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    June 7, 2025

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    हाईकोर्ट से डरे प्रशासन ने नजफगढ़ में चलाया अतिक्रमण हटाओ अभियान

    -लोगों के घरों में जाने के धड़े भी सड़कों से हटाये, दूकानों के खिलाफ कार्यवाही में दिखा भेदभाव -एसडीएमसी व पीडब्ल्यूडी ने पुलिस फोर्स के साथ नजफगढ़ फिरनी, चलाया अभियान

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- नजफगढ़ में आये दिन लगने वाले भीषण जाम व फुटपाथ पर अतिक्रमण के चलते राहगीरों की परेशानी को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने 2019 में एसडीएमसी व पीडब्ल्यूडी को नजफगढ़ फिरनी को अतिक्रमण मुक्त रखने के आदेश दिये थे लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई उपयुक्त कार्यवाही नही होने के चलते हाईकोर्ट की डबल बेंच ने लोगों की शिकायत पर दिल्ली के मुख्यसचिव को तलब कर कार्यवाही रिपोर्ट का ब्यौरा मांगा है जिसे देखते हुए दो दिन पहले मुख्यसचिव ने एसडीएमसी, पीडब्ल्यूडी, एसडीएम कार्यालय व डीसीपी द्वारका को तलब कर कार्यवाही करने के निर्देश दिये थे। उसी के चलते आज शुक्रवार को नजफगढ़ प्रशासन ने नजफगढ़ फिरनी पर अतिक्रमण के खिलाफ  व्यापक स्तर पर कार्यवाही की। हालांकि इस कार्यवाही को लोगों ने भेदभावपूर्ण बताया है। वहीं एसडीएमसी व पीडब्ल्यूडी के अधिकारी इस संबंध में कुछ भी बताने से बचते नजर आये।

    शुक्रवार को नजफगढ़ में हाईकोर्ट से डरे एसडीएमसी व पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने नजफगढ़ फिरनी पर व्यापक रूप से अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया। इस अभियान में स्थानीय पुलिस फोर्स के साथ-साथ होम गार्डस, सिविल डिफेंस व सीआरपीएफ की फोर्स भी तैनात की गई थी। प्रशासन की इस कार्यवाही के चलते ऐसा लग रहा था कि आज नजफगढ़ फिरनी की कायापल्ट हो जायेगी स्कूली बच्चों व राहगीरों को सुरक्षित चलने के लिए फुटपाथ मिल जायेगा। लेकिन ऐसा नही हुआ और अभियान के साथ-साथ ही दूकानदारों ने वापिस सामान फुटपाथ पर रख लिया। हालांकि कुछ अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एसडीएमसी के अधिकारी सड़कों व फुटपाथ पर सामान रखने का दूकानदारों व रेहड़ी-पटड़ी वालों से पैसा लेते है। जिसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है।

    नजफगढ़ में जाम का सबसे बड़ा कारण अवैध पार्किंग व अतिक्रमण ही है। लेकिन फिर भी प्रशासन इस ओर कोई खास ध्यान नही देता है। लोगों की माने तो निगम अधिकारी व कर्मचारी अवैध पार्किंग व अतिक्रमण से मोटा पैसा कमाते है। जितने भी रेहड़ी-पटड़ी वाले सड़कों के किनारे अपनी रेहड़ी लगाते है। उन सभी से पुलिस व निगम कर्मचारी महीना वसूलते हैं। और अगर ये सब सड़कों से हट जायेंगे तो इनकी तो अवैध कमाई खत्म हो जायेगी और ये लोग भूखे मर जायेंगे। लोगों का कहना है कि अधिकारियों को आम जन व स्कूली बच्चों की जिंदगी से कोई लेना देना नही है। कोई मरे तो मरे उन्हे क्या। अकसर निगम कर्मचारी खानापूर्ति के लिए ही अतिक्रमण हटाओं अभियान चलाते हैं। और कुछ दिन बाद स्थिति फिर वैसे की वैसी हो जाती है। लेकिन इस बार देखना यह है कि अधिकारियों ने हाइ्रकोर्ट के डर से यह अभियान चलाया है तो इसका असर कितने दिन तक सड़कों पर दिखता है। इस संबंध में एक भी अधिकारी बोलने को तैयार नही है कि अगर सड़कों व फुटपाथ पर अतिक्रमण दौबारा होता है तो प्रशासन र्क्या कार्यवाही करेगा।

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