अनीशा चौहान/- हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह 15 दिनों की अवधि पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए समर्पित होती है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, जो भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर सर्वपितृ अमावस्या तक चलता है। इस दौरान श्राद्ध और तर्पण जैसे धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जिन्हें पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस समय किए गए कर्म पितरों को मुक्ति दिलाते हैं और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। इसी कारण पितृ पक्ष में विवाह, गृह प्रवेश या कोई भी मांगलिक कार्य करना अशुभ माना जाता है।
पितृ पक्ष 2025 की तिथियां
इस वर्ष पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025, रविवार से शुरू होकर 21 सितंबर 2025, रविवार को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा। वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा
7 सितंबर – पूर्णिमा श्राद्ध
8 सितंबर – प्रतिपदा श्राद्ध
9 सितंबर – द्वितीया श्राद्ध
10 सितंबर – तृतीया और चतुर्थी श्राद्ध
11 सितंबर – पंचमी व महाभरणी
12 सितंबर – षष्ठी श्राद्ध
13 सितंबर – सप्तमी श्राद्ध
14 सितंबर – अष्टमी श्राद्ध
15 सितंबर – नवमी श्राद्ध
16 सितंबर – दशमी श्राद्ध
17 सितंबर – एकादशी श्राद्ध
18 सितंबर – द्वादशी श्राद्ध
19 सितंबर – त्रयोदशी व माघ श्राद्ध
20 सितंबर – चतुर्दशी श्राद्ध
21 सितंबर – सर्वपितृ अमावस्या
श्राद्ध की विधि और समय
श्राद्ध करने का सबसे शुभ समय दोपहर का काल माना जाता है। कुतुप और रौहिण मुहूर्त को विशेष रूप से श्रेष्ठ माना जाता है। श्राद्ध में तर्पण करना, ब्राह्मणों को भोजन कराना, दान-दक्षिणा देना और जरूरतमंदों की सेवा करना पुण्यदायी होता है। साथ ही, कौवे, गाय, कुत्ते और चींटियों को भोजन अर्पित करना अनिवार्य है, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना जाता है।
महत्व
पितृ पक्ष केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और स्मरण का अवसर है। इस समय किए गए श्राद्ध और तर्पण से पूर्वजों की आत्मा की शांति होती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।


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