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    नोट व फोन पर 28 दिनों तक जिंदा रह सकता है कोरोना का वायरस, नई शोध मंे हुआ खुलासा

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- विश्वभर में नये शोधों और ईलाज की नई तकनीकों के बाद भी कोरोना वायरस के संक्रमण का असर कम होने का नाम नही ले रहा है। फिर भी वैज्ञानिक इसे रोकने के लिए प्रयत्नशील है। ईलाज व बचाव के हिसाब से वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना से बचाव के तरीके अपनाकर ही बचा जा सकता है। क्योंकि कुछ समय पहले तक कोरोना के फैलने के जो आधार बताये गये थे आज नई रिसर्च में देखा गया कि कांच, कागज, प्लास्टिक के नोटों और स्टील पर ये वायरस कितनी देर तक जीवित रह सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि इन सभी सतहों पर 20 डिग्री सेल्सियस पर 28 दिनों के बाद भी वायरस का पता लगाया जा सकता है। इसमें वायरस के जीवित रहने का वक्त पहले के शोध से कहीं अधिक बताया गया है। ये शोध जिन परिस्थितियों में किया गया वो वायरस के अनुकूल थे, मसलन अंधेरा कमरा, स्थिर तापमान और नम हवा। लेकिन असल जिंदगी में वायरस को अपने अनुकूल परिस्थिति कम ही मिलती है। फिर भी, शोध के ये नतीजे एक बार फिर बताते हैं कि संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए नियमित रूप से हाथ धोने और टचस्क्रीन को धोने या सैनिटाइज करने की जरूरत है। साथ ही संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए हमें अपना चेहरा छूने से बचना चाहिए।
    कोरोना वायरस की तुलना में ऐसी ही परिस्थिति मे फ्लू का वायरस 17 दिनों तक जीवित रह सकता है। वायरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में पता चला है कि ठंडे तापमान की तुलना में गर्म तापमान में ये वायरस कम देर तक जीवित रहता है। 40 डिग्री सेल्सियस पर रखने पर कुछ सतहों पर ये वायरस चैबीस घंटों के भीतर संक्रामक नहीं रह जाता। चिकनी और कम खुदरा सतहों पर ये वायरस अधिक दिनों तक जीवित रह सकता है जबकि कपड़े जैसी खुदरा सतह पर ये 14 दिनों के बाद जीवित नहीं रह सकता।
    कार्डिफ यूनिवर्सिटी के कॉमन कोल्ड सेंटर के पूर्व निदेशक प्रोफेसर रॉन एक्सेल ने इस रिसर्च की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि इसमें कहा गया है कि वायरस 28 दिनों तक जीवित रह सकता है, जिससे लोगों में अनावश्यक डर पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा, ये वायरस खांसी या छींक में गिरे थूक के बारीक कणों और गंदे हाथों से फैलता है। लेकिन इस शोध में वायरस फैलने के कारण के रूप में इंसान के ताजा बलगम का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इंसान के ताजा बलगम में बड़ी संख्या में व्हाइट सेल्स होते हैं जो वायरस को नष्ट करने के लिए एन्जाइम बनाते हैं। बलगम में वायरस से मुकाबला करने के लिए एंटीबॉडी और केमिकल भी हो सकते हैं। उन्होंने कहा, मेरी राय में संक्रामक वायरस सतह पर गिरे बलगम में कुछ घंटों के लिए ही जीवित रह सकते हैं न कि कई दिनों के लिए।
    इसी साल जुलाई में रटगर्स यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर इमानुएल गोल्डमैन का एक पेपर जानीमानी पत्रिका लैंसेट में छपा था। इसमें कहा गया था कि सतह पर पड़े थूक के कणों से संक्रमण का खतरा कम होता है। वो कहते हैं कि ऐसे शोध जो वायरस के कारण बड़ा खतरा बताते हैं उनमें वास्तविक जीवन के हालातों से कम ही समानता होती है। बीते सप्ताह कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में मेडिसीन प्रोफेसर मोनिका गांधी ने कहा था कि कोरोनो वायरस सतहों के जरिए नहीं फैलता।
    कोविड-19 का वायरस मुख्य रूप से हवा के जरिए फैलता है। अब तक हुए शोध में पता चला है कि ये वायरस हवा में मौजूद कणों में तीन घंटों तक जीवित रह सकता है। अब तक इस बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है कि बैंक नोट और टचस्क्रीन जैसे सतहों के जरिए ये कितनी तेजी से फैल सकता है। स्टेनलेस स्टील की सतह पर ये वायरस कितनी देर तक जीवित रह सकता है इसे लेकर हाल में जो शोध हुए हैं उनमें पता चला है कि सामान्य तापमान में ये स्टेनलेस स्टील पर तीन से 14 दिनों तक जीवित रह सकता है।
    सीएसआईआरओ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ। लैरी मार्शल कहते हैं, ष्किसी सतह पर ये वायरस कितनी देर तक टिका रह सकता है, ये जानकारी हमें वायरस से निपटने की कोशिशों, संक्रमण को कम करने और लोगों को बचाने में मदद करती है।ष् रिसर्च में शामिल सदस्यों का कहना है कि ठंडी परिस्थितियों में स्टेनलेस स्टील पर वायरस का अधिक देर तक जीवित रहना ये बताता है कि कोविड-19 महामारी का गंभीर असर मीट प्रोसेसिंग केंद्र और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के आसपास क्यों हुआ होगा।
    पूरी दुनिया में मीट प्रोसेसिंग केंद्रों और बूचड़खानों में काम करने वाले हजारों लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। इससे पहले वायरस संक्रमण के अधिक मामलों की एक वजह बंद कमरों में काम करना, ठंडा और नमी भरा माहौल भी बताया गया है। साथ ही अधिक आवाज करती मशीनों के आसपास काम करने वालों के ऊंची आवाज में बात करने को भी वायरस फैलने का एक अहम कारण बताया गया है। सीएसआईआरओ के शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके शोध के नतीजे पहले आए उन शोध के नतीजों से मेल खाते हैं जिनमें कहा गया था कि फ्रीजर में रखे ताजा खाने में वायरस अधिक देर तक जीवित रह सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि, खाने या खाना पैक करने के कारण अब तक कोविड-19 के मामले दर्ज नहीं किए गए हैं। हालांकि संगठन ये जरूर बताता है कि संक्रमण के खतरे से बचने के लिए किस तरह की सावधानियां लेना जरूरी है।

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