मानसी शर्मा / – दिल्ली-मुंबई के बीच 5 साल पहले 160 किमी. प्रतिघंटा की रफ्तार से ट्रेन चलाने के लिए ‘मिशन रफ्तार’ परियोजना की शुरूआत हुई थी। 1478 किमी. रूट और करीब 8095 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट के काफी काम पूरे हो चुके हैं। जल्द ही इस रूट पर इस रफ्तार से ट्रेनें दौड़ती नज़र आएंगी। रेलवे सूत्रों के अनुसार परियोजना के पूरा होने के बाद इस रूट पर 200 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से भी ट्रेनें दौड़ाई जा सकेंगी। फिलहाल दिल्ली-मुंबई रूट पर पहली स्लीपर वंदे भारत ट्रेन जल्द ही दौड़ती नज़र आएगी। ऐसी संभावना रेलवे सूत्रों के अनुसार जताई जा रही है।
स्पीड के लिए लगाई जा रही फेंसिंग
बता दें कि रूट पर ट्रेनें अपनी पूरी गति से चल सकें और उनके बीच में कोई गतिरोध उत्पन्न न हो सके। इसके लिए ही पटरियों के दोनों छोर पर फेंसिंग लगाई जा रही है। इस फेंसिंग योजना का करीब 50 फीसदी हिस्सा यानि 792 किमी. पश्चिम रेलवे के अधिकार क्षेत्र में है और इस पूरे हिस्से में कैटल फेंसिंग और वॉल फेंसिंग का काम लगभग पूरा हो चुका है। रेलवे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 2024 मई तक रूट पर स्पीड ट्रायल शुरू किए जा सकते हैं। देश की पहली स्लीपर वंदे भारत भी रूट पर चलाने की संभावना है।
कवच से होगा रूट सुरक्षित
ट्रेनों की स्पीड के साथ उनकी सेफ्टी को बढ़ाने के लिए पूरे रूट पर भारतीय रेलवे की ‘कवच’ तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। जिन ट्रेन में कवच लगा हो, उनका आमने-सामने से टकराना असंभव है, क्योंकि टकराने से पहले ट्रेन में ऑटोमैटिक ब्रेक लग जाएंगे। दिसंबर, 2022 में पश्चिम रेलवे पर 735 किमी पर 90 इंजन में कवच लगाने के लिए 3 कॉन्ट्रैक्ट अवॉर्ड हुए थे। इसमें से 142 किमी पर सफल ट्रायल हो चुका है। दिसंबर, 2024 तक कवच लगाने का काम पूरा होने की उम्मीद है। अब तक वड़ोदरा-अहमदाबाद सेक्शन में 62 किमी, विरार-सूरत पर 40 किमी और वडोदरा-रतलाम-नागदा सेक्शन में 37 किमी पर ट्रायल हो चुका है।
स्पीड बढ़ाने के लिए ये चल रहे काम
दिल्ली-मुंबई रूट पर ट्रेनों की औसत गति फिलहाल 80 से 100 किमी प्रतिघंटा है। ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने के लिए ट्रैक को मजबूत करने और दोनों तरफ दीवार बनाने का काम चल रहा है। मिशन से जुड़े इंजीनियरिंग विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि दीवार और ट्रैक को मजबूत करने के अलावा ट्रैक जितना सीधा होगा, उतनी ही स्पीड बनी रहेगी। इस परियोजना के पश्चिम रेलवे वाले क्षेत्र में 107 कर्व यानी मोड़ को सीधा किया जा चुका है। शेष 27 कर्व को भी जल्द ही सीधा कर लिया जाएगा। 160 किमी प्रतिघंटा की स्पीड के लिए 60 किलो 90 यूटीएस वाली पटरियों की जरूरत होती है, जबकि भारतीय रेलवे में ज्यादातर जगहों पर 52 किलो 90 यूटीएस वाली पटरियां लगी हैं। मुंबई-दिल्ली रूट पर परियोजना के मुताबिक पटरियों को बदलने का काम तेजी से चल रहा है। स्पीड बढ़ाने के लिए पटरियों के नीच पत्थर की गिट्टियों का कुशन 250 मिमी से बढ़ाकर 300 मिमी किया जा रहा है। इसी प्रकार नॉर्दर्न रेलवे में भी रूट को लेकर काफी काम किए गए हैं। सिग्नलिंग प्रणाली को भी बेहतर किया गया है।
200 तक बढ़ सकती है स्पीड
इस प्रॉजेक्ट के लिए ट्रेनों की औसत रफ्तार 160 किमी प्रति घंटा करनी है, लेकिन बताया जा रहा है कि रफ्तार को 200 प्रति घंटा तक आगे भविष्य में बढ़ाया जा सकता है। ये पूरा काम ट्रैक को मजबूत करके ही होगा। रेलवे के अधिकारी के अनुसार ट्रैक को मजबूत करके रफ्तार तो बढ़ सकती है, लेकिन जब गति 200 किमी प्रतिघंटा पहुंचानी हो, तो ब्रिज, सिग्नल, ओवरहेड वायर आदि पर भी काम करना होगा। इस प्रॉजेक्ट में फिलहाल ट्रैक की क्षमता बढ़ाई जा रही है। बता दें कि दिल्ली से आगरा के बीच गतिमान एक्सप्रेस 160 की रफ्तार से दौड़ती है। वहीं शताब्दी और राजधानी जैसी तेज गति की ट्रेनें भी इस रूट पर चल रही हैं। जिनकी रफ्तार भी 130 से 140 किमी. प्रति घंटा रहती है।
कोट्स….
मिशन रफ्तार का काम तेजी से चल रहा है। कुछ काम बचे हैं, जिनके फरवरी, 2024 तक पूरा होने की उम्मीद है। मुंबई से दिल्ली के बीच पूरे रूट पर कवच तकनीक का इस्तेमाल भी होगा। इसके भी सफल ट्रायल हो चुके हैं।
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