
मानसी शर्मा /- जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों पर अभी भी वोटों की गिनती जारी है। दोपहर 2बजे तक की मतगणना के अनुसार, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन 50 सीटों पर आगे चल रहा है। वहीं, बीजेपी 26 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। इसके अलावा, महबूबा मुफ्ती की पीडीपी 5सीटों पर आगे चल रही है। निर्दलीय पार्टियां 9 सीटों पर आगे हैं। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर भी बीजेपी जहां थी वही हैं।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना
मोदी सरकार ने वादा किया था कि वह जम्मू-कश्मीर को अलग नहीं होने देगी। सरकार बहुत पहले से कहती आ रही है कि राज्य में चुनाव जल्द ही होंगे। वहीं, इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दे दिया कि जम्मू-कश्मीर में सरकार अतिशीघ्र चुनाव करवाए। भले ही बीजेपी जम्मू कश्मीर में सरकार नहीं बना पा रही है पर एक राष्ट्र के निर्माण के रूप में कश्मीर में सफलतापूर्वक चुनाव करवाया है। इससे दुनिया को संदेश है कि भारत ने कश्मीर पर अवैध कब्जा नहीं किया हुआ है।
जम्मू कश्मीर में निष्पक्ष चुनाव
जम्मू कश्मीर में पिछले कई दशकों से आतंक के साये में चुनाव हो रहे हैं। यहां सही मायनों में चुनाव नहीं हो रहे थे। क्योंकि कई लोग वोट डालने जाते ही नहीं थे और बहुत से लोग चुनाव लड़ते ही नहीं थे। बीजेपी के’नया कश्मीर’ में सुरक्षा पर ज्यादा जोर दिया गया। सरकार ने आतंकवाद, अलगाववाद और पत्थरबाजी के खिलाफ कार्रवाई भी की। इससे राज्य के कई लोग खुस थे। तो वहीं, बहुत से लोगों को ऐसा भी महसूस किया गया कि अभिव्यक्ति की आजादी को दबाया जा रहा है।
प्रतिबंधित संगठनों के लोगों को मिला मौका
प्रतिबंधित जमात-ए- इस्लामी ने पहले चुनाव बहिष्कार किया और अब लोकतंत्र का गुणगान करती दिखाई दे रही है। तमाम प्रतिबंधित संगठनों के लोगों को भी लोकतंत्र के इस उत्सव में भाग लेने का मौका मिला। सबसे बड़ी बात ये रही कि जिन लोगों को भारतीय संविधान में विश्वास नहीं था कम से कम इस चुनाव के बहाने उन्होंने भारतीय संविधान को स्वीकार किया।
लोकतांत्रिक भागीदारी वाला चुनाव
अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद केंद्र ने जम्मू कश्मीर के चुनावों को पहले से अधिक लोकतांत्रिक बना दिया। पहली बार जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटें आरक्षित की गईं हैं। जबकि अनुसूचित जातियों के लिए 7 सीटें आरक्षित की गईं हैं। कोई भी लोकतंत्र अगर अपने सभी नागरिकों को वोटिग राइट नहीं देता है तो वह अधूरा ही कहलाएगा।
1987 में जम्मू कश्मीर में हुए चुनाव में हेराफेरी
साल 2022 में अमेरिकी कांग्रेस को एक रिपोर्ट सौंपी गई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार, 1987 में राजीव गांधी की सरकार ने कश्मीरी मुस्लिम आबादी को चुनाव में वोट देने से वंचित कर दिया था। 1987 में पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने चुनावों में हेराफेर की थी। जिसके कारण जम्मू-कश्मीर में व्यापक आक्रोश पैदा हुआ। जिसके बाद 1989 तक घाटी में उग्रवाद और आतंकवाद का उदय हुआ।
चुनाव में बड़े पैमाने पर की धांधली कार्रवाई
दरअसल, राज्य के राज्यपाल जगमोहन ने 1986 में गुलाम मोहम्मद शाह के नेतृत्व वाली अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार को बर्खास्त कर दिया था। जिससे घाटी में गुस्सा भड़क उठा। उस समय की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली कार्रवाई की थी। जिसके बाद अब्दुल गनी लोन ने दुखी होकर कहा, इससे भारत सरकार के खिलाफ लोगों की भावनाएं और गहरी होंगी।
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