कर्नाटक में 73 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग के क्या हैं मायने,

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
November 9, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

कर्नाटक में 73 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग के क्या हैं मायने,

-कर्नाटक में बीजेपी सरकार आएगी या जाएगी?, पिछेल दो चुनावों 2013 व 2018 में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने से चली गई थी सरकारें

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- कर्नाटक में एक बार फिर वोटिंग प्रतिशत बढ़ने से अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। अब देखना है यह कि पिछले दो चुनावों में बढ़े वोटिंग प्रतिशत से वर्तमान सरकारें बदल गई थी तो इस बार बढ़ा वोटिंग प्रतिशत भाजपा के लिए क्या मायने रखता है। प्रदेश के साथ-साथ राजनीतिक गलियारों में भी यह चर्चा तेजी पकड़ रही है कि भाजपा फिर आयेगी या जाएगी? बता दें कि कर्नाटक विधानसभा के 224 सीटों के लिए 2,615 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है। 10 मई को वोटिंग के दौरान मतदाताओं ने जमकर मतदान किया और 1957 के बाद के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। चुनाव आयोग के मुताबिक कर्नाटक में 73.19 फीसदी मतदान हुआ है।

                 2018 के मुकाबले यह करीब एक फीसदी ज्यादा है। बेंगलुरु ग्रामीण में 85 फीसदी  और ओल्ड मैसूर में 84 फीसदी वोटिंग हुई है। आयोग ने बताया कि मेलकोट विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा 91 फीसदी मतदान हुआ है, जबकि बोमनहल्ली में सबसे कम 47.4 फीसदी की वोटिंग हुई है।
                 कर्नाटक में बंपर वोटिंग और एग्जिट पोल के आंकड़ों ने राजनीतिक दलों की धड़कन बढ़ा दी है। चुनावी विश्लेषकों की माने तो मतदान प्रतिशत जब भी बढ़ता है तो इसका असर सत्ताधारी दल पर सबसे अधिक पड़ता है।

बात पहले राजधानी बेंगलुरु से
बेंगलुरु ग्रामीण इलाके में सबसे अधिक 85 फीसदी मतदान हुआ है, जबकि शहरी इलाके में 54 फीसदी। बेंगलुरु जोन में विधानसभा की कुल 28 सीटें हैं।
पोल में 28 में से 17 सीटों पर कांग्रेस और 10 सीटों पर बीजेपी को बढ़त दिखाया गया है। बेंगलुरु ग्रामीण जिले में विधानसभा की 8 सीटें हैं। यह जिला कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार का गढ़ माना जाता है।
                 बेंगलुरु के शहरी इलाका बीजेपी का गढ़ माना जाता है। ऐसे में यहां वोटिंग कम हुई है। एग्जिट पोल में भी शहरी इलाकों में बीजेपी को ही बढ़त दिखाई गई है। हालांकि, शहरी बेंगलुरु में मतदान फीसदी में कमी पर विश्लेषकों ने चिंता जताई है। इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने कहा है कि यह काफी दुखद है।

मध्य कर्नाटक का हाल?
मध्य कर्नाटक बीएस येदियुरप्पा का दुर्ग माना जाता रहा है, लेकिन इस बार यहां बंपर वोटिंग ने बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है। डेटा के मुताबिक मध्य कर्नाटक में करीब 75 फीसदी मतदान हुआ है, जो कुल मतदान से 2 प्रतिशत अधिक है।
              एग्जिट पोल में भी बंपर वोटिंग का असर देखने को मिल रहा है। मध्य कर्नाटक में विधानसभा की कुल 35 सीटें हैं। पोल के मुताबिक सेंट्रल कर्नाटक में कांग्रेस को 35 में से 18 से 22 सीटें मिल सकती हैं, जबकि बीजेपी को महज 12 से 16 सीटें मिल सकती हैं। वहीं तीसरी बड़ी पार्टी जेडीएस को 0 से 2 और एक सीट अन्य को जाती हुई दिख रही है। 2018 में बीजेपी ने यहां की 24 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
               सेंट्रल कर्नाटक में वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो सी-वोटर के मुताबिक कांग्रेस को यहां 44 फीसदी, बीजेपी को 29 फीसदी और जेडीएस को 10 फीसदी वोट मिल सकता है।

तटीय कर्नाटक की स्थिति क्या है?
हिजाब और पीएफआई का विवाद कर्नाटक के तटीय इलाके से ही शुरू हुआ था। उडुपी तटीय कर्नाटक में ही आता है। कर्नाटक के तटीय इलाके में विधानसभा की कुल 21 सीटें हैं। मिश्रित आबादी वाला तटीय कर्नाटक बीजेपी का गढ़ रहा है। तटीय कर्नाटक में इस बार 75 फीसदी वोटिंग हुई है। पोल के मुताबिक यहां की 21 सीटों में बीजेपी को 15 से 19 सीटें मिल सकती हैं तो कांग्रेस को सिर्फ 2 से 6 सीटों मिलने का अनुमान है। 2018 में भी बीजेपी ने 21 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने इस बार तटीय कर्नाटक को जीतने के लिए अलग से 10 सूत्रीय योजना की घोषणा की थी।
हालांकि, एसडीपीआई का चुनाव लड़ना यहां कांग्रेस के लिए शुरू से ही नुकसान माना जा रहा है। एसडीपीआई करीब 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

देवगौड़ा के गढ़ ओल्ड मैसूर का हाल
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के गढ़ ओल्ड मैसूर में इस बार कांग्रेस और बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी थी। कांग्रेस की ओर से डीके शिवकुमार और बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभाल रखी थी। ओल्ड मैसूर में इस बार 84 फीसदी वोटिंग हुई है। यहां विधानसभा की कुल 55 सीटें हैं, जो अन्य जोन से काफी ज्यादा है। पोल में यहां बीजेपी की स्थिति दयनीय बताई गई है। सर्वे के मुताबिक 55 सीटों में से सबसे ज्यादा 28 से 32 सीटें कांग्रेस को मिल सकती हैं। दूसरे नंबर पर जेडीएस को 19 से 23 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। बीजेपी को शून्य से 4 सीटें मिलने की बात कही गई है। ओल्ड मैसूर में वोटिंग और एग्जिट पोल सही साबित हुआ तो सबसे बड़ा झटका जेडीएस को लग सकता है।

हैदराबाद कर्नाटक में क्या हाल है?
हैदराबाद कर्नाटक में विधानसभा की कुल 31 सीटें हैं। यह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का गढ़ माना जाता है। सिद्धरमैया और खरगे ने यहां कांग्रेस के लिए मोर्चा संभाल रखा था। हैदराबाद कर्नाटक में इस बार 65 फीसदी वोटिंग हुई है। वोटिंग का असर एग्जिट पोल के नतीजों पर भी दिख रहा है। पोल के मुताबिक हैदराबाद कर्नाटक में कांग्रेस को 13 से 17 सीटें, बीजेपी को 11 से 15 सीटें, जेडीएस को 0 से 2 सीटें और अन्य को 0 से 3 सीटें मिल सकती हैं।

अब मुंबई कर्नाटक की बात
मुंबई कर्नाटक का इलाका हाल ही में सीमा विवाद की वजह से सुर्खियों में आया था। मुंबई-कर्नाटक इलाके में विधानसभा की करीब 50 सीटें हैं। यहां इस बार 75 फीसदी से अधिक मतदान हुआ है। मुंबई-कर्नाटक के इलाके में बीजेपी ने प्रह्लाद जोशी और कांग्रेस ने सिद्धरमैया को मोर्चेबंदी पर लगाया था। 2018 के चुनाव में इस इलाके में बीजेपी को 30 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस 16 सीटों पर ही सिमट गई थी। इस बार वोट प्रतिशत बढ़ने से कांग्रेस को बड़े उलटफेर की उम्मीद है। एग्जिट पोल भी इस उम्मीद को पुख्ता कर रहा है। पोल में बीजेपी को 24 से 28 और कांग्रेस को 22 से 26 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं, जेडीएस और अन्य को एक-एक सीट मिल सकती है।

वोटिंग परसेंट बढ़ा तो सरकार बदली
कर्नाटक में पिछले 2 चुनाव में वोटिंग परसेंट में बढ़ोतरी के बाद सरकार बदल गई. 2013 में कर्नाटक में करीब 71 फीसदी मतदान हुए। चुनाव परिणाम आया तो बीजेपी सत्ता से चली गई। 2013 में कांग्रेस को 122, बीजेपी और जेडीएस को 40-40 सीटें मिली थी। चुनाव बाद कांग्रेस ने सिद्धरमैया को मुख्यमंत्री बनाया। 2018 के चुनाव में भी वोटिंग परसेंट के बढ़ने से सरकार बदल गई। 2018 के विधानसभ चुनाव में करीब 72 फीसदी मत पड़े। इस चुनाव में कांग्रेस दूसरी बड़ी पार्टी बन गई। एक प्रतिशत वोट बढ़ने का असर काफी ज्यादा हुआ. कांग्रेस 122 से 80 पर पहुंच गई, जबकि बीजेपी 40 से 104 पर तथा जेडीएस को 2013 के मुकाबले नुकसान हुआ और पार्टी 37 सीटें जीतने में कामयाब रही। 2018 के वोट फीसदी की बात की जाए तो कांग्रेस को सबसे अधिक 38 फीसदी वोट मिले, जबकि बीजेपी को 36 और जेडीएस को 18 प्रतिशत मत मिले।

वोट फीसदी बढ़ना कितना असरदार?
224 सदस्यों वाली विधानसभा चुनाव में करीब 100 सीटों पर कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता है। ऐसे में जीत-हार का अंतर भी इन सीटों पर काफी कम रहता है। वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी का नुकसान वहां के सीटिंग पार्टियों को ही होगा।
                 एग्जिट और सर्वे पोल में भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा बताया गया है. ऐसे में वोट फीसदी में बढ़ोतरी का सीधा प्रभाव सत्ताधारी बीजेपी पर पड़ सकता है।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox