
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- देश में कोरोना को मात देने के लिए युद्ध स्तर पर काम चल रहा है। जिसके लिए देश में करीब 30 समूह जिसमें बड़े उद्योग समूह, वैज्ञानिक संस्थान और व्यक्तिगत स्तर पर वैज्ञानिक शामिल है इस कार्य में जुटे हुए हैं।
इस संबंध में देश के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. के. विजय राघवन ने कहा देश में 30 समूह कोरोना के खिलाफ टीका बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आमतौर पर ऐसे वायरस के खिलाफ चार किस्म के टीके होते हैं और कोरोना पर काबू के लिए चारों किस्म के टीके देश में तैयार किए जाने की तैयारियां जोरो पर चल रही हैं। डॉ. राघवन एवं नीति आयोग के सदस्य डॉ, वी. के. पाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोरोना पर हो रहे अनुसंधान को लेकर जानकारी साझा की। उन्होंने कहा कि इस बिमारी के ईलाज में चार किस्म के टीके होते हैं। एक एमआरएनए वैक्सीन जिसमें वायरस का जेनेटिक मेटिरियल का कंपोनेंट लेकर इंजेक्ट किया जाता है। दूसरा स्टैंडर्ड टीका होता है जिनमें वायरस के कमजोर प्रतिलिपि को टीके के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। तीसरे प्रकार के टीके में किसी और वायरस की बैकबोन में कोविड-19 के प्रोटीन की कोडिंग की जाएगी। चैथे वे टीके हैं जिनमें लैब में वायरस का प्रोटीन तैयार किया जाता है। इन चारों किस्म के टीकों पर देश में काम हो रहा है।
उन्होंने कहा कि तीन किस्म के प्रयास चल रहे हैं। एक जो हम खुद कर रहे हैं। दूसरे, जो साझीदारी में हैं, लेकिन बाहर की एजेंसियां लीड कर रही हैं। तीसरे जो बाहरी एजेंसियों के साथ हैं और हम लीड कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय टीके पूरे विश्व में इस्तेमाल होते हैं। तीन में से दो बच्चों को भारत में बना टीका लगता है। देश में टीका बनाने वाली कंपिनया खुद भी टीकों पर अनुसंधान कर रही हैं तथा दूसरी कंपनियों के साथ शोध में साझीदी भी कर रही हैं। उन्होंने कहा कि फ्लू के टीके की बैकबोन पर प्री क्लिनिकल स्टीडीज अक्टूबर तक पूरी होने की संभावना है। फरवरी में प्रोटीन वैक्सीन तैयार होने की संभावना है। इसी प्रकार इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से जुड़े कुछ स्टार्टअप ने कई संस्थानों एवं बाहरी एजेंसियों के टीके पर कार्य शुरू किया है। उन्होंने कहा कि टीके बनाने में 10-15 साल लगते हैं तथा भारी खर्च होता है। इस समय को कम करने के लिए सौ से अधिक प्रोजेक्ट एक साथ दुनिया में शुरू किए गए हैं। टीके बनने के बाद भी लोगों तक उसे पहुंचाना एक चुनौती होती है।
दवा का मानवीय परीक्षण छह महीने के भीतर इसी प्रकार कई दवाओं पर भी शोध चल रहा है तथा उम्मीद जताई की साझीदारी में बनाई जा रही दवा अगले छह महीनों में मानवीय परीक्षणों तक पहुंच सकती है। कई नई और पुरानी दवाओं पर शोध हो रहे हैं। इनमें फेबीपेरामीर, सीएसआईआर द्वारा एक पौधे से तैयार की जा रही दवा एसीक्यूएस, एमडब्ल्यू, आईसीएमआर के प्लाज्मा ट्रायल, हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन के ट्रायल, रेमडेसिवीमीर, अर्बीडाल, बीसीजी टीके के ट्रायल आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ये सभी अलग-अलग चरणों में हैं। इनमें से कई दवाएं रिपरपज की जा रही हैं, तो कई नई भी हैं। नई दवाओं के पहले मानवीय परीक्षण शुरू होने में कम से कम छह महीने लगेंगे।
वायरस में बदलाव नहीं
उन्होंने कहा कि कई प्रयोशालाओं में कोरोना वायरस की जीनोंम सिक्वेंसिंग की गई है। लेकिन उसमें कोइ खास बदलाव नहीं दिखा है। जो बदलाव हैं वह स्थानीय कारणों से हैं, लेकिन इसका वायरस की कार्य पद्धित पर कोई असर नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा कि नई दवाओं की खोज के लिए सीएसआईआर-एसआईसीटीई द्वारा एक हैकाथन का आयोजन किया जा रहा है।
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