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    हास्य-व्यंग्य कविता पाठ का आयोजन आरजेएस पीबीएच ने हिंदी महिला समिति के सहयोग से किया

    -विश्व हास्य दिवस पर आरजेसियंस व हिंदी महिला समिति ने खुशी और हास्य का ज़श्न देश-विदेश के कवि-कवयित्रियों के साथ मनाया.

    नई दिल्ली/नागपुर/उदय कुमार मन्ना/– 4 मई विश्व हास्य दिवस पर खुशी और हास्य के गहरे प्रभाव का ऑनलाइन ज़श्न मनाया गया,जिसमें भारत और विदेशों के कवियों और वक्ताओं ने भाग लिया। दिल्ली स्थित राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच) के संस्थापक व राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना द्वारा हिंदी महिला समिति, नागपुर की अध्यक्षा रति चौबे के सहयोग से आयोजित लगभग ढाई घंटे चले 352वें कार्यक्रम का आगाज विश्व हास्य दिवस के जनक डा.मदन कटारिया और माधुरी कटारिया के आरजेएस वेबिनार के पूर्व रिकार्डेड सकारात्मक संदेश से हुआ। उन्होंने हास्य -योग को स्वास्थ्य और विश्व शांति को बढ़ावा देना बताया।श्री मन्ना ने आग्रह किया, “आज हंसने का दिन है,” उन्होंने उपस्थित लोगों को “अपने बचपन की ओर लौटने” और केवल दिमाग से नहीं, बल्कि दिल से हंसने के लिए प्रोत्साहित किया।

    हिंदी महिला समिति की अध्यक्षा, रति चौबे ने  हास्य-व्यंग्य कविता पाठ का कुशलतापूर्वक संचालन करते हुए हंसी को “बिना खर्च की अमूल्य औषधि” और “तनाव से मुक्ति” का स्रोत बताया, चार्ली चैपलिन को उद्धृत करते हुए कहा: “हंसी के बिना बिताया गया दिन व्यर्थ है।” श्रीमती चौबे ने संबंध बनाने और वैश्विक चेतना को बढ़ावा देने में हास्य की शक्ति पर प्रकाश डाला और फिर काव्य सत्र की शुरुआत की। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रख्यात हास्य व्यंग्य की कवयित्री निशा भार्गव ने दोस्ती, उम्र बढ़ने और रिश्तों पर हास्य कविता  का रसास्वादन व बातें साझा कीं, और कहा, “हंसते रहो तो आसान है जिंदगी।” 

    हास्य-व्यंग्य कविता पाठ  में हिंदी कवियों की एक विविध श्रृंखला का प्रदर्शन किया गया, जिसमें हास्य कविता और कवयित्रियों की व्यापकता दिखाई दी। बर्मिंघम, यूके से शामिल हुए डॉ. कृष्ण कन्हैया ने अपने जन्मदिन पर वैवाहिक नोकझोंक पर एक मजाकिया कथात्मक कविता प्रस्तुत की, जो हास्य के स्थायित्व का प्रमाण देती है। वरिष्ठ कवि घनश्याम अग्रवाल ने तीक्ष्ण व्यंग्य प्रस्तुत किए, जिसमें भ्रष्टाचार जैसे सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष किया गया। प्रख्यात कवि अविनाश बागरे ने राजनीति और आधुनिक विसंगतियों पर टिप्पणी करते हुए छोटी, चुटीली कविताएँ (“फुलझड़ियाँ”) प्रस्तुत कीं।

    विषय-वस्तु में संबंधित घरेलू स्थितियों से लेकर समकालीन जीवन पर प्रतिबिंब शामिल थे। 

     अधिकांश कविता का उद्देश्य विशुद्ध रूप से मनोरंजन था, कई कवियों ने सामाजिक टिप्पणी के लिए हास्य का उपयोग एक उपकरण के रूप में किया। व्यंग्यात्मक रचनाओं ने भौतिकवाद, चाटुकारिता और पारिवारिक गतिशीलता को छुआ, यह प्रदर्शित करते हुए कि हंसी आलोचनात्मक प्रतिबिंब के साथ सह-अस्तित्व में रह सकती है। विशेष अतिथि सत्येंद्र कुमार श्रीवास्तव, एक सेवानिवृत्त भूविज्ञानी, अपनी धर्मपत्नी श्रीमती मधुबाला श्रीवास्तव के साथ जुड़े। उन्होंने मनोरंजक उपाख्यानों और चुटकुलों के साथ हल्के-फुल्के माहौल को और बढ़ाया। कवयित्रियों में 9 मई महाराणा प्रताप जयंती की सह-आयोजक डॉ. कविता परिहार और इस कार्यक्रम की वक्ता संतोष बुधराजा (जिन्होंने उम्र बढ़ने की बीमारियों का हास्यपूर्वक विवरण दिया) के वीडियो संदेशों ने कार्यक्रम को और समृद्ध किया। वहीं कार्यक्रम की वक्ता देवयानी बनर्जी की भूखा किसान और विनय-अनुनय नामक मर्मस्पर्शी कविता का रसास्वादन प्रतिभागियों ने किया। वहीं 16 मई के सह-आयोजक आईसीसीआर के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी सुनील कुमार सिंह कवियों व कवयित्रियों का मनोबल बढ़ाते दिखाई दिए।

    गीतू शर्मा ने मोबाइल फोन का मानवीकरण किया, तकनीकी निर्भरता की मजाकिया आलोचना की, जबकि भगवती पंत ने एक सरल दृष्टिकोण से औपचारिक शहरी डिनर पार्टी के सांस्कृतिक टकराव का वर्णन किया। सरिता कपूर ने 60 वर्ष की होने पर मिलने वाली बिन मांगी सलाह और बुढ़ापे (“सठिया गए”) की धारणाओं पर हास्यपूर्ण ढंग से विचार व्यक्त किए।

    कार्यक्रम का समापन सुषमा अग्रवाल और रश्मि मिश्रा द्वारा औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिन्होंने आयोजकों, कई भाग लेने वाले कवियों, उत्साही दर्शकों (जिनके उत्साह ने कार्यक्रम को नियोजित अवधि से काफी आगे बढ़ा दिया), और निर्बाध वर्चुअल सभा को सुगम बनाने के लिए आरजेएस तकनीकी टीम के प्रति आभार व्यक्त किया।

    आयोजक उदय कुमार मन्ना ने आरजेएस पीबीएच के चल रहे मई माह की रूपरेखा प्रस्तुत की । उन्होंने 2034 तक चलने वाले “सकारात्मक दशक” के बारे में बात की, जिसका लक्ष्य 2047 तक भारत की आजादी की शताब्दी तक एक “सकारात्मक दुनिया” बनाना है। उन्होंने मातृ दिवस और बुद्ध पूर्णिमा सहित सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों को कवर करने वाले आगामी ऑनलाइन कार्यक्रमों की एक श्रृंखला की घोषणा की। मन्ना ने सोशल मीडिया के माध्यम से दर्शकों की भागीदारी का आग्रह किया, इस बात पर जोर देते हुए कि भागीदारी सकारात्मकता आंदोलन के ऐतिहासिक दस्तावेज़ीकरण में योगदान करती है। भविष्य की योजनाओं में व्यक्तित्व विकास पर कार्यशालाएं और आरजेएस पीबीएच से जुड़े युगल जोड़ियों अर्थात् पति-पत्नी के लिए फैमिली पुरस्कार शामिल हैं।

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