नई शिक्षा नीति पर शुरू हुई राजनीति, तमिलनाडु से निकले विरोध के स्वर

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नई शिक्षा नीति पर शुरू हुई राजनीति, तमिलनाडु से निकले विरोध के स्वर

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/तमिलनाडु/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- नई शिक्षा नीति पर भी अब राजनीति शुरू हो गई है। तमिलनाडु से नई शिक्षा नीति को लेकर विरोध के स्वर सामने आ रहे है। हालांकि केंद्रीय शिक्षा मंत्री पहले ही स्पष्ट कर चुके है कि किसी भी राज्य पर किसी भाषा को थोपा नही जायेगा लेकिन फिर भी केंद्र की नई शिक्षा नीति को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी ने कड़ा ऐतराज जताते हुए राज्य में तीन भाषा फॉर्मूले को लागू नहीं करने का एलान किया है। पलानीस्वामी ने दिवंगत मुख्यमंत्रियों अन्ना दुराई, एमजीआर और जयललिता की ओर से हिंदी के विरोध को सूचीबद्ध किया है। लेकिन उनके ऐलान के साथ ही प्रदेश में देश की मातृभाषा को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है और लोगों ने सीएम से इस ऐलान पर दौबारा विचार करने की सलाह दी है।
मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि वो इस योजना पर दोबारा विचार करें। पलानीस्वामी ने एक बयान में कहा कि तीन भाषा फॉर्मूला दर्दनाक और दुखद है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में पहले दो भाषा का प्रावधान है और इसमें कोई बदलाव नहीं होगा। मैं प्रधानमंत्री मोदी से अपील करता हूं कि इस फैसले पर दोबारा विचार किया जाए। राज्यों को उनकी नीति के अनुसार इसे लागू करने की स्वतंत्रता मिले।
 मुख्यमंत्री ने साल 1965 में तमिलनाडु के छात्रों की ओर से किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन का भी संदर्भ रखा। उस समय कांग्रेस ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि तीन भाषायी योजना में राज्य के ऊपर निर्भर करता है कि वो किन भाषाओं को इसमें शामिल करेगा लेकिन तमिलनाडु इसे केंद्र की ओर से हिंदी थोपने के तीखे प्रयास के तौर पर देख रहा है।
वहीं शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियालय निशंक ने एक ट्वीट में इस बात की सफाई दी थी कि केंद्र की ओर से किसी भी राज्य पर किसी भी भाषा को नहीं थोपा जाएगा। शिक्षा मंत्री निशंक ने कहा कि वो तमिलनाडु में नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री के मार्गदर्शन का इंतजार कर रहे हैं।
इससे पहले एमके के नेतृत्व वाली डीएमके पार्टी और कई विपक्षी पार्टी नई शिक्षा नीति का विरोध कर चुकी हैं और इसके प्रस्ताव पर एक बार और विचार करने के लिए कह रही हैं। शनिवार को डीएमके प्रमुख ने कहा कि इस नीति के जरिए गैर हिंदी राज्यों में गैर-कानूनी तौर पर हिंदी और संस्कृत भाषा को थोपने का काम किया जा रहा है। डीएमके नेता ने कहा कि यह नए बदलाव किसी नई शिक्षा नीति के लिए नहीं बल्कि, पुरानी दमनकारी मनुस्मृति पर चमकदार कोट है।

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