यूक्रेन पर पुतिन-जिनपिंग की मुलाकात पर करीब से नजर रख रहा भारत

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यूक्रेन पर पुतिन-जिनपिंग की मुलाकात पर करीब से नजर रख रहा भारत

-पुतिन-जिनपिंग मुलाकात को नजरअंदाज नहीं कर सकता है भारत?

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/चंडीगढ़/शिव कुमार यादव/- मास्को में सोमवार को पुतिन-जिनपिंग मुलाकात को लेकर पूरे विश्व में कयास लगाये जा रहे है। लेकिन भारत पर इस मुलाकात का सबसे ज्यादा असर दिख सकता है जिसे देखते हुए भारत पुतिन-जिनपिंग मुलाकात पर करीब से नजर बनाये हुए है। अपने पड़ोसी देश चीन व विश्वसनीय दोस्त रूस के बीच पक रही नई खिचड़ी को भारत किसी भी रूप में नजरअंदाज नही कर सकता। हालांकि अभी तक यही चर्चा है कि चीन इस मुलाकात में रूस व यूक्रेन के बीच चले रहे युद्ध को समाप्त करने की पहल करने जा रहा है। लेकिन अमेरिका का मानना है कि चीन इस मुलाकात से रूस के जरीये पूरे विश्व में सत्ता संतुलन की नई परिभाषा पेश कर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। क्योंकि कोरोना के बाद से बदले नये परिप्रेक्ष्य में चीन अपनी भूमिका ग्लोबल पीसमेकर के रूप में देखता है और ईरान और सऊदी अरब के बीच एक ऐतिहासिक समझौता कराने के बाद से तो जिनपिंग की सोंच सातवें आसमान पर है और रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कराने का नया मिशन अपने हाथ में ले रहा है।  
                  यहां सवाल यह है कि दो निरंकुश सत्ता वाले देश बीजिंग व रूस जिनमें लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो चुकी है और दोनो ही देश भारत के पड़ोसी भी है तो क्या ऐसे में ऐसे तानाशाही मिजाज के नेताओं के सहारे विश्व शांति को छोड़ा जा सकता है। जिनपिंग हाल ही में तीसरी बार राष्ट्रपति बने हैं, जिसके लिए चीन में कोई चुनाव नहीं हुआ है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने एक ऐसी प्रक्रिया के जरिये उनको चुना जिसमें इलेक्शन हुआ ही नहीं। वहीं रूस में तो पुतिन ने ऐसा कानून पास करवाया है जिससे वे 2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। इसके अलावा उनपर कोई मुकदमा भी नहीं चलाया जा सकता है। पुतिन पर अपने विरोधियों की आवाज को कुचलने का आरोप लगता रहता है। ऐसे में अपनी विस्तावाद की नीति से दूसरे छोटे देशों के अस्तित्व के लिए खतरा बन रहे ऐसे विश्व लिडरों को लेकर भारत कहां खड़ा है। आज भारत के सामने भी बड़ा प्रश्न यही है कि क्या चीन, रूस को अपना जूनियर पार्टनर के रूप में पेश करना चाहता है और क्या पुतिन चीन के इस प्रस्ताव को मान लेंगे। अगर ऐसा होता है तो भारत को इस नये समीकरण के बारें में सोचना होगा और इसके मुकाबले के लिए अपने आप को तैयार करना होगा। हालांकि अभी तक रूस भारत को अपना विश्वसनीय व भरोसेमंद साथी बताता आया है। लेकिन चीन अब रूस को लेकर एक नई अवधारणा बना रहा है। क्यांकि चीन पाकिस्तान के साथ अपनी दोस्ती को हिमालय से ऊंचा बताता है तो रूस के साथ उसने अपने संबंधों को ’नो लिमिट पार्टनरशिप’ करार दिया है यानी कि दोनों देशों के संबंधों की विस्तार की कोई सीमा नहीं है। ऐसे में अब भारत को सोचना होगा कि बीजिंग के प्रभुत्व वाले इस नये वर्ल्ड ऑर्डर में भारत खुद को कहां पाता है? अगर भारत को दुनिया का नेतृत्व करना है तो उसे इस रेस पर लगाम कसने के लिए अपनी तैयारी और भी पुख्ता तरीके से करनी होगी।

                    लेकिन क्या पुतिन जिनपिंग नये वर्ल्ड आर्डर का हिस्सा बनेगे या फिर चीन की इस पीस ऑफर को कितनी तवज्जो देंगे? जिनपिंग पुतिन पर कितना डिप्लोमैटिक दबाव बना पाएंगे। देखने से ऐसा नही लगता कि पुतिन जिनपिंग की ऑफर को ठुकरा पायेंगे क्योंकि यूक्रेन पर अपने ’विशेष सैन्य ऑपरेशन’ शुरू करने से मात्र 4 दिन पहले यानी की 20 फरवरी को 2022 को पुतिन चीन में थे। यहां जिनपिंग और पुतिन की मुलाकात हुई। इसके बाद दोनों नेताओं ने कहा कि रूस चीन संबंधों की कोई सीमा नहीं है। इस मुलाकात के मात्र 4 दिन बाद यानी कि 24 फरवरी को पुतिन ने अपने टैंकों को यूक्रेन की ओर मार्च करने का आदेश दे दिया। तो क्या एक साल बाद पुतिन से जिनपिंग की एक और मुलाकात यूक्रेन में शांति स्थापित करने के लिए हो रही है या फिर चीन अपनी महत्वकांक्षा रूस पर थोपने के लिए यह मुलाकात कर रहा है। इसे देखें तो अभी भी यूक्रेन में शांति के कोई आसार नही दिखाई दे रहे हैं।
                   हालांकि चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग येनबिन दावा कर रहे है कि, “शी का रूस दौरा शांति को लेकर है। विश्वशांति की रक्षा करना और कॉमन डेवलपमेंट को बढ़ावा देना हमारी विदेश नीति का लक्ष्य हैं यूक्रेन मुद्दे पर चीन हमेशा से शांति और संवाद का पक्षधर रहा है और हम हमेशा इतिहास के सही पक्ष में खड़े रहते हैं।“
                  यहां यह जानना जरूरी है कि भारत की तरह चीन ने भी अभी तक यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा नहीं की है। यूक्रेन मुद्दे पर चीन के रूख को देखें तो पाएंगे कि बीजिंग मास्को के रुख को ही पोषित करता रहा है। बीजिंग ये मानता है कि नाटो की ओर से पूर्व में विस्तार की नीति ने रूस की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया है और यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों ने जेलेंस्की को टैंक और मिसाइल की सप्लाई करके रूस की चिंता और बढ़ा दी।  
                  इसी साल फरवरी में फरवरी में, चीन ने “यूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान पर चीन की स्थिति“ नाम से एक 12 प्वाइंट का एजेंडा पत्र जारी किया। इस पत्र में चीन शत्रुता को समाप्त करने और शांति वार्ता को फिर से शुरू करने पर जोर तो देता है, लेकिन चीन ने यह भी कहा है कि एकतरफा प्रतिबंधों को समाप्त किया जाए और शीत युद्ध की मानसिकता को भी छोड़ा जाए। चीन का इशारा अमेरिका, ईयू और नाटो की ओर है।

                  शी जिनपिंग के इस दौरे को अमेरिका ने शक की निगाह से देखा है और यूक्रेन जंग खत्म कराने की उसकी अथॉरिटी पर ये कहकर सवाल खड़ा किया है कि चीन द्वारा पेश किया गया कोई भी फ्रेमवर्क सिर्फ रूसी नजरिये को ही सामने रखेगा और इसमें यूक्रेन का हित पीछे छूट जाएगा। क्योंकि चीन ने हमेशा ही रूस के हितों को ध्यान में रखकर प्रस्ताव रखें हैं। वहीं यूएस नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि चीन द्वारा लाए गए किसी भी युद्ध विराम की संभावना को अमेरिका खारिज करता है। किर्बी ने कहा कि युद्धविराम को मानना रूस के हमले का प्रभावी समर्थन करना होगा।  

रूस को पिछलग्गु बनाना चाहता है चीन- राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो चीन विश्व का नेतृत्व करने के लिए विश्व शांति का मसीहा बनने का अपना चेहरा पेश कर रहा है। इसके लिए भले ही चीन विश्व शांति का चेहरा सामने रख रहा है लेकिन उसकी असली मंशा विश्व नेतृत्व करने की है। चीन इस मामलें में अमेरिका को पीछे धकेलना चाहता है और रूस को अपना पक्का दोस्त बताकर रूस को अपना पिछलग्गु बनाना चाहता है। चीन जिनपिंग के नए वर्ल्ड ऑर्डर के एजेंडे को लेकर रूस को जूनियर पार्टनर के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहता है और वह काफी अरसे से इस पर काम भी कर रहा है। अगर चीन रूस को अपने पीछे लगा लेता है तो फिर दुनिया में चीन को अपने मन की करने के लिए कोई नही रोक पायेगा। यूक्रेन में शांति स्थापित करने के लिए चीन यह भी नही चाहेगा की यहां रूस की हार हो, इसलिए चीन हर मौके पर रूस और पुतिन के पतन के खिलाफ ढाल बनकर खड़ा होता रहेगा। क्योंकि अगर रूस कमजोर पड़ा तो चीन अपने हित नही साध पायेगा।  
                  मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की एसोसियेट फेलो स्वस्ति राव लिखती हैं कि बीजिंग ने वैकल्पिक वर्ल्ड ऑर्डर का जो फ्रेमवर्क तैयार किया है उसमें रूस ही एक मात्र देश है जिसकी दुनिया में धाक हैं उत्तर कोरिया, ईरान और पाकिस्तान जैसे चीन के दूसरे पार्टनर अपनी चिंताओं से ही त्रस्त हैं इसलिए चीन के दृष्टिकोण से ये आदर्श स्थिति होगी कि रूस चीनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में जूनियर पार्टनर बना रहे।

भारत क्यों इस मुलाकात को नजरअंदाज नहीं कर सकता?
रूस-यूक्रेन वॉर के बीच भारत की विदेश नीति अलग अलग कारणों से दुनिया में चर्चा में रही। चीन की तरह भारत ने भी यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा नहीं की। रूस के साथ गर्मजोशी भरे संबंधों का नतीजा ये रहा कि भारत को मुश्किल वक्त में रूस से कम कीमतों पर कच्चे तेल की निर्बाध आपूर्ति होती रही.
                   लेकिन पिछले साल उजबेकिस्तान में पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को स्पष्ट रूप से यह भी संदेश दिया कि ये युद्ध का समय नहीं है। इस तरह भारत ने एक परिपक्व विदेश नीति का परिचय दिया। यही वजह रही जंग खत्म कराने की जो जिम्मेदारी अभी चीन निभाना चाहता है उस रोल का ऑफर अमेरिका ने भारत को दिया था।
                  अमेरिकी राजनयिक जॉन किर्बी ने उजबेकिस्तान में दिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का जिक्र करते हुए इसी साल फरवरी में कहा था कि पुतिन अभी भी युद्ध को रोक सकते हैं इसके लिए पीएम मोदी जो भी पहल करना चाहते हैं, वो उन्हें करना चाहिए। यूएस ऐसी किसी भी कोशिश का स्वागत करेगा जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध जल्द खत्म हो हालांकि कूटनीतिक हालात ऐसे बने कि अब चीन ने इसकी अगुवाई कर दी है।  

भारत को अपनानी होगी एक सधी हुई स्ट्रैटजी
यूक्रेन जंग में चीन का रोल नई दिल्ली के लिए अपने कदमों को सधे हुए तरीके से बढ़ाने का समय है। रूस का कमजोर होकर चीन के पाले में आना भारत के स्ट्रैटिजिक कैलकुलस को कमजोर कर देगा। अभी की द्विध्रुवीय दुनिया में; जिसका एक ध्रुव अमेरिका है, रूस के कमजोर होने का अर्थ है चीन का मजबूत होना। उस चीन का मजबूत होना जिसका भारत के साथ सीमा को लेकर कई विवाद चल रहा है और दोनों देशों के बीच हिंसक टकराव भी हो चुका है। लिहाजा अगर चीन ईरान-सऊदी के बाद यूक्रेन में भी अपने मिशन में सफल रहता है तो ड्रैगन तो अन्य विवादित मुद्दों का भी मनमाफिक समाधान खोजने की कोशिश कर सकता है।

बेल्ट रोड इनिशिएटिव का विवाद
जिनपिंग और पुतिन की इस मुलाकात में उस बेल्ट रोड इनिशिएटिव पर भी चर्चा हो सकती है, जिसके कुछ हिस्सों का भारत करता आया है। चाइनीज अकेडमी ऑफ सोशल साइंस के विशेषज्ञ झाव हुईरोंग ने कहा कि चीन और रूस यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की कनेक्टिविटी को और बढ़ावा देने पर भी चर्चा करेंगे।
                   बता दें कि बेल्ट रोड इनिशिएटिव है तो एक मेगा आर्थिक प्रोजेक्ट लेकिन इसे चीन की विस्तारवादी विदेश नीति का हिस्सा माना जाता है। इस परियोजना का एक हिस्सा जिसे सी-पैक के नाम से जाना जाता है जो पाकिस्तान होते हुए पाक अधिकृत कश्मीर से गुजर रहा है। भारत ने इस प्रोजेक्ट पर सख्त आपत्ति जताई है। भारत ने कहा है कि कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। इस मीटिंग में इस मुद्दे पर हुई चर्चा से भारत स्वयं को निश्चित रूप से अपडेट करना चाहेगा।

पुतिन ने जिनपिंग को बुलाया, तो बाइडेन ने मोदी को इनवाइट किया
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के डायनामिक्स कैसे काम करते हैं इसे बताने के लिए इस घटनाक्रम को समझना आवश्यक है। मीडिया में जैसे ही खबर आई कि जिनपिंग सोमवार को.मास्को दौरे पर जा रहे हैं, उसके कुछ ही घंटे बाद एक और खबर आई जिसने अतंर्राष्ट्रीय हलचलों पर निगाह रखने वालों का ध्यान खींचा। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्टेट डिनर के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। कूटनीति की दुनिया में इसे अमेरिका का बैलेंसिंग एक्ट माना जा रहा है। मई में क्वॉड शिखर सम्मेलन के दौरान ऑस्ट्रेलिया में पीएम मोदी और बाइडेन की मुलाकात भी तय है।

क्वॉड से काउंटर करने की रणनीति
रूस के साथ भारत अपने संबंधों की ऐतिहासिकता और घनिष्ठता को समझता है लेकिन भारत स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है। इसलिए भारत हाल ही में उस गुट का बना है जिसमें न तो चीन है और न हीं रूस। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के साथ मिलकर भारत क्वॉड बनाया है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन के लिए इसे गठजोड़ को अहम माना गया है। चीन इस क्षेत्र में अपना प्रभाव लगातार बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। भारत रूस के साथ अपने रिश्ते तो चाहता है लेकिन चीन को काउंटर करने के लिए उसने क्वॉड का सहारा लिया है। भारत को भरोसा है कि ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ एशिया प्रशांत क्षेत्र में उसके सुरक्षित रहेंगे। देखने वाली बात होगी कि क्या पुतिन-जिनपिंग अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर चर्चा के दौरान इस पर क्या राय देते हैं।

दिल्ली में होने वाले जी-20 सम्मेलन की रूपरेखा होगी तय  
आने वाले 6 महीनों में भारत जी-20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाला है। इस सम्मेलन में पुतिन के आने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। मास्को में पुतिन और जिनपिंग की इस मुलाकात से जो कुछ नतीजा निकलेगा, जो फैसले लिए जाएंगे उससे वो जिओ-पॉलिटिक्स तय होगा जो आने वाले समय में दस्तक देने वाली हैं। अगर यूक्रेन संकट के तहत वैश्विक सप्लाई संकट, वैश्विक आर्थिक हलचल पर लिए जाने वाले किसी भी फैसले पर भारत की नजर होगी।  

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