
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पंजाब विधानसभा में राज्य सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि कानून के खिलाफ बिल पेश किया गया, जिसे सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया है। वहीं ऐसा करने वाला पंजाब पहला राज्य है। बिल पेश करते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने राज्य के सभी राजनैतिक पक्षों को पंजाब की रक्षा करने की भावना के साथ अपने राजनैतिक हितों से ऊपर उठने की अपील की।
इस प्रस्ताव द्वारा कृषि कानूनों और प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल को रद्द करने की मांग की गई। यह भी मांग की गई कि ‘‘भारत सरकार न सिर्फ इन कानूनों को रद्द करे बल्कि अनाज की एमएसपी पर खरीद को किसानों का कानूनी अधिकार बनाने और भारतीय खाद्य निगम जैसी संस्थाओं द्वारा खरीद यकीनी बनाने सम्बन्धी नए अध्यादेश जारी करे।’’मुख्यमंत्री ने सोमवार को सदन में बिल न पेश न करने पर कुछ विधायकों द्वारा विधानसभा की तरफ से ट्रैक्टरों पर कूच करने और कुछ विधायकों द्वारा विधानसभा के बरामदे में रात काटने की कार्यवाहियों करने पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने गहरी विचार-चर्चा और सलाह-मशवरे के बाद देर रात 9रू30 बजे इन बिलों पर दस्तखत किए। उन्होंने कहा कि संकटकालीन समय के सत्र के दौरान ऐसे बिलों की कापियां बाँटने में देरी होती है। उन्होंने कहा कि ऐसा उस समय पर भी हुआ था, जब उनकी सरकार अपने पिछले कार्यकाल के दौरान साल 2004 में पानी के समझौतों को रद्द करने का एक्ट सदन में लेकर आई थी।
विधानसभा के स्पीकर द्वारा पढ़े गए प्रस्ताव के मुताबिक यह कानून देश के संविधान में दर्ज राज्य के कार्यों और शक्तियों पर सीधा हमला हैं और उनको छल से हथियाने का यत्न है। सदन में पास किए गए प्रस्ताव के मुताबिक राज्य की विधानसभा ‘‘भारत सरकार द्वारा अब जैसे बनाए गए कृषि कानूनों संबंधी किसानों की चिंताओं के हल को लेकर अपनाए गए कठोर और तर्कहीन व्यवहार के प्रति गहरा खेद प्रकट करती है।’’ प्रस्ताव के मुताबिक विधानसभा इन कृषि कानूनों और प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल, 2020 को सर्वसहमति के साथ खारिज करने के लिए मजबूर है।
केंद्रीय कृषि कानूनों ‘किसानी फसल, व्यापार और वाणिज्य (उत्साहित करने और आसान बनाने) एक्ट -2020’, किसानों के (सशक्तिकरण और सुरक्षा) कीमत के भरोसा और खेती सेवा संबंधी करार एक्ट -2020 और जरूरी वस्तु संशोधन एक्ट -2020 के हवाले से सदन में पेश किए गए प्रस्ताव में कहा गया कि केंद्र सरकार ने मुख्यमंत्री द्वारा गत 14 सितम्बर को पत्र नं. सीएमओध्कानफी ध्2020 ध्635 द्वारा प्रधानमंत्री को सदन की चिंता और जजबातों से अवगत करवाया गया और बावजूद इसके केंद्र सरकार ने 24 सितम्बर और 26 सितम्बर को सम्बन्धित कृषि अध्यादेशों को कानूनों में तबदील करके नोटीफाई कर दिया। प्रस्ताव के मुताबिक ‘‘प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल -2020 समेत यह तीनों ही कृषि कानून स्पष्ट तौर पर जहाँ किसानों, भूमिहीन कामगारों के हितों को चोट पहुँचाता है, वहीं पंजाब के साथ-साथ प्राथमिक हरित क्रांति के पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में काफी समय से स्थापित कृषि मंडीकरण प्रणाली के भी विरुद्ध हैं।’’ प्रस्ताव में कहा गया कि यह कानून प्रत्यक्ष तौर पर भारत सरकार ने कृषि के साथ सम्बन्धित नहीं बल्कि व्यापारिक कानून बनाए हैं। प्रस्ताव में कहा गया कि यह कानून भारत के संविधान (प्रविष्टि 14 लिस्ट-2), जिसके अनुसार कृषि राज्य का विषय है, के भी खिलाफ हैं।
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