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन ने भारतीय संस्कृति और वैवाहिक प्रथाओं में बदलाव आया। कई अन्य प्रगतिशील परिवर्तनों के अलावा, 1860 के भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत बहुविवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम ने हिंदुओं के बीच बहुविवाह की प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया। मंच का मानना है कि इसे सभी धर्मों, समुदायों, वर्गों पर लागू किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (छथ्भ्ै) के नवीनतम सर्वे छथ्भ्ै-5 में कहा गया है कि हालांकि भारत में मुसलमानों के अलावा किसी भी समुदाय के लिए बहुपत्नी विवाह कानूनी नहीं है, फिर भी भारत में समाज के कुछ वर्गों में इसका चलन अभी भी जारी है।
5. विवाह धार्मिक तरीकों ही हो, लेकिन वह पंजीकृत हो तथा तलाक भी पंजीकृत तरीकों से हो, लेकिन इसके लिए वैध कारण आवश्यक हो।
6. धार्मिक समारोहों, रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों का पालन किया जा सकता है यानी उनकी अनुमति हो परंतु यह ध्यान रखा चाहिए कि इस दौरान किसी दूसरे धर्म, जाती, समुदायों के साथ दुव्यवहार कतई न हो।
7. किसी भी धर्म में वर्जित गलत प्रथाएं विकासशील समाज में सख्ती से प्रतिबंधित हैं और विधि आयोग भी इस पर कड़े कदम की सिफारिश करे।
8. संपत्ति के सभी मामलों में समान अधिकार होना चाहिए चाहे वह विरासत से हो या स्वयं के स्वामित्व से हो और कृषि से भी हो।


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