• DENTOTO
  • भारत का नेट-ज़ीरो होना संभव, लेकिन जटिल भी !

    स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

    शिव कुमार यादव

    वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

    संपादक

    भावना शर्मा

    पत्रकार एवं समाजसेवी

    प्रबन्धक

    Birendra Kumar

    बिरेन्द्र कुमार

    सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

    Categories

    May 2025
    M T W T F S S
     1234
    567891011
    12131415161718
    19202122232425
    262728293031  
    May 20, 2025

    हर ख़बर पर हमारी पकड़

    भारत का नेट-ज़ीरो होना संभव, लेकिन जटिल भी !

    - भारत फ़िलहाल नेट-जीरो एमिशन के लिए तैयार नहीं और तमाम स्तरों पर विरोध करता दिख रहा है। भारत का मानना है कि ऐसा कुछ करने के देश के विकास पर नकारात्मक असर पड़ेंगे। जॉन केरी, जो कि जो बाइडेन के क्लाइमेट दूत हैं, तीन दिन के लिए भारत में रहे।

    जिस जलवायु परिर्वतन को अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के दौरान ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, उसे जो बिडेन के नेतृत्व में अमेरिका की ओर से दुनिया की सबसे बड़ी प्राथमिकता के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इसी सिलसिले में जॉन केरी, जो कि जो बाइडेन के क्लाइमेट दूत हैं, तीन दिन के लिए भारत में रहे। उनकी मौजूदगी की वजह थी क्लाइमेट लीडरसमिट से पहले भारत को नेट ज़ीरो होने या कोई मिलते जुलते महत्वकांक्षी जलवायु लक्ष्य के लिए कायल करना। पीएम नरेंद्र मोदी को भी इस समिट में आमंत्रित किया गया है।

    लेकिन भारत फ़िलहाल नेट-जीरो एमिशन के लिए तैयार नहीं और तमाम स्तरों पर विरोध करता दिख रहा है। भारत का मानना है कि ऐसा कुछ करने के देश के विकास पर नकारात्मक असर पड़ेंगे।

    भारत की फ़िलहाल ऐसी स्थिति है कि आने वाले दशकों में भारत से होने वाले उत्सर्जन में ख़ासी गति देखने की संभावना है। भारत को अगर सैकड़ों करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालना है तो उसे अपनी विकास दर को गति देनी होगी और इसमें उत्सर्जन बढ़ना तय है। वैसे भी, मौजूदा समय में कार्बन हटाने वाली अधिकांश तकनीकें या तो अविश्वसनीय हैं या बहुत महंगी। भारत का सबसे बड़ा तर्क है कि भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन बेहद कम है और कुल आंकड़ा इस वृहद जनसंख्या की वजह से बड़ा लगता है।

    इस बीच नेट जीरो उत्‍सर्जन के लक्ष्‍यों की प्राप्ति को लेकर वैश्विक स्‍तर पर बढ़ते विमर्श के बीच विेशेषज्ञों का मानना है कि भारत जैसे देश में इस दिशा में फैसले सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को ध्‍यान में रखकर बेहद न्‍यायसंगत तरीके से करने होंगे।

    इस बात को लेकर मंथन तेज हो रहा है कि क्‍या भारत को अपनी अर्थव्‍यवस्‍था में नेट जीरो उत्‍सर्जन सम्‍बन्‍धी लक्ष्‍यों को हासिल करने पर ही ध्‍यान केन्द्रित करना चाहिये या फिर उसे विकास के अवसरों को सुरक्षित करना चाहिये। बातचीत का एक पहलू यह भी है कि क्‍या ये दोनों ही काम एक साथ हो सकते हैं?

    द इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट से जाहिर होता है कि भारत वर्ष 2060 के दशक के मध्‍य तक नेट जीरो प्रदूषण का लक्ष्‍य हासिल कर सकता है। हालांकि नेट जीरो एक बहुत बड़ा संकल्‍प है जिसे सामाजिक रूप से समावेशी, आर्थिक रूप से व्‍यावहारिक और ठोस नीतियों की जरूरत है। इसके लिये एक व्‍यापक संवाद की आवश्‍यकता है।

    इस महत्‍वपूर्ण मुद्दे पर बात करने के लिये क्‍लाइमेट ट्रेंड्स ने एक वेबिनार आयोजित किया, जिसमें आईफॉरेस्‍ट के सीईओ चंद्र भूषण, डब्‍ल्‍यूआरआई इंडिया के क्‍लाइमेट प्रोग्राम की निदेशक उल्‍का केलकर, सीईईडब्‍ल्‍यू के फेलो वैभव चतुर्वेदी, टेरी के कार्यक्रम निदेशक (अर्थ साइंस एवं जलवायु परिवर्तन) आर आर रश्मि और आईईईएफए की एनर्जी इकॉनमिस्‍ट विभूति गर्ग ने हिस्‍सा लिया।

    चंद्र भूषण ने देश के नेट-जीरो के लक्ष्‍य को खासा अहम बताया मगर आगाह‍ भी‍ किया कि इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को देखते हुए यह आसान काम नहीं है। भारत ने पिछले 30 सालों के दौरान अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत खराब गति से प्रगति की है। हालांकि अब स्थितियां बदल रही हैं। देश के इतिहास में पहली बार राज्य सरकारों ने डीकार्बनाइजेशन के लक्ष्‍य घोषित करना शुरू कर दिया है। संघीय ढांचे में एक बहुत स्वस्थ परंपरा है और इसे जारी रखना चाहिए।

    राज्यों के पास अपने इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और अपनी इकाइयां हैं। उनके अपने लाभ-हानि और चुनौतियां हैं।

    उन्‍होंने कहा कि भारत में नेट-जीरो पर विचार-विमर्श की शुरुआत भर हुई है। जहां तक नेट-जीरो के लक्ष्‍य को हासिल करने का सवाल है तो भारत के वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य प्राप्‍त कर पाना मुमकिन नहीं लगता।

    नेट-जीरो को बेहद न्‍यायसंगतबनाने की जरूरत पर जोर देते हुए भूषण ने कहा कि भारत का कोयला उद्योग संकट के दौर से जूझ रहा है। झारखंड की 50% खदानें बंद हो चुकी हैं। कोल इंडिया बहुत ही बेतरतीब तरीके से इन्हें बंद कर रही है। सामाजिक-आर्थिक पहलू बहुत महत्वपूर्ण हैं इसलिए न्यायपूर्ण रूपांतरण बेहद जरूरी होगा। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम अपने लोगों को इस बदलाव के लिए किस तरह तैयार कर पाते हैं।

    टेरी के कार्यक्रम निदेशक (अर्थ साइंस एवं जलवायु परिवर्तन) आर आर रश्मि ने कहा कि भारत को बेशक नेट-जीरो रूपांतरण की जरूरत है। हमें प्रभावशाली और तीव्र रूपान्‍तरण करना होगा। पूर्व में हमारे पास प्रौद्योगिकियां थीं, मगर कम से कम आर्थिक कीमत पर रूपांतरण करने को लेकर कोई व्यापक सोच नहीं थी। अगर नियामक प्रयासों का सहयोग और जन इच्‍छाशक्ति हो तो नेट जीरो का लक्ष्‍य हासिल किया जा सकता है।

    उन्‍होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या हम वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्‍य हासिल करने के लिये इसी रफ्तार से रूपांतरण कर सकते हैं। वर्ष 2050 तक नेट जीरो हासिल करने के लिए औद्योगिक क्षेत्र को कार्बन से मुक्त करना बहुत बड़ी चुनौती है। निवेशकों को आकर बहुत बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा। ऐसा करना संभव भी है। नीति निर्धारकों को चीजों के बीच संतुलन बनाना होगा। हम अल्‍पकालिक और दीर्घकालिक दोनों ही तरह के लक्षण की तरफ देख रहे हैं। जहां तक अल्‍पकालिक डीकार्बनाइजेशन लक्ष्‍य का सवाल है तो भारत बहुत अच्छा काम कर रहा है लेकिन इसके लिए संसाधन जुटाने की चुनौती भी बरकरार है।

    सीईईडब्‍ल्‍यू के फेलो वैभव चतुर्वेदी ने कहा कि अल्‍पकालिक लक्ष्‍य दीर्घकालिक लक्ष्यों का विकल्‍प नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि दीर्घकालिक उद्देश्य और अल्पकालिक लक्ष्य एक दूसरे के विकल्प नहीं बल्कि परस्पर पूरक हैं। दीर्घकालिक लक्ष्य इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि नीतिगत संकेतों की शक्ति को कम करके नहीं आंका जा सकता। विश्वसनीयता और निश्चितता दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं और अल्पकालिक लक्ष्यों से दीर्घकालिक उद्देश्य का रास्ता मिलना चाहिए।

    उन्होंने कहा कि यह संभव है कि वर्ष 2065 से 2070 के बीच नेटजीरो का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। मौजूदा संकेत यह बताते हैं कि भारत वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिहाज से पीछे है।

    उन्होंने कहा कि भारत को पावर प्राइसिंग में सुधार करने की जरूरत है। इसके अलावा कुछ अन्य सवाल हैं जिनके जवाब ढूंढने होंगे जैसे कि शून्‍य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के बाद कोयला खदानों में काम करने वाले पांच लाख श्रमिकों को प्रतिपूर्ति का पैकेज दिया जाएगा या नहीं। नेट जीरो का लक्ष्‍य हासिल होने के बाद कोल इंडिया, ओएनजीसी और गेल का क्या होगा। इसके अलावा फंसी हुई संपत्तियों का इस्तेमाल किस तरह किया जाएगा। समानता और जलवायु संबंधी न्याय संगतता की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

    डब्‍ल्‍यूआरआई इंडिया के क्‍लाइमेट प्रोग्राम की निदेशक उल्‍का केलकर ने कहा कि भारत में प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार ट्रकों से निकलने वाला धुआं है। उल्का ने नेटजीरो का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में जरूरी कदमों का जिक्र करते हुए बताया कि सीईए ने वर्ष 2027 तक 191 गीगावॉट में से 43 गीगावॉट उत्पादन क्षमता के परंपरागत बिजली घरों को इस्तेमाल से बाहर करने की योजना बनाई है। वर्ष 2032 तक 7 गीगा वाट प्रति वर्ष के हिसाब से कोयला बिजली घरों को चलन से बाहर किया जाएगा।

    उन्होंने कहा कि वर्ष 2050 तक कोयला पेट्रोलियम प्राकृतिक गैस के संयोजन से मिलने वाली ऊर्जा के 50% हिस्से को वर्ष 2050 तक बिजली और हाइड्रोजन के जरिए उत्पादित किया जाए।

    आईईईएफए की एनर्जी इकॉनमिस्‍ट विभूति गर्ग ने कहा कि भारत को नेटजीरो का लक्ष्‍य हासिल करने के लिए एक प्रक्षेपवक्र (ट्रैजेक्‍ट्री) की जरूरत है। मेरा मानना है कि कुछ सेक्टर जैसे कि इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसपोर्ट के पास सस्ते विकल्प हैं। भारत को टॉप डाउन या बॉटम अप अप्रोच भी अपनानी होगी। टुकड़ों में देखें तो नेट जीरो का लक्ष्‍य हासिल करने के लिहाज से तस्‍वीर उत्‍साहजनक है मगर पूरे भारत में नेटजीरो टारगेट हासिल करने के लिए गहन विश्लेषण की जरूरत है।

    उन्‍होंने कहा कि भारत को वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा का लक्ष्‍य हासिल करने के लिये 500 बिलियन डॉलर की जरूरत है। यह बहुत बड़ी मांग है, लेकिन हमारे पास रास्ते खुले हुए हैं। ओवरसीज फंडिंग और कोलैबोरेटेड इन्वेस्टमेंट के जरिए हम लक्ष्‍य को हासिल कर सकते हैं। भारत-अमेरिका के बीच पार्टनरशिप एक महत्वपूर्ण भागीदारी होगी। भारत को ग्रोइंग कैपिटल टूल का इस्तेमाल करने की जरूरत है। ऐसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वित्‍तपोषण को हासिल करने की जरूरत है जिन्हें अक्षय ऊर्जा की तरफ मोड़ा जा रहा है। मेरा मानना है कि क्लाइमेट फाइनेंस पर फोकस किया जाना चाहिए और निवेश के प्रवाह को काफी तेजी से बढ़ाना होगा।

    क्‍लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि भारत निकट भविष्‍य में अक्षय ऊर्जा का बड़ा बाजार बनेगा। भारत में नेट जीरो उत्‍सर्जन का लक्ष्‍य हासिल करने की सम्‍भावनाएं हैं, मगर इसके लिये समावेशी रवैया अपनाना होगा। भारत का सामाजिक-आर्थिक परिदृश्‍य बेहद जटिल है, मगर नेट जीरो लक्ष्‍य को हासिल करने में इस पहलू की उपेक्षा बहुत नुकसानदेह होगी।

    About Post Author

    Subscribe to get news in your inbox