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    द्वारका में असली सुधार या सिर्फ दिखावा?

    नई दिल्ली/ स्मिता सिंह/-  द्वारका जिले में हाल ही में पुलिस कमिश्नर, सांसद कमलजीत सेहरावत और जिलाधीश ने लगातार बैठकों का दौर शुरू किया है, जिनका मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में अतिक्रमण को समाप्त करना और इलाके को जाम-मुक्त बनाना है। इन बैठकों का आयोजन आमतौर पर डीसीपी द्वारका के कार्यालय में होता है और यह प्रतीत होता है कि नई सांसद कमलजीत ने इसे अपना पहला मिशन बना लिया है।

    हालांकि, यह सब देखने में बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन इसके पीछे की वास्तविकता कुछ और ही है। इन बैठकों में मौजूद अधिकांश अधिकारी, चाहे वे पुलिस विभाग से हों या प्रशासनिक पक्ष से, स्वयं भी इन समस्याओं के जिम्मेदार हैं। जानकारी के अनुसार, इन अधिकारियों के खुद के फायदे भी इसी समस्या में जुड़े हुए हैं।

    सांसद कमलजीत की अपील के बावजूद, अगर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, तो इसका मतलब है कि सांसद को अभी तक इस मुद्दे से कोई आर्थिक लाभ नहीं मिला होगा। स्थानीय रेडी-पैटी वालों से मिली सूचनाओं के अनुसार, उनके द्वारा पैसे की मांग की जा रही है, जो कि घूस की रकम हो सकती है। यह रकम कई करोड़ों में हो सकती है।

    इन समस्याओं के चलते, एक दिन अचानक इन रेडी-पैटी वालों का नामो-निशान मिटा दिया जाता है, लेकिन अगले ही दिन ये वापस आ जाते हैं। यह दिखावा अधिक होता है, जबकि समस्या बनी रहती है। यह पूरी प्रक्रिया एक तरह से पिक्चर-परफेक्ट मीटिंग की तरह लगती है, जिसमें वास्तविकता से दूर एक चकाचौंध वाला प्रदर्शन होता है।

    सांसद और अन्य सरकारी अधिकारी खुद भी इन समस्याओं से बख़बर नहीं हैं और उनके ‘रोजगार के टैक्स’ को वसूलने की जिम्मेदारी उनके ऊपर है। यह सुनिश्चित करना कि ये बैठके सिर्फ दिखावे के लिए न हो, बल्कि इसके पीछे की वास्तविकता को उजागर किया जाए, हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है।

    आखिरकार, इस पूरे परिदृश्य से यह स्पष्ट होता है कि अगर सरकारी अधिकारियों और नेताओं की वास्तविक जिम्मेदारी निभाई जाती, तो समस्याओं का समाधान बहुत पहले हो चुका होता। लेकिन फिलहाल, यह सब केवल एक दिखावा है और जनता को इसकी सच्चाई जानने का हक है।

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