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  • सीआरपीएफ में जवानों की आत्महत्या पर लिया संज्ञान, होगी तनावग्रस्त कर्मियों की पहचान

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    सीआरपीएफ में जवानों की आत्महत्या पर लिया संज्ञान, होगी तनावग्रस्त कर्मियों की पहचान

    -सीआरपीएफ में तनाव ग्रस्त कार्मियों को हथियारों से दूर रखा जायेगा खास निगरानी में

    नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- पिछले 23 दिन में देश के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल ’सीआरपीएफ’ में दो इंस्पेक्टरों और एक एसआई सहित 10 जवानों द्वारा आत्महत्या किए जाने का मामला सामने आने के बाद अब फोर्स हेडक्वार्टर ने संज्ञान लेते हुए कई कदम उठाए हैं। सीआरपीएफ हैड क्वार्टर के मुताबिक आत्महत्या के विभिन्न मामलों का अध्ययन करने के बाद कई तरह के निर्देश जारी किए गए हैं। बल की सभी यूनिटों में इस तरह के कर्मियों की पहचान की जाएगी, जो किसी भी तरह के मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। उन्हें मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिलाया जाएगा। जब तक वह कर्मी पूरी तरह से तनाव मुक्त न हो जाए, बल की विशेष निगरानी में रहेगा। ऐसे कर्मियों को हथियार की पहुंच से दूर रखा जाएगा। सीआरपीएफ में पिछले पांच वर्ष के दौरान 240 से अधिक जवान आत्महत्या कर चुके हैं। अगर सभी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की बात करें तो पांच वर्ष के दौरान 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है।

    ’निजी समस्या’ को ही जिम्मेदार ठहराया गया
    पिछले दिनों सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर की बॉडी पंखे से झूलती हुई मिली थी। दूसरे इंस्पेक्टर ने अपनी राइफल से खुद को गोली मार ली। एक सब-इंस्पेक्टर ने अपने गले में फंदा लगाकर जान दे दी थी। इस तरह की घटनाओं पर गृह मंत्रालय और फोर्स हेडक्वार्टर द्वारा एक ही जवाब मिलता रहा है कि संबंधित जवान को किसी तरह की कोई पारिवारिक समस्या रही होगी। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय भी संसद में इस तरह के सवालों के जवाब में कहते हैं कि इन बलों में आत्महत्याओं और भ्रातृहत्याओं को रोकने के लिए जोखिम के प्रासंगिक घटकों एवं प्रासंगिक जोखिम समूहों की पहचान करने तथा उपचारात्मक उपायों से संबंधित सुझाव देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है, जिसकी रिपोर्ट तैयार हो रही है। हालांकि गृह मंत्रालय की ओर से समय-समय पर आत्महत्या होने के मामलों के पीछे ’निजी समस्या’ को ही जिम्मेदार ठहराया गया है।

    रिपोर्ट में सामने आए हैं ऐसे कारण
    बल मुख्यालय द्वारा आत्महत्या के मामलों के पीछे की वजह जानने के लिए विभिन्न केसों का अध्ययन कराया गया था। बल मुख्यालय की रिपोर्ट में सामने आया है कि अधिकांश केसों में कार्मिक, पारिवारिक कलह, विवाहोत्तर संबंध, प्यार में नाकाम होने और कर्ज के दलदल में फंसने की वजह से मानसिक तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में कार्मिक अंततः आत्महत्या जैसा घोर घृणित कदम उठा लेते हैं। हालांकि बल महानिदेशालय द्वारा पूर्व में भी समय-समय पर ऐसे निर्देश जारी किए जाते रहे हैं। बल की तरफ से कहा गया है कि सभी स्तरों पर ऐसे तनाव ग्रस्त कार्मिकों की पहचान की जाए। इन कार्मिकों को मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिलाया जाए। जब तक वह कर्मी, तनाव मुक्त न हो जाएं, उन्हें विशेष निगरानी में रखें। ऐसे कार्मिकों को हथियार की पहुंच से दूर रखा जाए। मनोवैज्ञानिक सलाह के लिए टेलीफोन नंबर भी जारी किया गया है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा जारी मानसिक स्वास्थ्य एवं पुनर्वास के लिए टोल फ्री नंबर दिया गया है। सीमा सुरक्षा बल एवं एम्स के एमओयू द्वारा मुफ्त परामर्श के लिए भी कुछ फोन नंबर जारी किए गए हैं।

    पांच साल में 654 से ज्यादा जवानों ने की आत्महत्या
    केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जवानों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वालों में ब्त्च्थ् के 240, बीएसएफ के 174, सीआईएसएफ के 89, एसएसबी के 64, आईटीबीपी के 51, असम राइफल के 43 और एनएसजी के 3 जवान शामिल हैं। बजट सत्र के दौरान गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने अपनी 242वीं रिपोर्ट में कहा था कि आत्महत्या के केस, बल की वर्किंग कंडीशन पर असर डालते हैं। सेवा नियमों में सुधार की गुंजाइश है। जवानों को प्रोत्साहन दें। रोटेशन पॉलिसी के तहत पोस्टिंग दी जाए। लंबे समय तक कठोर तैनाती न दें। ट्रांसफर पॉलिसी ऐसी बनाई जाए कि जवानों को अपनी पसंद का ड्यूटी स्थल मिल जाए। अगर ऐसे उपाय किए जाते हैं तो नौकरी छोड़कर जाने वालों की संख्या कम हो सकती है।

    50155 कर्मियों ने जॉब को अलविदा कह दिया
    अगर पिछले पांच वर्ष की बात करें तो सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल्स में 50155 कर्मियों ने जॉब को अलविदा कह दिया है। संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की है कि सीएपीएफ में वर्किंग कंडीशन को बेहतर बनाया जाए। खाली पदों को शीघ्रता से भरा जाए। संसद सत्र में इस विषय को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था, इस बात का प्रयास चल रहा है कि सीएपीएफ कार्मिक अपने परिवारों के साथ यथासंभव प्रतिवर्ष 100 दिन बिता सकें। इन बलों में आत्महत्याओं और भ्रातृहत्याओं को रोकने के लिए जोखिम के प्रासंगिक घटकों एवं प्रासंगिक जोखिम समूहों की पहचान करने तथा उपचारात्मक उपायों से संबंधित सुझाव देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है। कार्यबल की रिपोर्ट तैयार हो रही है। सीएपीएफ में तबादले और छुट्टी को लेकर पारदर्शी नीतियां बनाई जा रही हैं। कठिन क्षेत्रों में सेवा करने के पश्चात यथासंभव उसकी पसंदीदा तैनाती पर विचार किया जाता है।

    ड्यूटी पर क्या परेशानी है, इस संबंध में बात नहीं होती
    कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह का कहना है, इन जवानों को घर की परेशानी नहीं है। सरकार इस मामले में झूठ बोल रही है। इन्हें ड्यूटी पर क्या परेशानी है, इस बारे में सरकार कोई बात नहीं करती। आतंक, नक्सल, चुनावी ड्यूटी, आपदा, वीआईपी सिक्योरिटी और अन्य मोर्चों पर इन बलों के जवान तैनात हैं। इसके बावजूद उन्हें सिविल फोर्स बता दिया जाता है। जवानों को पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। समय पर प्रमोशन या रैंक न मिलना भी जवानों को तनाव देता है। विभिन्न जगहों पर राशन में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। सीएपीएफ में कई जगहों पर वर्कलोड ज्यादा है। एक कंपनी में जवानों की तय संख्या कभी भी पूरी नहीं रहती। मुश्किल से साठ सत्तर जवान ही ड्यूटी पर रहते हैं। ऐसे में उनके ड्यूटी के घंटे बढ़ जाते हैं। जवान ठीक से सो नहीं पाते हैं। वे अपनी समस्या किसी के सामने रखते हैं, तो वहां ठीक तरह से सुनवाई नहीं हो पाती। ये बातें जवानों को तनाव की ओर ले जाती हैं। कुछ स्थानों पर बैरक एवं दूसरी सुविधाओं की कमी नजर आती है। कई दफा सीनियर की डांट फटकार भी जवान को आत्महत्या तक ले जाती है। नतीजा, जवान टेंशन में रहने लगते हैं।

    काउंसलिंग से लेकर दूसरे उपाय भी बेअसर
    पूर्व अधिकारियों का कहना है कि बल में हो रही आत्महत्याओं को लेकर गंभीरता से काम नहीं हो रहा। फाइल वर्क में ही बहुत कुछ निपट जाता है। जवान अपने परिवार से दूर रहते हैं। वहां पर अगर उनकी निजी समस्या भी है, तो वे उसके लिए किसके साथ बातचीत करेंगे। बल में ही किसी से कहेंगे। वहां पर उन्हें धमका कर भगा दिया जाता है। आत्महत्या के केस न बढ़ें, इसके लिए फाइलों में कई तरह की योजनाएं चलती हैं। हालांकि उसके बाद बल में आत्महत्या के मामले कम नहीं हो रहे हैं। इसके पीछे बल में सीनियर अधिकारियों द्वारा जवानों की बात ठीक तरह से नहीं सुनी जाती। जवान किसी को बताता है तो वहां डांट फटकार पड़ती है। नतीजा, वह घुट कर जीने लगता है। जब वह दबाव सहने की शक्ति से बाहर चला जाता है, तो जवान आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाता है। अगर बल के भीतर में कोई भी अधिकारी उसके साथ प्यार से बात करे तो वह मौत जैसे कठोर कदम से पीछे हट सकता है।

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