
नई दिल्ली/अनीशा चौहान/- झारखंड में आज हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं, लेकिन खास बात यह है कि उनके साथ कोई और मंत्री शपथ नहीं लेगा। इसका मतलब यह है कि कैबिनेट विस्तार बाद में होगा, जिससे कांग्रेस खेमे में बेचैनी बढ़ गई है। सवाल उठ रहा है कि आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है और क्या इसके पीछे कोई रणनीति है?
कैबिनेट विस्तार क्यों टला?
झारखंड में इंडिया गठबंधन के चार प्रमुख दल हैं – झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस, राजद और माले। इन चारों दलों को संतुष्ट रखना हेमंत सोरेन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। राज्य की 81 सदस्यीय विधानसभा में अधिकतम 12 कैबिनेट मंत्री बनाए जा सकते हैं। इसमें जेएमएम ने 7 मंत्री पदों की मांग की है, जबकि कांग्रेस ने 4 मंत्री पदों की उम्मीद जताई है। इसके अलावा, कांग्रेस और माले दोनों ने एक-एक मंत्री पद की मांग की है। इस वजह से हेमंत सोरेन के लिए यह संतुलन बनाना एक कठिन काम हो गया है।
अकेले शपथ लेने की वजह
झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन ने अपनी पार्टी के प्रचार की पूरी जिम्मेदारी खुद उठाई। उन्होंने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के साथ मिलकर 200 से अधिक रैलियों को संबोधित किया और गठबंधन के अन्य सहयोगी दलों के लिए भी प्रचार किया। जेएमएम, जो इस गठबंधन में ‘बड़े भाई’ की भूमिका में है, ने मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी को मजबूती से पेश किया। यही कारण है कि जेएमएम ने 7 मंत्री पदों की मांग की है।
जेएमएम पहले से ज्यादा मजबूत
2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन की पार्टी को 30 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन उस समय जेएमएम सरकार बनाने के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई थी। उस समय कांग्रेस का समर्थन ही उनके लिए सरकार चलाने का मुख्य सहारा था। हालांकि, इस बार स्थिति बदल गई है। कांग्रेस ने भले ही 16 सीटों पर जीत हासिल की हो, लेकिन वह अब ‘किंगमेकर’ की भूमिका में नहीं है। वहीं, जेएमएम ने 34 सीटें जीती हैं और उसे आरजेडी तथा माले का समर्थन भी प्राप्त है, जिससे वह आसानी से सरकार चला सकती है। यही कारण है कि हेमंत सोरेन अब कांग्रेस को उतनी अहमियत नहीं दे रहे हैं जितनी पहले थी।
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