
अनीशा चौहान/- हरतालिका तीज एक अत्यंत पवित्र और भावनात्मक पर्व है, जो भक्ति, प्रेम और वैवाहिक जीवन की अटूट डोर को एक साथ बाँधता है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जो इस दिन पूरे निष्ठा और श्रद्धा के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन में प्रेम की वृद्धि के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं आदर्श जीवनसाथी की प्राप्ति की कामना करती हैं।
यह पर्व माता पार्वती के अटल संकल्प और तपस्या की उस दिव्य कथा को स्मरण कराता है, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तप किया था। माता की सखियों ने उन्हें घर से दूर ले जाकर इस तपस्या के लिए प्रेरित किया था। यही कारण है कि इस पर्व को “हरतालिका” नाम दिया गया है।
हरतालिका तीज का अर्थ और महत्व
“हरतालिका” शब्द दो भागों से मिलकर बना है— “हरत” जिसका अर्थ है अपहरण, और “आलिका” जिसका अर्थ है सखी। यह नाम उस पौराणिक प्रसंग से जुड़ा है, जब माता पार्वती की सखियों ने उन्हें विवाह हेतु उनके पिता से छिपाकर जंगल में ले जाकर तपस्या में बैठाया था। इस व्रत का उद्देश्य है शिव-पार्वती जैसे पवित्र दांपत्य की प्राप्ति और जीवन में अटूट प्रेम और विश्वास को बनाए रखना।
हरतालिका तीज 2025 की तिथि
हरतालिका तीज 2025 में यह व्रत 26 अगस्त 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ता है।
दक्षिण भारत में विशेष रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में इसे “गौरी हब्बा” कहा जाता है और माता गौरी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं देवी गौरी से अपने जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य की कामना करती हैं।
हरतालिका तीज 2025 का शुभ मुहूर्त
तृतीया तिथि प्रारंभ: 25 अगस्त 2025 को दोपहर 12:34 बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 26 अगस्त 2025 को दोपहर 01:54 बजे
प्रातःकालीन पूजा मुहूर्त: सुबह 05:56 बजे से 08:31 बजे तक (समय – 2 घंटे 35 मिनट)
इस दिन रात्रि जागरण और चार प्रहरों में की गई पूजा का भी विशेष महत्व होता है। यह पूजा चार समय खंडों में की जाती है:
- प्रथम प्रहर: शाम 06:00 से रात 09:00 बजे तक
- द्वितीय प्रहर: रात 09:00 से 12:00 बजे तक
- तृतीय प्रहर: रात 12:00 से तड़के 03:00 बजे तक
- चतुर्थ प्रहर: तड़के 03:00 से सुबह 06:00 बजे तक
हरतालिका तीज केवल एक पर्व नहीं, बल्कि नारी संकल्प, प्रेम, आस्था और तपस्या का प्रतीक है। यह पर्व हर वर्ष यह संदेश देता है कि सच्ची श्रद्धा और समर्पण से कोई भी उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।
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