विश्व में 80 करोड़ बच्चों के खून में घुल रहा सीसे का जहर

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728  
February 13, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

विश्व में 80 करोड़ बच्चों के खून में घुल रहा सीसे का जहर

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की एक रिपोर्ट में चैंकाने वाला खुलासा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के लगभग तीन चैथाई बच्चे सीसा (लेड) धातु के जहर के साथ जीने को मजबूर हैं। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के सीसा धातु से प्रभावित होने की वजह एसिड बैटरियों के निस्तारण को लेकर बरती जाने वाली लापरवाही है।
इसकी वजह से यूनिसेफ ने इस तरह की लापरवाही के प्रति आगाह करते हुए इसको तत्काल बंद करने की अपील भी की है। यूनिसेफ और प्योर अर्थ की रिपोर्टदृ द टॉक्सिक ट्रूथ- चिल्ड्रंस एक्सपोजर टू लेड पॉल्यूशन अंडरमाइंस ए जनरेशन ऑफ पॉटेंशियल के नाम से सामने आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर के करीब 80 करोड़ बच्चों के खून में इसकी वजह से इस जहरीला सीसा धातु का स्तर पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर या उससे भी ज्यादा है।
यूनिसेफ की इस रिपोर्ट में बच्चों की जितनी संख्या बताई गई है उसके मुताबिक दुनिया हर तीसरा बच्चा इस जहर के साथ जी रहा है। यूनिसेफ ने आगाह किया है कि खून में सीसा धातु के इतने स्तर पर मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। इस रिपोर्ट की दूसरी सबसे बड़ी चैंकाने वाली बात यह भी है कि इस जहर का मजबूरन सेवन करने वाले आधे बच्चे दक्षिण एशियाई देशों में रहते हैं।
यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फोर के मुताबिक खून में सीसा धातु की मौजूदगी के शुरुआती लक्षण नजर नहीं आते हैं और ये धातु खामोशी के साथ बच्चों के स्वास्थ्य और विकास को बर्बाद कर देती है। रिपोर्ट में पांच देशों की वास्तविक परिस्थितियों का मूल्यांकन भी किया गया है। इनमें बांग्लादेश के कठोगोरा, जियार्जिया का तिबलिसी, घाना का अगबोगब्लोशी, इंडोनेशिया का पेसारियान और मैक्सिको का मोरोलॉस प्रांत शामिल हैं। इसमें कहा गया कि सीसा धातु में न्यूरोटॉक्सिन होता है जिनके कारण बच्चों की मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है। इसका इलाज भी संभव नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की आय वाले देशों में बैटरियों के सही निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा इनकी री-साइकिलिंग की भी कोई व्यवस्था नहीं है, जो इस समस्या का सबसे बड़ा कारण है। इन देशों में वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ बैटरियों का कचरा भी काफी निकल रहा है।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox