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    होली पर आलेखः-अयोध्या में राम लला की पहली होलीः  कालखण्ड में हम

    -अंजना छलोत्रे ’सवि’ भोपाल

    अयोध्या में भव्य राम मंदिर में स्थापित होने वाली रामलला की मूर्तियों के इतिहास में कई रहस्य जुड़े हुए हैं. उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के काल से लेकर मुगलकाल तक और फिर आधुनिक काल तक जैसे-जैसे अयोध्या में राम जन्मस्थान पर ध्वंस और निर्माण होते रहे वहाँ रामलला की मूर्तियों का स्वरूप और इतिहास भी बदलता रहा. आपको जानकर हैरानी होगी कि 500 साल बाद अयोध्या में इस बार नई मूर्ति रामलला की चौथी मूर्ति है जो अयोध्या में स्थापित की गई है।
    अयोध्या स्थित अपने मंदिर में विराजमान होने के बाद रामलला की यह पहली होली है. ऐसे में इनके लिए खास गुलाल तैयार किया गया है. यह गुलाल टेसू और कचनार के फूल से तैयार किया जा रहा है अयोध्या स्थित अपने मंदिर में विराजमान होने के बाद रामलला की यह पहली होली है. ऐसे में इनके लिए खास गुलाल तैयार किया गया है.
    होली का इतिहास विभिन्न किंवदंतियों और कहानियों के साथ हिंदू पौराणिक कथाओं और परंपरा में गहराई से निहित है। इन सबके बीच, होली से जुड़ी सबसे लोकप्रिय किंवदंतियाँ होलिका और प्रह्लाद की कहानियाँ हैं। होली अलाव या होलिका दहन हिंदू पौराणिक कथाओं से होलिका और प्रह्लाद की कहानी पर आधारित एक उत्सव है। इस उत्सव की शुरुआत बुन्देलखण्ड में झाँसी के एरच से हुई। यह कभी हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी।
    होली से जुड़ी एक और लोकप्रिय कहानी भगवान कृष्ण और राधा के बारे में है। होली कृष्ण और राधा के बारे में एक चंचल प्रेम कहानी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण जो अपने शरारती स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने अपनी माँ से राधा के सुंदर रंग के विपरीत अपने गहरे रंग के बारे में शिकायत की थी। जवाब में, उनकी मां ने सुझाव दिया की वह राधा के चेहरे को अपने रंग से मेल खाते हुए रंग दें। राधा के चेहरे को रंग से रंगने की यह चंचल क्रिया अंततः रंग और पानी से खेलने की परंपरा बन गई। लोग होली खेलते हैं और अपने प्रियजनों को रंग लगाते हैं जो प्यार, दोस्ती और वसंत के आगमन का प्रतीक है।
    होली की जड़ें प्राचीन भारतीय रीति-रिवाजों और कृषि पद्धतियों में हैं। यह प्रजनन उत्सव, वसंत के आगमन और नए जीवन के खिलने का जश्न मनाने के लिए भी माना जाता है। होली पर, किसान स्वस्थ फसल के लिए अपने भगवान को समर्पित करते हैं और अपनी भूमि की उर्वरता सुनिश्चित करने के लिए अनुष्ठान करते हैं। रंग और पानी के साथ होली का उत्सव वसंत के रंगीन पुष्पों से सुसज्जित प्रकृति में जीवन के नवीनीकरण का भी प्रतिनिधित्व करता है।
    हिन्दू पंचांग के अनुसार कहे या हर कालखंड में होली उत्सव की परम्परा के साथ मनाने के तरीके भी बदलता रहा हैं।
    प्राचीन मंदिरों में शिल्पकलाः-मंदिरों की में मूर्ति और चित्रों में अंकित विभिन्न शैलियों में रंगों का वर्णन दिखाई देता है शोधकर्ताओं द्वारा यह पता किया गया है की 600 ईसा पूर्व से या त्योहार मनाया जा रहा है।
    विजयनगर की राजधानी हंपी में 16वीं शताब्दी के मंदिर हैं वहां पर भी इस तरह के चित्र उपलब्ध हैं अहमदनगर चित्रों और मेवाड़ के चित्रों में भी होली उत्सव मनाने का चित्रण देखने को मिलता है।

    आर्यों का होलका

    सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी होली और दिवाली मनाए जाने की सबूत मिले हैं। प्राचीन काल से ही नई फसल का कुछ भाग पहले देवताओं को अर्पित किया जाता रहा है यह त्यौहार वैदिक काल से ही मनाया जाता रहा है होली के दिन आर्य नवत्रिष्टि यज्ञ करते थे। पहले फसल की आगमन को खुशी का  त्यौहार भी माना गया है।

    राक्षसी ढुंढी को जलाया एंव शिव कामदेव को भस्म कर पुन

    जीवित :- इस दिन राजा पृथु ने अपने राज्य के बच्चों को बचाने के लिए राक्षसी टूटी को लकड़ी जलाकर आग में भष्म कर दिया था और इसी दिन शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद जीवित किया था। इसीलिए इस पर्व को बसंत महोत्सव या काम महोत्सव भी कहते हैं होली के विभिन्न नाम से मनाए जाने वाले यह त्यौहार प्राचीन काल से अलग-अलग उद्देश्यों के लिए मनाई जाती रहे हैं इसमें यही है की हार से जीत की ओर बढ़ने का उत्सव है यह होली।

    फाग उत्सव

    त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धुलि वंदन किया जिसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है होलिका दहन के बाद ’रंग उत्सव’ मनाने की परम्परा भगवान श्री कृष्ण की कल से प्रारंभ हुई तभी से इसका नाम फगवाह हो गया क्योंकि यह फागुन मास में आती है। कहां जाता है कि कृष्ण ने राधा पर के संग रंग डालाकर होली खेली थी इसी के बाद में ’रंग पंचमी’ मनाई जाती है श्री कृष्ण के समय से ही होली के त्यौहार में रंग को जोड़ा गया है।

    रॉल्स रॉयस होली का इतिहास
    कोलकाता के एक मारवाड़ी व्यक्ति कुमार गंगाधर बागला को रुडयार्ड किपलिंग ने 6 साल इस्तेमाल करने के बाद अपनी रॉल्स रॉयस गाड़ी वर्ष 1927 को बेच दी थी। हावड़ा का सत्यनारायण मंदिर भी बागला परिवार की संपत्ति का ही हिस्सा बताया जाता है। इस मंदिर में ही स्थापित है राधाकृष्ण की मूर्तियां जिनकी शोभायात्रा ’रॉल्स रॉयस होली’ के दिन गाड़ी में सजाकर निकाली जाती है। बताया जाता है कि साल में सिर्फ दो दिनों के लिए ही इस विंटेज गाड़ी को मंदिर से बाहर निकाला जाता है। पहली, होली के समय जब रॉल्स रॉयस होली मनायी जाती है और राधाकृष्ण की सवारी निकाली जाती है। और दूसरी बार जन्माष्टमी के समय, जब फिर से श्रीकृष्ण की सवारी विंटेज गाड़ी में निकाली जाती है।

    रॉल्स रॉयस होली

    जुड़वा शहर हावड़ा-कोलकाता की रॉल्स रॉयस होली को अगर भारत की सबसे अनोखी होली की लिस्ट में शामिल किया जाए तो ऐसा करना गलत नहीं होगा। इस होली में भगवान की शोभायात्रा तो निकाली जाती है लेकिन वह किसी रथ पर नहीं बल्कि विंटेज गाड़ी में।

    हावड़ा ब्रिज के पास मौजूद सत्यनारायण मंदिर से विंटेज कार रॉल्स रॉयस में श्रीकृष्ण और राधारानी की सवारी निकाली जाती है जो बड़ाबाजार होते हुए राजा कटरा तक जाती है। इस समय इस विंटेज गाड़ी को किसी रथ की तरह ही फूलों से सजाया जाता है। जिस रास्ते से भी भगवान की सवारी निकलती है, उस रास्ते पर लोग गुलाल और गीले रंगों की बौछार करने लगते हैं।

    द जंगल बुक’ के लेखक  की यह विंटेज गाड़ी
    हावड़ा के सत्यनारायण मंदिर से जिस गाड़ी में राधाकृष्ण की सवारी निकाली जाती है, वह गाड़ी रॉल्स रॉयस की एक विंटेज कार तो है ही। उसके साथ ही सबसे स्पेशल बात है कि यह गाड़ी किसी जमाने में रुडयार्ड किपलिंग की हुआ करती थी। जी हां, वहीं अंग्रेजी उपन्यासकार रुडयार्ड किपलिंग जिनकी लिखी ’द जंगल बुक’ आज भी बच्चे से लेकर बुढ़ों तक की जुबान पर चढ़ा रहता है इस बार की होली में हमारे मन में हमारे जीवन में और इस धरती पर रामलाल के साथ पहली होली खेलेंगे, है ना अद्भुत नजारा और हम इस समय कालचक्र के साक्षी बन रहे है।

    समय के साथ खुशी, एकता और एकजुटता का सार्वभौमिक उत्सव बन गईं। यह अब एक विश्व प्रसिद्ध त्योहार है। यह भारत के साथ-साथ दुनिया के कई हिस्सों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। होली का त्योहार रंग, संगीत, स्वादिष्ट मिठाइयों, चंचल वातावरण से भरा होता है।

    लेखक-अंजना छलोत्रे ’सवि’
    भोपाल

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