नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/ – भारत ने रूस के बाद पहली बार संयुक्त अरब अमीरात से तेल खरीद के लिए रुपये का इस्तेमाल किया है। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता भारत स्थानीय मुद्रा में तेल की खरीद को बढ़ावा दे रहा ताकि वो अन्य तेल आपूर्तिकर्ताओं के साथ भी इस तरह का सौदा कर सके। हालांकि भारत ने रूस से भी रूपये में कच्चा तेल खरीदा था लेकिन यह डील पूरी तरह से सिरे नही चढ़ सकी जिसकारण अब भारत ने यूएई से यह डील की है। भारत कच्चे तेल की खरीद के लिए तीन स्तरीय रणनीति अपना रहा है जिसमें वैश्विक स्तर पर स्थानीय मुद्रा को बढ़ावा देने के लिए यह भारत की ओर से उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है। यह कदम तेल आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाने, लेनदेन लागत में कटौती करने और रुपये को एक व्यवहार्य व्यापार निपटान मुद्रा के रूप में स्थापित करने के भारत के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है और रूसी तेल पर लगे 60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप जैसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन न करना शामिल है।
भारत की इस तीन स्तरीय रणनीति ने अरबों डॉलर बचाने में मदद की है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया जिससे भारी मुनाफा हुआ है। इसी के साथ ही भारत अब डॉलर की अदला-बदली में होने वाली लागत से बचने के लिए रुपये में व्यापार को बढ़ावा देना चाहता है। भारत ने जुलाई में यूएई के साथ रुपये के निपटान के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था और इसके तुरंत बाद इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडीएनओसी) से दस लाख बैरल कच्चे तेल की खरीद के लिए भारतीय रुपये में भुगतान किया।
भारत ने रूस से भी कुछ मात्रा में कच्चे तेल की खरीद के लिए रुपये का इस्तेमाल किया था हालांकि, रूस के साथ रुपये में व्यापार को लेकर बात बहुत ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई। अधिकारियों का कहना है कि विदेशी व्यापार के लिए दशकों से अमेरिकी डॉलर ही इस्तेमाल होता आया है लेकिन अब भारत डॉलर के इस्तेमाल को कम कर भारतीय रुपये में व्यापार को बढ़ावा देना चाहता है।
कई देशों से साथ रुपये में व्यापार करने की योजना
रुपये में विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भारत के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले साल से एक दर्जन से अधिक बैंकों को 18 देशों के साथ रुपये में ट्रेड सेटलमेंट की अनुमति दी है। इसके बाद से ही भारत, यूएई और सऊदी अरब जैसे बड़े तेल निर्यातकों से रुपये में भुगतान लेने को कह रहा है। अधिकारियों ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘रुपये में व्यापार की पहली सफलता इस साल अगस्त में मिली जब आईओसी ने एडीएनओसी को रुपये में भुगतान किया।’
रातों रात नहीं हो सकता मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण
अधिकारी ने कहा कि आनेवाले वक्त में इस तरह की और भी डील हो सकती है। उन्होंने कहा कि रुपये में व्यापार को लेकर कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया जा सकता क्योंकि मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण एक लंबी प्रक्रिया है जो रातोंरात नहीं हो सकती। वहीं एक अधिकारी ने कहा, ‘हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि इससे रुपये में ट्रेड सेटलमेंट लागत में वृद्धि न हो और यह व्यापार के लिए किसी भी तरह से हानिकारक न हो।’ एक अन्य अधिकारी का कहना है, ‘जब हम छोटा-मोटा व्यापार कर रहे हों तब तो रुपये में व्यापार में कोई दिक्कत पेश नहीं आती लेकिन जब हमें लाखों डॉलर का तेल खरीदना हो तब रुपये में भुगतान में दिक्कत है।’
अधिकारियों का कहना है कि रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण डॉलर की मांग को कम करने में मदद करेगा और डॉलर के उतार-चढ़ाव का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव भी कम होगा। अधिकारियों ने कहा है कि भारत ने पहली बार संयुक्त अरब अमीरात से तेल खरीद के लिए रुपये का इस्तेमाल किया है। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता भारत स्थानीय मुद्रा में तेल की खरीद को बढ़ावा दे रहा ताकि वो अन्य तेल आपूर्तिकर्ताओं के साथ भी इस तरह का सौदा कर सके। भारत कच्चे तेल की खरीद के लिए तीन स्तरीय रणनीति अपना रहा है जिसमें जितना हो सके सस्ता तेल खरीदना, आपूर्तिकर्ता देशों में विविधता लाना और रूसी तेल पर लगे 60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप जैसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन न करना शामिल है।
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