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नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पांच सालों में पहली बार इस साल जुलाई के महीने में सबसे कम बारिश हुई है। आमतौर पर जून से सितंबर के बीच जुलाई का महीना सबसे नमी (बारिश) वाला होता है। लेकिन इस साल कम बारिश ने खरीफ की फसलों को लेकर चिंता बढ़ा दी है। खासतौर से मध्यप्रदेश, गुजरात और ओडिशा के लिए।
यदि अगस्त में भी 97 प्रतिशत बारिश के अनुमान के विपरीत कम वर्षा होती है तो इसका प्रभाव तिलहन और दालों की फसल पर पड़ेगा जिन्हें ज्यादातर बारिश वाले इलाकों में उगाया जाता है। देश में जुलाई के दौरान 285.3 मिमी वर्षा के औसत से 90 प्रतिशत लॉन्ग पीरियड ऑफ एवरेज (एलपीए) की बारिश हुई, जबकि भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने 103 प्रतिशत का अनुमान लगाया था।
दक्षिणी राज्यों को छोड़कर देश के अन्य सभी क्षेत्रों में जून की तुलना में जुलाई में कम वर्षा हुई है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अगस्त का महीना महत्वपूर्ण है क्योंकि आईएमडी ने शुक्रवार को जारी अपडेट में इस महीने के लिए अपनी भविष्यवाणी नहीं बदली है।’ मौसम ब्यूरो ने कहा कि अगस्त और सितंबर दोनों के लिए मानसून एलपीए 104 प्रतिशत होने की संभावना है।
आधिकारिक डाटा के अनुसार जून-जुलाई के बीच में मानसून सामान्य था। यह जून में 118 प्रतिशत एलपीए था। मानसून के शुरुआती आगमन और जून में सामान्य वर्षा की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक होने के कारण, इस वर्ष खरीफ की बुआई बहुत अच्छी हुई। कृषि मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि कुल खरीफ की पैदावार इस सीजन के 106.64 मिलियन हेक्टेयर है, जो सामान्य क्षेत्र का 83 प्रतिशत है।
जहां तिलहन की बुआई सामान्य स्तर के करीब पहुंच चुकी है। वहीं कपास और गन्ना अपने सामान्य मानदंड स्तर को पार कर चुके हैं। धान की रोपाई ने अब तक 39.7 मिलियन हेक्टेयर के अपने सामान्य क्षेत्र का 67 प्रतिशत कवर किया है। यह आमतौर पर पश्चिम बंगाल में देर से बोया जाता है जोकि अन्य राज्यों की तुलना में देश का सबसे बड़ा उत्पादक है। राजस्थान, केरल, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर प्रमुख राज्यों में से हैं जहां मानसून की कमी है।
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