
नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- अग्निपथ स्कीम को लागू हुए डेढ़ साल का वक्त हो चुका है लेकिन देशभर में इस योजना के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने अग्निवीर योजना में बड़े बदलाव की तैयारी के संकेत दे दिए हैं। हालांकि एनडीए की नई सरकार के गठन के साथ ही सहयोगियों ने अग्निवीर योजना की समीक्षा की मांग उठा दी थी जिसे देखते हुए अब मोदी सरकार ने इस योजना के रिव्यू की तैयारी कर ली है। रक्षा मंत्रालय की तरफ से योजना को लागू करते हुए कहा था कि समय-समय पर इसका रिव्यू किया जाएगा।

भारतीय सेना में अब जवानों की भर्ती अगि्नपथ स्कीम के जरिए होती है लेकिन लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने अगि्नवीर योजना के मुद्दे को जोर-शोर के साथ जनता के बीच उठाया था। इतना ही नहीं जब बीजेपी ने तीसरी बार एनडीए की सरकार बनाई तो उनके सहयोगी दल ने भी अगि्नपथ स्कीम में बदलाव की मांग की थी। वहीं जिस दिन इस स्कीम को लागू किया गया था तब रक्षा मंत्रालय की तरफ से भी यह बात कही गई थी कि समय-समय पर इसको रिव्यू किया जाएगा। अगर कोई परिवर्तन करना हो तो उसे भी किया जाएगा।

अग्निपथ स्कीम को लागू हुए डेढ़ साल का वक्त हो चुका है और इन डेढ साल में इस स्कीम को रिव्यू किया जा रहा है। सूत्रों की माने तो डीएमए यानी कि डिपार्टमेंट ऑफ मिलेट्री अफेयर्स ने तीनों सेना से इस पर रिपोर्ट मांगी है तथा चार साल के कार्यकाल को बढा़ने, ज्यादा भर्ती और 25 पर्सेंट रिटेंशन की सीमा को बढ़ाने की बात की जा रही है, लेकिन यह कितनी होगी इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके अलावा ट्रेनिंग और ड्यूटी पर किसी अग्निवीर को मौत या घायल होने की सूरत में परिवार को आर्थिक सहायता दिए जाने को लेकर भी मंथन हो रहा है।
इतना ही नहीं रेगुलर सेना के जवानों और अग्निवीर को मिलने वाली छुट्टियों के अंतर में भी बदलाव किया जा सकता है। मसलन सामान्य सोलजर को साल में 90 दिन की छुट्टी मिलती है, तो अग्निवीरो को साल में सिर्फ 30 दिन की। अभी अग्निवीरों के पहले बैच को आउट होने में ढाई साल का समय है तो अगर किसी तरह के बदलाव किए गए तो पहले बैच के आउट होने से पहले ही कर दिए जाए ताकी उसका फायदा पहले बैच के अग्निवीरों को मिल सके।
अगर हुआ बदलाव तो गोरखा सैनिकों को मिलेगी राहत
जब से स्कीम आई है तब से नेपाल में किसी भी तरह की भर्ती रैली का आयोजन नहीं हुआ है। कोरोना के दौरान तकरीबन ढाई साल और अग्निपथ योजना के लागू हुए तकरीबन डेढ़ साल यानी की पिछले चार साल से भारतीय सेना में नेपाली गोरखा सैनिकों की भर्ती नहीं हुई है। भारतीय सेना के एक अधिकारी के मुताबिक, आजादी से पहले तक गोरखा रेजिमेंट में करीब 90 फीसदी गोरखा सैनिक नेपाल के होते थे और 10 फीसदी भारतीय गोरखा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता इसका 80ः20 प्रतिशत किया गया। इसके बाद में इसे 60ः40 तक कर दिया गया यानी की 60 फीसदी नेपाली डोमेसाइल गोरखा और 40 फीसदी भारतीय डोमेसाइल गोरखा।
लेकिन अग्निपथ योजना से पहले भारतीय सेना में नेपाल से गोरखा सैनिक पूरे मिल रहे थे, तो भारतीय डोमेसाइल गोरखा के 40 फीसदी में जबरदस्त कमी आ रही थी, लेकिन अग्निवीर योजना के बाद से यह उलटा हो गया अब भारतीय गोरखा तो मिल रहे है लेकिन नेपाली नहीं। इसी योजना के चलते नेपाल और भारत के बीच रिश्तों में थोड़ी बहुत तल्खी भी देखी गई थी और अगर जिस तरह के बदलाव की बातें सामने आ रही है उसके बाद नेपाली गोरखा भारतीय सेना के मिलने भी शुरू हो सकते है। इससे नेपाली गोरखा सैनिकों की कमी भी पूरी हो सकेगी और अग्निपथ स्कीम के चलते जो मनमुटाव नेपाल को था वो भी दूर हो सकता है।
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