
लंदन/शिव कुमार यादव/- राष्ट्रमंडल महासचिव पेट्रीसिया स्कॉटलैंड ने भारत की तकनीकी सहायता की सराहना की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रमंडल के लिए भारत की तकनीकी सहायता बहुत महत्वपूर्ण है। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि इससे कई विकासशील देशों को विकास संबंधी चुनौतियों से पार पाने में काफी उम्मीद मिलती है, जिन्हें भारत पहले ही स्वीकार कर चुका है और उनसे आगे निकल चुका है।

लंदन में राष्ट्रमंडल सचिवालय मार्लबोरो हाउस मुख्यालय में गुरुवार को दो दिवसीय बैठक शुरू हुई। इस दौरान राष्ट्रमंडल महासचिव स्कॉटलैंड ने मंत्रियों से शिक्षा तक पहुंच में बाधा डालने वाली बाधाओं को दूर करने का आह्वान किया।
राष्ट्रमंडल शिक्षा मंत्रियों का 22वां सम्मेलन
56 सदस्यीय संगठन की महासचिव ने यह बयान लंदन में राष्ट्रमंडल शिक्षा मंत्रियों के 22वें सम्मेलन की मेजबानी के दौरान दिया। बता दें, सम्मेलन का विषय ’समावेशी भविष्य के लिए लचीलापन, समानता और कौशल को बढ़ावा देना’ था। स्कॉटलैंड ने राष्ट्रमंडल के साथ एक खुले स्रोत तरीके से तकनीकी विकास साझा करने की भारत की इच्छा का स्वागत किया और संगठन के शैक्षिक लक्ष्यों के प्रति अधिक प्रतिबद्धता की उम्मीद की।
खुले स्रोत के रूप में साझा…
उन्होंने आगे कहा, ’भारत ने यह साफ कर दिया है कि वह अपने तकनीकी विकास को अपने राष्ट्रमंडल परिवार के साथ साझा करने को तैयार है और इसे खुले स्रोत के रूप में साझा करना चाहता है।’
कई विकासशील देशों के लिए उम्मीद की किरण
राष्ट्रमंडल महासचिव ने कहा कि कई विकासशील देशों के लिए यह उम्मीद की किरण है क्योंकि तकनीकी विकास उन्हें उन विकास संबंधी चुनौतियों से पार पाने में सक्षम बनाता है, जिन्हें भारत पहले ही झेल चुका है और उससे आगे निकल चुका है। अभी तक उन्होंने हमें जो कुछ भी बताया है, मैं उसके लिए भारत सरकार का शुक्रिया अदा करना चाहूंगी और मैं इस बात को लेकर आश्वस्त होना चाहती हूं कि हम भारत की ओर से आगे बढ़ने के लिए किए गए वित्तीय और अन्य तरह के योगदान पर भरोसा कर सकते हैं।’
कैलाश सत्यार्थी ने कही यह बात
वहीं, सम्मेलन में समाज सुधारक और नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी भी मौजूद रहे। उन्होंने इस दौरान पिछले 15-20 वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में भारत की तरक्की पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ’दयालु बुद्धि निस्वार्थ, वास्तविक समस्या-समाधान है। समस्या हल करने वालों और समस्या पीड़ितों के बीच अंतर एक गंभीर सवाल उठाता है। शिक्षा मंत्री और शिक्षा क्षेत्र यह सुनिश्चित करने में नेतृत्व की भूमिका निभा सकते हैं कि हमारे बच्चे करुणा बुद्धि विकसित कर सकें और बढ़ते विभाजन व भेदभावपूर्ण प्रथाओं को कम कर सकें।’
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