लखनऊ/शिव कुमार यादव/- कड़ी धूप में आठ घंटे की हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद जो मजदूरी हाथ लगती है उससे कहीं ज्यादा मनरेगा मजदूरों को चुनावी नारे बाजी की सहूलियते और सुविधाऐ भा रही है। जिसके चलते मजदूर मनरेगा से मुंह मोड़ रहे है और चुनावी कार्यकर्ता बन नारेबाजी में जुड़ रहे है। मजदूरों को चुनावी नारेबाजी में मिल रहे 300 रूपये नकद, खाना-पानी व फ्री ऐशोआराम मनरेगा मजदूरी से ज्यादा रास आ रहा है। इलाकाई नेताओं के लिए भी ये मजदूर मुफीद साबित हो रहे हैं। क्योंकि, दूसरे कार्यकर्ताओं के मुकाबले इन पर खर्च कम है। प्रत्याशियों को ये पैकेज करीब 40 फीसदी तक सस्ता पड़ रहा है। वहीं, ये भाव नहीं खाते और मेहनतकश होने से इन्हें गर्मी-लू भी ज्यादा नहीं सताती।
देश में पहली अप्रैल से मनरेगा मजदूरों को 337 रुपये मजदूरी मिल रही है। मजदूरी की दर में सात रुपये का इजाफा हुआ है। अप्रैल से पहले मनरेगा में मजदूरी 330 रुपये थी। चुनावी सीजन में मनरेगा मजदूरों की भी सहालग चल रही है।
चुनावी सीजन में मनरेगा मजदूरों की एक खेप विभिन्न दलों के कार्यकर्ताओं के रूप में दिहाड़ी कर रही है। विशेषकर ग्रामीण इलाकों में सस्ते में ठेके पर इनकी सप्लाई हो रही है। कानपुर देहात, मिश्रिख, इटावा, घाटमपुर, हमीरपुर, महोबा से लेकर सहारनपुर, मेरठ, गजरौला, उतरौला, सोनभद्र, बलरामपुर तक मनरेगा मजदूरों की सेवाएं विभिन्न राजनीतिक दल ले रहे हैं। तीन प्रत्याशियों को प्रचार में सेवाएं देने वाली लखनऊ स्थित मैनपावर सप्लाई करने वाली कंपनी के एमडी बताते हैं कि गर्मी की वजह से गली-गली प्रचार करना चुनौती है।
प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों के पास यूं तो कार्यकर्ताओं की लंबी-चौड़ी टीम है, लेकिन झुलसाती गर्मी उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा है। मतदाता पर्ची, पम्फलेट्स, डोर-टू-डोर कैम्पेन के लिए मनरेगा श्रमिकों को लिया जा रहा है।
पैकेज अच्छा है
मैनपावर सप्लाई करने वाली कंपनी के एमडी ने बताया कि मनरेगा श्रमिकों को पढ़ाई और स्मार्टनेस के हिसाब से पैकेज मिल रहा है। रोजाना न्यूनतम 300 रुपये और अधिकतम 500 रुपये दिहाड़ी है। सुबह नाश्ता, दिन में भोजन, रात के खाने के अलावा तीन बार चाय और शाम को ‘सुरा’ का भी इंतजाम हो जाता है। दस गांवों के लिए एक टीम तैयार की गई है। इसमें 5 से 10 मजदूर हैं। आबादी के हिसाब से ये संख्या घट-बढ़ भी सकती है। वाहन वालों को पेट्रोल भत्ता मिलता है।
धूप में दौड़ने में माहिर
सूत्रों के मुताबिक मनरेगा मजदूरों को कार्यकर्ता बनाने का ट्रेंड केवल यूपी में ही नहीं, बल्कि बिहार, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी खूब है। इनमें ‘नखरे’ कम हैं। शारीरिक रूप से फिट होने और मेहनती होने की वजह से गर्मी-लू झेल लेते हैं। भरी दुपहरी में भी गांवों में प्रचार के लिए निकल जाते हैं।
मैनपावर सप्लाई कंपनी के मुताबिक अकेले उन्होंने तीन राज्यों में एक राजनीतिक दल के लिए 4000 से ज्यादा मनरेगा श्रमिकों की सप्लाई की है। इसमें स्थानीय स्तर के ग्राम प्रधानों की मदद ली है और उन्हें इसके एवज में मोटी फीस दी गई है।
लोकेशन भी ट्रैक कर रहे
राजनेता भी कार्यकर्ताओं से ज्यादा नहीं कह-सुन सकते, लेकिन अनुबंधित मजदूरों के साथ प्रोफेशनल व्यवहार कर सकते हैं। जिन मजदूरों को पैसा दिया जा रहा है, उनकी लोकेशन ट्रैक की जा रही है। गूगल ट्रैक इसमें मददगार बन रहा है। इससे उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी जाती है। किस गांव में और कितने घर में गए, इसकी निगरानी भी कंट्रोल रूम से हो जाती है। यह निगरानी मैनेजमेंट कंपनी करती है। इसका फायदा ये है कि वास्तविक मूवमेंट और प्रचार का पूरा डाटा प्रत्याशी के पास मौजूद रहता है।
इस्राइल जाने वाले कुशल कामगार भी कर रहे पार्टटाइम
दिलचस्प बात यह है कि प्रचार में ऐसे कुशल कामगार भी लगे हैं जिनका चयन इस्राइल जाने के लिए हो गया है। उन्हें 1.37 लाख रुपये महीना वेतन मिलेगा। जबतक उनके जाने की बारी नहीं आ जाती, उन्होंने कामकाज के बजाय प्रचार का बाजार पकड़ लिया है।
लखनऊ में मैनपावर सप्लाई करने वाली कंपनी के अधिकारी ने बताया कि राजधानी में ट्रेनिंग और परीक्षा के दौरान उन्होंने अधिकांश कामगारों का डाटा तैयार किया था। सेलेक्शन के बाद इस्राइल जाने की प्रतीक्षा कर रहे ये कुशल कामगार काम में तेज हैं। इन्हें ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में लगाया गया है। वह कहते हैं, ऐसे 250 कुशल कामगारों को चुनाव का रोजगार उन्होंने दिया है।
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