अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस पर आरजेएस कार्यक्रम, प्रवासी भारतीयों के योगदान पर मंथन

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December 21, 2025

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नई दिल्ली/उमा सक्सेना/-      अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस के अवसर पर राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (RJS PBH) द्वारा आयोजित 507वें कार्यक्रम में वैश्विक प्रवासी भारतीयों की भूमिका, संघर्ष और योगदान पर गहन चर्चा की गई। 19 दिसंबर 2025 को आयोजित इस विशेष आयोजन का विषय “माई ग्रेट स्टोरी, कल्चर एंड डेवलपमेंट” रहा, जिसमें दुनिया के विभिन्न देशों से जुड़े प्रवासी वक्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए।

प्रवासी भारतीय भारत की आर्थिक रीढ़: सुनील कुमार सिंह
कार्यक्रम के सह-मेजबान और आईसीसीआर (विदेश मंत्रालय) के कार्यक्रम निदेशक सुनील कुमार सिंह ने प्रवासी भारतीयों के आर्थिक और सांस्कृतिक योगदान की सराहना करते हुए कहा कि भारतीय डायस्पोरा हर साल लगभग 129.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर भारत भेजता है, जो देश की अर्थव्यवस्था और गरीबी उन्मूलन के लिए एक मजबूत आधार है। उन्होंने कहा कि प्रवासी भारतीय केवल धन प्रेषक ही नहीं, बल्कि योग, आयुर्वेद और भारतीय परंपराओं के माध्यम से भारत की सॉफ्ट पावर को वैश्विक मंच पर मजबूती देने वाले सांस्कृतिक दूत भी हैं।

‘वसुधैव कुटुंबकम’ के भाव से कार्यक्रम का शुभारंभ
आरजेएस पीबीएस के संस्थापक और राष्ट्रीय समन्वयक उदय कुमार मन्ना ने कार्यक्रम की शुरुआत ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के श्लोक के साथ की। उन्होंने प्रवासी भारतीयों के प्रयासों को भारत के ऐतिहासिक संघर्षों से जोड़ते हुए काकोरी कांड के शहीदों और गोवा मुक्ति दिवस का स्मरण किया। उन्होंने प्रवासियों को तिरंगे के ध्वजवाहक बताते हुए कहा कि वे भारत की पहचान को दुनिया भर में आगे बढ़ा रहे हैं।

21 और 31 दिसंबर के विशेष आयोजन
कार्यक्रम में यह भी घोषणा की गई कि 21 दिसंबर को आरजेएस पीबीएस के मंच पर कबीर पर आधारित विशेष वेबिनार आयोजित किया जाएगा, जिसमें पद्मश्री प्रह्लाद सिंह टिपानिया मुख्य अतिथि होंगे और लोक गायक दयाराम सारोलिया कबीर संदेश देंगे। वहीं 31 दिसंबर को प्रो. डॉ. के. जी. सुरेश, निदेशक आईएचसी और पूर्व कुलपति एमसीयू, आरजेएस के सक्सेस स्टोरी शो और न्यूज लेटर का लोकार्पण करेंगे, जिसका उद्देश्य वैश्विक योगदानकर्ताओं की प्रेरक कहानियों को सामने लाना है।

प्रवास की चुनौतियां और आत्मनिर्माण की यात्रा
कार्यक्रम में इंग्लैंड के सेवानिवृत्त चिकित्सक डॉ. राजपाल सिंह ने 1973 में ब्रिटेन पहुंचने के बाद अपने जीवन संघर्ष और सफलता की कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि भौतिक सफलता के साथ आध्यात्मिक संतुलन भी उतना ही आवश्यक है। न्यूजीलैंड की हिंदी लेखिका और कवयित्री डॉ. सुनीता शर्मा ने प्रवासियों को सकारात्मकता अपनाने और जरूरत पड़ने पर मदद मांगने को कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बताया। उन्होंने कीवी बच्चों को हिंदी और भारतीय संस्कृति से जोड़ने के अपने प्रयासों का उल्लेख किया।

सांस्कृतिक संरक्षण और नवाचार पर जोर
नीदरलैंड से डॉ. रितु शर्मा ननंन पाण्डेय ने सूरीनाम के गिरमिटिया प्रवासियों द्वारा 150 वर्षों से अधिक समय से सनातन धर्म और सुरनामी हिंदी भाषा को जीवित रखने के प्रयासों पर प्रकाश डाला। ऑस्ट्रेलिया की लेक्चरर डॉ. श्वेता गोयल ने अपने शोध “गीता मनोविज्ञान” के माध्यम से भारतीय दर्शन को आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य मॉडल से जोड़ने की बात कही।

आध्यात्मिक आधार से ही स्थायी सफलता संभव
कार्यक्रम के समापन सत्र में साधक ओमप्रकाश ने कहा कि प्रवासी भारतीयों की सफलता का मूल मंत्र आध्यात्मिक चेतना और आत्मनिर्भरता है। उन्होंने ‘अप दीपो भव’ के सिद्धांत को अपनाने का संदेश दिया। अंत में सुनील कुमार सिंह ने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आरजेएस पीबीएस इस तरह की कहानियों का दस्तावेजीकरण करता रहेगा, ताकि 2047 तक सकारात्मक मीडिया भारत-उदय वैश्विक आंदोलन के लक्ष्य को साकार किया जा सके।

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