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    उपन्यास मां – भाग 2- शादी की संदूक

    बिलासपुर/छत्तीसगढ़/रश्मि रामेश्वर गुप्ता/- जैसे ही मां के कानों में आवाज गई, मां ने तुरंत कहा- “मिनी! तुम आ गई बेटा ! “मिनी ने कहा- “हां मां मैं आ गई।  क्या तुम मेरे साथ चलोगी?” मां ने तुरंत कहा -” हां ” मिनी फिर से पूछी- “क्या तुम मेरे साथ चलोगी मां ?” मां ने कहा- “हां बेटा ! मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।”मिनी मां की बात सुनकर तड़प उठी। तुरंत पति के पास आई। मां से मिलवाई। मच्छरदानी के बाहर ही वे खड़े थे । स्थिति समझने में उन्हें देर नहीं लगी। मिनी ने अपने पति से कहा- “मैं मां को अपने साथ घर ले जाना चाहती हूं।” वे बोले- “ठीक है , पहले आपके भाई साहब को आ जाने दो।” भाभी खाना बना रही थी। तभी मिनी के भैया भी आ गए । मिनी ने पैर छुए । मिनी को आई देखकर भैया भी खुश हुए । फिर सहज भाव से मां के कमरे में ही बातें होने लगी। भैया कहने लगे- “देख रही हो मां की हालत। सब बिस्तर में ही होता है । मुझे ही साफ करना पड़ता है। मल मूत्र साफ करते-करते हालत खराब हो गई है। रात भर शूटिंग करके आता हूं दिन को इनकी देखभाल। मैं बहुत परेशान हो गया हूं । बदबू के मारे कोई इनके कमरे में भी नहीं आना चाहता। खाने को मना करो तो मानती नहीं। किसी ने मुझे सलाह दिया है की तुम साड़ी को फाड़ कर पहना दिया करो और जब खराब हो जाए तो उसे फेंक दिया करो। अब मेरा काम आसान हो गया है। मैं बस वैसे ही करता हूं । तुम जो साड़ी दी हो उसे ही तिकोना काटकर पहना देता हूं।”
                  मिनी का हृदय चूर-चूर हुआ जा रहा था। मिनी ने सिर्फ इतना कहा- “मैं मां को अपने साथ ले जाना चाहती हूं। ले जाऊं?” तुरंत भैया बोले -“अब क्या करोगी ले जा के।अब तो दो या तीन दिन की मेहमान है ।” मिनी ने कहा -“ये कैसे कह सकते हैं?” तुरंत किचन से भाभी आई और भैया को बुलाकर ले गई । थोड़ी देर बाद दोनों विरोध करने लगे । कहने लगे नहीं भेजेंगे । मिनी को समझते देर नहीं लगी ,क्यों मना किया जा रहा है । मिनी ने कहा- “मैं सिर्फ मां को लेकर जाऊंगी और कुछ नहीं ।” दोनों मन ही मन खुश होने लगे । झुंझलाहट के साथ वे अपनी बातें भी कह देना चाह रहे थे। देखो अभी साफ करने की आदत बनी हुई है। अगर तुम फिर से मां को लेकर आओगी तो हमसे फिर नहीं होगा ये सब। फिर 2 दिन की मेहमान है तो उसे ले जाकर क्या करोगी? मिनी ने कहा- “अगर मौत आनी ही होगी तो मेरे घर में ही मां रहेगी न कहीं बाहर तो नहीं रहेगी।” मौत आनी रहेगी तभी आएगी अगर नहीं आनी रही तो नहीं आएगी ।

    दोनों को बात जंची। अगर नहीं आई तो………?  फिर भैया पूछे – “कैसे ले के जाओगी ?” मिनी ने कहा – “एंबुलेंस से ।” भैया बोले- “ठीक है।” तुरंत एम्बुलेंस बुलाई गई । मिनी ने मां से कही- “मां! साड़ी कहां है आपकी ?”एक संदूक की चाबी जो मां अपने गले में पहने हुए चांदी के माला में बांधकर रखी थी, देते हुए बोली -” ये लो, संदूक से निकाल लो।” मिनी ने संदूक खोली तो आवाक रह गई। सारी नई साड़ियां जो मिनी ने मां को दी थी मां ने सहेज कर रखी थी। मिनी को पास बुलाकर मां धीरे से कहने लगी। मिनी देख तो एक रुमाल है जिसमें वही पैसे हैं जो तुमने मुझे आते समय दिए थे। पूरे 5000 थे, जिसमें से केवल कुछ पैसे ही मैंने खर्च किए थे। मिनी ने कहा- “हां मां ! पूरे पैसे हैं ।” जल्दी से मिनी ने नीले रंग की साड़ी निकाली, ब्लाउज बदले और एंबुलेंस के आते तक मां की कुछ साड़ी और ब्लाउज संदूक में रखी। मिनी को पता था कि मां को संदूक से बेहद लगाव है। क्यों ना हो मां के शादी की संदूक थी। मां की शादी तब हुई थी जब मां पांचवी पढ़ती थी । जल्दी से मां को धीरे से उठाकर ब्लाउज बदले तो देखा मां के बाल विचित्र ढंग से कटे हुए थे जबकि मां कभी बालों को काटना पसंद नहीं करती थी। मिनी का दिल तार – तार हुआ जा रहा था। भाभी ने खाना बनाकर घी डालकर दिए और कहा- “दीदी! खाना खा लीजिए। मैं नहा कर आती हूं।” मिनी ने पति से धीरे से कही-” देखिए बिल्कुल नाराज मत होइएगा। खाना मेरे गले के नीचे उतरेगा ही नहीं इसलिए आप भैया के साथ खाना खा लीजिए। मैं तो बिल्कुल नहीं खा पाऊंगी।”स्थिति परिस्थिति को देखते हुए मुश्किल से सर भी खाना खा पाए तब तक एंबुलेंस आ गई। भाभी ने पूछा- “दीदी! आप खाना खा लिए?” मिनी ने कहा- “हां ।” एंबुलेंस की पटरी घर के अंदर लाई गई। मिनी ने कहा – “इसमें बिछाने के लिए कुछ चादर दे दीजिए ।” एक फटी चादर भैया ने दी। मिनी के मुंह से निकल गया – “ये ।” भैया ने कहा- “और नहीं तो क्या नई दूं ?” पटरी पे चादर बिछाई। बहुत मुश्किल से मां को कमरे से बाहर निकाले। मिनी ने जब पैर छुए ,भैया कहने से नहीं चुके- “अब फिर से लेकर मत आना यहां। सब दिन के लिए ले जा रही है तो ले जा।” मिनी ने कहा- “हां।” एंबुलेंस में पति, बेटी और मां के साथ मिनी बैठी। एम्बुलेंस चल पड़ी

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