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  • अब सीवरेज के पानी में भी मिले कोविड-19 जीन के साक्ष्य, लंबे समय तक रहने वाला है कोरोना

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    अब सीवरेज के पानी में भी मिले कोविड-19 जीन के साक्ष्य, लंबे समय तक रहने वाला है कोरोना

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पल-पल रंग, लक्षण व स्वरूप बदला रहा कोरोना अब अपने बने रहने के लिए ठीकाने भी बदल रहा है। हालांकि अभी तक इसे एक निर्जीव कण माना जा रहा था लेकिन अब कोरोना गंदे पानी में अपना रहने का स्थान बना चुका है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने पाया है कि सीवरेज के गंदे पानी में भी कोरोना के गैर संक्रमित जीन पाए जा रहे हैं। अहमदाबाद के बाहरी इलाकों से एकत्र किए सीवेज के गंदे पानी के सैंपल से शोधकर्ताओं ने यह जांच की है। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए शोधकर्ताओं ने गंदे पानी पर आधारिक निगरानी पर जोर दिया है। इससे साफ हो गया है कि कोरोना वायरस लंबे समय के लिए रहने वाला है, इसके लिए जरूरी है कि सरकार महामारी को समझने और ग्राफ को नीचे लाने के लिए गंदे पानी पर आधारित निगरानी पर जोर दे। शोधकर्ताओं का कहना है कि मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में गंदे पानी की निगरानी करने से सरकार को कोरोना के चरम को रोकने में मदद मिल सकेगी।
                                 शोधकर्ताओं का कहना है कि इलाज से पहले हॉटस्पॉट की पहचान करना बेहद जरूरी है। अभी तक नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और अमेरिका ने गंदे पानी में सार्स-कोव-2 वायरस के कण देखे हैं। अप्रैल में आईआईटी गांधीनगर 51 प्रीमियर विश्वविद्यालयों और रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ एक वैश्विक संघ से जुड़ा था। इस संघ का काम गंदे पानी की निगरानी करना था ताकि भविष्य में कोविड-19 को लेकर दुनिया को चेतावनी दी जा सके। आईआईटी गांधीनगर के प्रोफेसर मनीष कुमार ने कहा कि वायरस की उपस्थिति पता करने के लिए गंदा पानी एक महत्वपूर्ण स्रोत है। उत्सर्जन के दौरान वायरस सिर्फ सिम्टोमैटिक ही नहीं एसिम्टोमैटिक मरीजों के शरीर को भी छोड़ता है। अध्ययन में पाया गया है कि गंदे पानी में कोरोना वायरस संक्रमण नहीं फैलाता है। पानी में तापमान एक बड़ी भूमिका निभाता है, जिसकी वजह से वायरस के जीवन पर असर पड़ता है। विश्लेषण के लिए गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आईआईटी गांधीनगर को आठ मई से 27 मई तक गंदे पानी के सैंपल इकट्ठे करने में मदद की। हर 100 मिलीलीटर सैंपल को कई समय तक केंद्रित किया ताकि सैंपल में से जेनेटिक मैटेरियल आरटीपीसीआर को अलग कर दिया जाए। सैंपल में से आरएनए को अलग निकाला गया, जिसके बाद पता चला कि सभी सैंपल में कोरोना वायरस के तीन जीन मिले, जिसमें ओआरएफ1एबी, एस और एन जीन शामिल हैं।
                                 टीम में मौजूद अरबिंद कुमार पटेल ने पाया कि आरटीपीसीआर के परिणाम की वजह से अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। गंदे पानी पर आधारित महामारी विज्ञान ज्यादातर विकसित देशों में की जाती है। मनीष कुमार ने कहा कि देश में जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से सभी लोगों का कोरोना टेस्ट नहीं हो सकता है।

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