दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में मौत के अस्पताल का भंडाफोड़, मुन्नाभाई चला रहे अस्पताल

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दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में मौत के अस्पताल का भंडाफोड़, मुन्नाभाई चला रहे अस्पताल

-फर्जी डॉक्टर, फोन कॉल से सर्जरी..,मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ का डरावना सच आया सामने

नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- दक्षिण दिल्ली का पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश-1 के आवासीय इलाके में दिल्ली पुलिस ने एक फर्जी अस्पताल का भंडाफोड़ किया है। पुलिस के अनुसार अग्रवाल मेडिकल सेंटर के नाम से कुछ मुन्नाभाई सस्ते इलाज के नाम पर लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहे थे। दिल्ली पुलिस ने मौके से 4 लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस को शक है कि बीते कुछ सालों में इस फर्जी अस्पताल ने मरीजों को करीब 80 करोड़ रुपये का चूना लगाया। पुलिस ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से अस्पताल के लाइसेंस को निरस्त करने के लिए लिखा है।

पुलिस जांच में अब पता चला है कि डॉक्टर ही नहीं, बल्कि पूरे अस्पताल का सेट-अप ही फर्जी था। जहां सस्ते इलाज का लालच देकर लोगों को फंसाया जाता था। फर्जीवाड़ा के लिए पूरा गैंग था। लैब टेक्निशियन और फर्जी डॉक्टर सर्जरी करते थे। जिस सर्जन के नाम पर सर्जरी नोट तैयार होता था, ऑपरेशन थिएटर में वह होता ही नहीं था। कल्पना करके देखिए, सर्जरी जैसा जटिल इलाज और जो सर्जरी कर रहा है उसके पास उसकी कोई योग्यता ही नहीं। मरीज की जान कितनी सस्ती है। इस ’मौत के अस्पताल’ में सर्जरी के बाद अगर वह बच गया तो उसकी किस्मत। कई बार शिकायतों के बाद भी फर्जी अस्पताल चलता रहा।

अस्पताल या गैंग?
दक्षिण जिले के डीसीपी (दक्षिण) चंदन चौधरी के अनुसार, पुलिस ने अस्पताल के मालिक डॉक्टर नीरज अग्रवाल, उसकी पत्नी पूजा, लैब टेक्निशियन महेंदर सिंह और डॉक्टर जसप्रीत सिंह नाम के एक सर्जन को गिरफ्तार किया है। इनमें सिर्फ दो ही असली डॉक्टर हैं- डॉक्टर नीरज अग्रवाल और डॉक्टर जसप्रीत सिंह। अग्रवाल एमबीबीएस किया हुआ है लेकिन दिल्ली मेडिकल काउंसिल उसके रजिस्ट्रेशन को अलग-अलग समय पर 3 बार रद कर चुकी है। सर्जन डॉक्टर जसप्रीत सिंह तो बिना ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे, बिना मरीज को छुए ही अस्पताल के लिए कागजों पर सर्जरी कर दिया करता था। सर्जरी तो उसके नाम पर होती थी लेकिन उसे अंजाम देते थे फर्जी डॉक्टर।

पुलिस कर रही अस्पताल में 7 मौतों की जांच
पुलिस की जांच में खुलासा हुआ है कि अस्पताल में कई मरीजों की मौत हुई जिनमें ’लापरवाही से इलाज’ के आरोप लगे थे। पुलिस फिलहाल ऐसे 7 मामलों की जांच कर रही है। मृतकों के रिश्तेदारों को जांच में शामिल होने के लिए कहा गया है। पुलिस ने अस्पताल के 2 रजिस्टरों को भी सीज किया है जिसमें वहां भर्ती हुए 400 से ज्यादा मरीजों की डीटेल और प्रिस्क्रिप्शन स्लिप है। पिछले 5 सालों में अस्पताल में कितने मरीज भर्ती हुए, पुलिस इसकी भी जानकारी ले रही है।

अस्पतालों के बाहर शिकार की तलाश में घूमते थे गैंग मेंबर
इलाज के नाम पर जिंदगियों से खिलवाड़ करने वाला अस्पताल एक गैंग की तरह चलता था। पुलिस के मुताबिक, दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के बाहर गैंग के मेंबर शिकार की तलाश में घूमते रहते। सर्जरी की जरूरत वाले मरीजों को बेहद सस्ते और बिना किसी देरी के इलाज का लालच देते। मरीज के परिजनों को ’अविश्वसनीय लागत’ में इलाज का लालच दिया जाता। शिकार के जाल में फंसने के बाद शुरू होता था

इलाज के लिए अंतहीन इंतजार का सिलसिला। फर्जी डॉक्टर मरीजों को कोई भी दवा और इंजेक्शन लिखकर दे देते थे। कुछ इंजेक्शन लगा भी देते थे। ज्यादातर मामलों में सर्जरी के बाद मरीजों को काफी दिक्कतें होती थीं। कभी-कभी मरीज की हालत ज्यादा बिगड़ जाती थी। ऐसी स्थिति के लिए अस्पताल के बाहर ऐंबुलेंस तैयार रखी जाती थी और मरीज को सफदरजंग या एम्स जैसे आसपास के अस्पतालों में ले जाया जाता था।

राउंड पर आते थे फर्जी डॉक्टर, दवाइयों के नाम पर मोटी रकम की वसूली
जब कभी रिश्तेदार मरीज के स्वास्थ्य के बारे में पूछना शुरू कर देते थे तो अग्रवाल मेडिकल सेंटर के हाउसकीपिंग और नर्सिंग स्टाफ उन्हें यह कहकर शांत करते थे कि बस सीनियर डॉक्टर राउंड पर आने ही वाले हैं। थोड़ी ही देर में अस्पताल के मालिक डॉक्टर नीरज अग्रवाल की पत्नी ’डॉक्टर पूजा’ और लैब टेक्निशियन ’डॉक्टर महेंदर’ की एंट्री होती थी। एप्रन पहने ये फर्जी डॉक्टर मरीजों को चेक करना शुरू कर देते थे। तीमारदारों को यह कहकर दवाइयों की लिस्ट थमा दी जाती थी कि इन्हें तुरंत लाओ, बहुत जरूरी हैं। दवाइयों के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती थी।

सर्जरी के बाद अगर बच गया तो मरीज की किस्मत!
जिन मरीजों को सर्जी की जरूरत होती थी उन्हें अक्सर उन्हीं कपड़ों में ऑपरेशन थिएटर ले जाया जाता था जिन्हें पहनकर वे आए होते थे। लैब टेक्निशियन महेंदर सिंह तब ओटी की बत्ती जलाता था। गिरफ्तार किए गए दो फर्जी डॉक्टरों में से एक उपकरणों को संभालने लगता था। ऑपरेशन थिएटर में जाने के बाद अगर मरीज बच गया तो समझिए उसकी किस्मत अच्छी है। सर्जरी से पहले एनेस्थीशिया में मनमाने ढंग से इंजेक्शन का डोज दिया जाता था न कि मरीज के वजन और हेल्थ कंडिशन के आधार पर। इसके बाद शुरू हो जाती थी सर्जरी। हॉस्पिटल का मालिक और गैंग से जुड़ा सर्जन डॉक्टर जसप्रीत सिंह अक्सर फोन पर फर्जी डॉक्टरों को सर्जरी के दौरान निर्देश देते थे कि क्या, कब और कैसे करना है। सर्जन जसप्रीत ऑपरेशन थिएटर में मौजूद नहीं रहता था लेकिन हॉस्पिटल के लिए सर्जरी नोट बनाया करता था।

कैसे खुली पोल पुलिस ने बताया
दिल्ली पुलिस को पिछले महीने 10 अक्टूबर को एक महिला से शिकायत मिली थी, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि वह अपने पति को गालब्लैडर की पथरी निकालने के लिए अग्रवाल मेडिकल सेंटर ले गई थी। महिला ने बताया कि सर्जरी शुरू होने से पहले, अस्पताल के निदेशक डॉ. निराज अग्रवाल ने कहा कि सर्जरी प्रसिद्ध सर्जन डॉक्टर जसप्रीत सिंह करेंगे। सर्जरी के ठीक पहले, डॉक्टरअग्रवाल ने दावा किया कि डॉक्टर जसप्रीत किसी जरूरी काम के कारण नहीं आ सके और डॉक्टर महेंद्र सिंह सर्जरी करेंगे।

फर्जी डॉक्टों की फौज
इसके बाद डॉक्टर अग्रवाल ने महेंद्र को पेश किया। उस समय मौजूद एक नर्स ने शिकायतकर्ता से डॉ. पूजा का परिचय कराया। पीड़ित महिला ने आरोप लगाया कि बाद में उसे पता चला कि महेंद्र और पूजा डॉक्टर नहीं थे। ऑपरेशन के बाद, उसके पति ने गंभीर दर्द की शिकायत की और उसे सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। इसके बाद एक मामला दर्ज किया गया और जांच शुरू की गई।जांच के दौरान पता चला कि सर्जरी की तारीख 19 सितंबर, 2022 को जसप्रीत सिंह अस्पताल में मौजूद नहीं थे। पुलिस ने दावा किया कि उसने मृतक की सर्जरी के संबंध में कथित रूप से फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे।

जांच कर रही टीम को क्या-क्या मिला?
जांचकर्ताओं ने यह भी पाया कि 2016 से अब तक मरीजों के परिजनों की ओर से दिल्ली मेडिकल काउंसिल में अग्रवाल मेडिकल सेंटर, डॉ. निराज अग्रवाल और उनकी पत्नी, पूजा के खिलाफ सात शिकायतें दर्ज की गई थीं, जिनकी कथित तौर पर चिकित्सकीय लापरवाही के कारण मृत्यु हो गई थी। इस बीच, 27 अक्टूबर को एक अन्य मरीज को पित्ताशय की पथरी निकालने के लिए केंद्र में ऑपरेशन किया गया और जटिलताओं के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद एक और एफआईआर दर्ज की गई और जांच शुरू की गई। डीसीपी चौधरी ने कहा, ’1 नवंबर को चार डॉक्टरों की एक मेडिकल बोर्ड को कथित मेडिकल सेंटर की जांच करने के लिए बुलाया गया था और कई कमियां और कमियां पाई गई थीं। यह पाया गया कि आरोपी अक्सर मरीजों के इलाज और सर्जरी से संबंधित फर्जी दस्तावेज तैयार करते थे।’
          डीसीपी ने कहा, ’एम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मौत का कारण हेमोरेजिक शॉक था जो लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी की जटिलता के रूप में हुआ था जो मेडिकल सेंटर में किया गया था।’ सबूत इकट्ठे करने के बाद, पुलिस ने दो दर्ज मामलों में चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और बहुत सारी आपत्तिजनक सामग्री जब्त कर ली। पुलिस ने एक बयान में कहा, ’जप्तियों में 414 पर्चे पर्चियां शामिल थीं जिनमें केवल डॉक्टर के हस्ताक्षर थे और ऊपर काफी खाली जगह थी। हमने दो रजिस्टर भी जब्त किए जिनमें उन मरीजों का विवरण था जिनका चिकित्सकीय गर्भपात अग्रवाल मेडिकल सेंटर में किया गया था।

54 एटीएम कार्ड और चेक बुक भी जब्त
पुलिस ने प्रतिबंधित इंजेक्शन, समाप्त हुए सर्जिकल ब्लेड और 47 बैंकों से संबंधित 54 एटीएम कार्ड और चेक बुक भी जब्त किए हैं। श्रीनिवासपुरी वार्ड के नगरसेवक राजपाल सिंह ने कहा कि उनके चाचा के बेटे, 42 वर्षीय जय नारायण को 26 अक्टूबर को अग्रवाल मेडिकल सेंटर में पथरी निकालने के लिए भर्ती कराया गया था। अगले दिन नारायण को सर्जरी के लिए ले जाया गया और कुछ देर बाद मृत घोषित कर दिया गया। राजपाल सिंह ने कहा, “अजीब बात है, उसे उसी कपड़ों में सर्जरी के लिए ले जाया गया था जो उसने उस समय पहने हुए थे। नगर पार्षद के अनुसार, ’वे आए और उन्होंने हमें सूचित किया कि नारायण को कार्डियक अरेस्ट हुआ था और उसकी मृत्यु हो गई थी। हमने उन पर विश्वास नहीं किया और पुलिस को सूचित किया। उनका पोस्टमार्टम एम्स में डॉक्टरों के एक पैनल द्वारा किया गया था, जिन्होंने कहा कि उनकी मृत्यु अत्यधिक रक्तस्राव के कारण हुई थी। नारायण के पीछे उनकी पत्नी और 21 और 14 वर्ष के दो बच्चे हैं और वे परिवार के मुखिया थे।’

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